Home > विशेष आलेख > अमित शाह के बयान के निहितार्थ

अमित शाह के बयान के निहितार्थ

यह बात सही है कि भाजपा आज अछूता राजनीतिक दल नहीं है। जो लोग भाजपा पर सांप्रदायिक राजनीति करने का खुलकर आरोप लगाते थे, उनमें कई दल उसके साथ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा हैं।

अमित शाह के बयान के निहितार्थ
X

अभी हाल ही में पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने यह कहकर सभी राजनीतिक दलों की चिंताएं बढ़ा दी हैं कि अबकी बार लोकसभा चुनाव में भाजपा को इस राज्य से कम से कम 22 सीटें चाहिए। वैसे तो हर राजनीतिक दल हर चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीटों की रणनीति बनाता है, लेकिन किसके खाते में कितनी खुशी आती है, यह तब पता चलता है, जब परिणाम आते हैं। यह बात सही है कि भाजपा आज अछूता राजनीतिक दल नहीं है। जो लोग भाजपा पर सांप्रदायिक राजनीति करने का खुलकर आरोप लगाते थे, उनमें कई दल उसके साथ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा हैं। ऐसे में यह भी कहा जा सकता है कि भाजपा के प्रति दूसरे दलों में अब अनुराग उत्पन्न होता जा रहा है। दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भाजपा के पास राजनीतिक जनाधार वाले नेताओं की फौज है, जिनका दूसरे दलों के पास नितांत अभाव है। भाजपा के अतिरिक्त अन्य राजनीतिक दलों का अध्ययन किया जाए तो अधिकतर राजनीतिक दल ऐसे ही दिखाई देंगे, जिनमें उनकी पूरी राजनीति का केन्द्र बिन्दु केवल एक ही राजनेता या उसके परिवार के आसपास ही रहता है। फिर चाहे वह कांग्रेस हो या फिर लालू प्रसाद यादव या मुलायम सिंह यादव की पार्टी ही हो। पश्चिम बंगाल में भी ऐसा ही दृश्य उपस्थित है, जिसमें ममता बनर्जी के पास ही सत्ता और संगठन की चाबी है। ऐसे में इन दोनों के बारे में यही कहा जा सकता है कि इनमें लोकतंत्र है ही नहीं।

इसका उदाहरण एक घटनाक्रम से दिया जा सकता है। एक बार एक टीवी चैनल पर बहस चल रही थी। कांग्रेस नेता का आरोप था कि भाजपा में केवल नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ही सब कुछ हैं, इसलिए भाजपा में लोकतंत्र नहीं है। जबकि कांग्रेस देश की लोकतांत्रिक पार्टी है, इस बात पर कांग्रेस नेता से पूछा गया कि आप कांग्रेस के अध्यक्ष बन सकते हैं? इस सवाल के बाद कांग्रेस नेता की हालत देखने लायक थी। उसके पास कोई जवाब नहीं। बिलकुल यही हालत कुछ अन्य राजनीतिक दलों की भी है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने अपनी पार्टी के लोकतंत्र को केवल अपने तक ही सीमित कर लिया है। वहां सारे निर्णय केवल ममता बनर्जी ही कर सकती हैं। इसलिए आज पश्चिम बंगाल की हालत भी उन्होंने अपनी पार्टी जैसी ही कर दी है। सारा लोकतंत्र एक समुदाय विशेष के हाथों में है। यहां तक कि भारत की मिट्टी से जुड़े सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रम भी आज नंबर दो की स्थिति में हैं। कभी दुर्गा पूजा पश्चिम बंगाल का प्रमुख त्योहार माना जाता था, लेकिन ममता के राज में इसके मायने बदले हुए दिखाई दे रहे हैं। अन्य धर्मों के त्योहारों पर किसी भी प्रकार का कोई नियंत्रण नहीं रहता, जबकि हिन्दुओं के त्योहारों पर तमाम प्रकार के प्रतिबंध लगा दिए जाते हैं।

भारतीय जनता पार्टी के लगातार बढ़ते जा रहे राजनीतिक प्रभाव को देखकर ऐसा कहा जाने लगा है कि देश का कोई भी राज्य ऐसा नहीं है, जहां भाजपा का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से प्रभाव न हो। अभी हाल ही में दक्षिण के कर्नाटक में भाजपा की प्रभावी उपस्थिति ने सभी राजनीतिक विद्वानों के कान खड़े कर दिए हैं। इसके बाद अब पश्चिम बंगाल में भाजपा की सक्रियता के चलते गैर भाजपा दलों के माथे पर चिंता की लकीरें स्पष्ट दिखाई दे रही हैं। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने पश्चिम बंगाल के दौरे के समय बयान दिया था कि भाजपा को हर हाल में पश्चिम बंगाल में लोकसभा की 22 सीटें चाहिए। पश्चिम बंगाल में लोकसभा की कुल 42 सीटें हैं। इस बयान का मतलब साफ है कि भाजपा पश्चिम बंगाल को बहुत ही गंभीरता से ले रही है। भाजपा के लिए अमित शाह के बयान सकारात्मक परिणाम देने का वजन रखते हैं। पूर्व के चुनाव परिणामों का अध्ययन किया जाए तो इस बात की पुष्टि भी हो जाती है। पश्चिम बंगाल की वर्तमान राजनीतिक स्थिति का अध्ययन किया जाए तो यही कहा जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी देश के सांस्कृतिक जीवन मूल्यों की स्थापना की राजनीति करने को ही अपना ध्येय मान रही है, जबकि पश्चिम बंगाल में सत्ता को संचालित करने वाली मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर सांस्कृतिक जीवन मूल्यों को मिटाने के खुलेआम आरोप लग रहे हैं। इसका मतलब यह है कि पश्चिम बंगाल में सत्ता के संरक्षण में भारतीयता को समाप्त करने का अभियान चल रहा है। बांग्लादेश की सीमा से सटे हुए पश्चिम बंगाल में घुसपैठियों के भी छिपे होने की भी खबर है। आज कई तो ऐसे भी हैं, जिन्होंने अपना भारतीय पहचान पत्र बनवा लिया है। पश्चिम बंगाल में यह सारा खेल केवल वोट बैंक की राजनीति को ही प्रदर्शित करने वाला है। आज पश्चिम बंगाल के कई हिस्से तो ऐसे लगते हैं, जैसे वे भारत के न होकर पाकिस्तान या बांग्लादेश के हैं। वहां भारतीय सांस्कृतिक विचार को प्रदर्शित करने वाला कोई संकेत भी नहीं है। आज भले ही वोट पाने के लिए इस स्थिति को स्वीकार किया जा रहा है, लेकिन कालांतर में यह कितना खतरनाक हो सकता है, इसकी कल्पना हम कश्मीर के उस भाग से कर सकते हैं, जहां से कश्मीरी हिन्दुओं को मार पीट कर भगाया गया। उसके बाद भी घाटी के हालात क्या हैं, सभी को मालूम है। आतंक के विरोध में कार्रवाई करने पर सेना पर पत्थरबाजी की जाती है। इतना ही नहीं आतंकियों को भी समर्थन मिल जाता है। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों को जाने अनजाने सरकार का संरक्षण प्राप्त हो जाता है। आज राजनीतिक दृष्टि से कुछ भी कहा जाए, लेकिन यह सत्य है कि पश्चिम बंगाल खतरनाक स्थिति की ओर अपने कदम बढ़ा रहा है, जिसे रोकने की बहुत ही आवश्यकता है। पश्चिम बंगाल में भाजपा के बढ़ते प्रभाव को देखकर गैर भाजपा दलों ने चर्चा शुरू कर दी है। भाजपा केन्द्र सरकार की उपलब्धियों के सहारे पश्चिम बंगाल की जनता के बीच जाने की तैयारी कर रही है। इससे स्वाभाविक रूप से भाजपा का प्रभाव और बढ़ेगा, फिर अमित शाह द्वारा दिए गए लक्ष्य को आसानी से प्राप्त कर लिया जाएगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)

Updated : 3 July 2018 3:06 PM GMT
Tags:    
author-thhumb

सुरेश हिंदुस्तानी

Swadesh Contributors help bring you the latest news and articles around you.


Next Story
Top