ऐतिहासिक भूलें .. इतिहासबोध और इस्लामिक बहुलता

डॉ. अवधेश त्रिपाठी

महाभारत के समापन पर महर्षि वेदव्यास का यह उद्घोष कि -'जो संसार में है वह महाभारत में है और जो महाभारत में नहीं है वह संसार में नहीं है।Ó यही दर्शाता है। इतिहास जहाँ कालावधि में स्वयं को स्थित करता है वहीं पुराण कालातीत हैं। यदि हम वर्तमान में पढ़ाये जाने वाले इतिहास पर ही दृष्टि केन्द्रित करें तो हम पायेंगे कि हमारे पतन का कारण हम स्वयं ही हैं। आचार्य श्रीराम शर्मा जी ने 'गीता कथाÓ में श्रीमद्भागवत्गीता के र्श्लोक -

काम एष क्रोध एष रजोगुण समुद्भव:।

महाशनो महापाप्मा विद्येनमिह वैरिणम।।

अर्थात्, यह काम ही क्रोध है जो रजोगुण से उत्पन्न होता है। यह भोगों से कभी शान्त न होने वाला महापापी है। तू ! इसे अपना शत्रु जान।

की व्याख्या में लिखा है कि मनुष्य की इच्छाओं का कोई अन्त नहीं है। एक इच्छा पूरी होने पर दूसरी तैयार खड़ी हो जाती है। शत्रु दो तरह के होते हैं - बाहरी और आन्तरिक। बाहरी शत्रु हमें दिखाई देते हैं। अत: उनकी पहचान और उनसे सुरक्षा के उपाय करना आसान है। किन्तु आन्तरिक शत्रु हमारे साथ, हमारे बीच रच-बस कर रहते हैं। हमारा उस ओर कभी ध्यान ही नहीं जाता। बल्कि हम उन्हें अपना सहायक एवं हितैषी मान बैठते हैं। किन्तु वे सिर्फ अवसर की तलाश में रहते हैं। जैसे ही वे सशक्त हुए फिर वे आपको समाप्त करने में किंचित भी विलम्ब नहीं करते।

इतिहास साक्षी है हम बाहरी शत्रुओं और आक्रांताओं के कारण पराजित नहीं हुए थे। हम अपनों के द्वारा, अपनों के कारण पराजित हुए थे। हमारा लोभ, मोह, ईर्ष्या, द्वेष, उदासीनता, स्वार्थ, अनुशासनहीनता, आदि ही हमारे शत्रु बने। हमने ही बाहरी शत्रुओं को आमंत्रित किया। यद्यपि बाद में हम भी उनके द्वारा अपमानित, पीड़ित, नष्ट किए गए। उसके बाद होने वाले अमानुषिक अत्याचार, हत्या, बलात्कार, लूट, विध्वंस, धर्मान्तरण का इतिहास इसका प्रत्यक्ष गवाह है।

जब भारतीय इतिहास की भूलों पर विचार करते हैं तब निम्न भूलें ध्यान में आती हैं जिन्होंने इतिहास की दिशा ही बदल दी -

1. यूनानी सिकन्दर (326 ई. पू.) के आक्रमण के समय केन्द्रीय सत्ता के केन्द्र पाटलीपुत्र पर विलासी और प्रमादी नन्द शासकों का राज्य था। साथ ही सरहदी सीमा पर आपस में झगड़ते छोटे-छोटे जनपद थे। उस समय तक्षशिला के आचार्य चाणक्य की बात न मानते हुए धनानंद ने उनका अपमान किया था।

2. अरब आक्रमण 712 ई. के समय सिंध के हिन्दू राजा दाहिर के सेना नायक का मोहम्मद बिन कासिम के द्वारा राजा बनाये जाने के आश्वासन के चलते विश्वासघात।

3. अफगान गजनी के 1000-1027 ई. के बीच 17 आक्रमणों के समय राजपूत राजाओं की आपसी कलह, अहंकार, झूठे स्वाभिमान, अकर्मण्यता की हद तक ईश्वरवादी होने के चलते एकता का अभाव।

4. मोहम्मद गौरी को पृथ्वीराज चौहान द्वारा 1191 में तराइन के युद्ध में पराजित करने के बाद माफी देना और वापस चले जाने देना।

5. जयचंद का पृथ्वीराज से बदला लेने के लिए गौरी को आमंत्रित करना।

6. राजपूत राजाओं की आपसी फूट और कलह।

7. स्वयं में श्रेष्ठता का भाव और छुआछूत।

8. पानीपत के द्वितीय युद्ध में हेमू की आँख में तीर का लगना और सेना का अनियंत्रित हो जाना।

9. मराठा शासकों में आपसी वर्चस्व की लड़ाई, षड्यंत्र, आधुनिक युद्ध प्रणाली को विकसित न करना एवं कूटनीति का अभाव।

10. अंग्रेजों के शासन में भारतीयों पर अमानुषिक अत्याचार करने वाले, जलियांवाला बाग में गोली चलाने वाले अंग्रेज नहीं थे, वे भारतीय ही थे।

11. स्वातंत्र्योत्तर भारत में -

८ कश्मीर समस्या को संयुक्त राष्ट्र में ले जाना

८चीन जैसे देश पर विश्वास करना।

८ शान्ति की पक्षधरता के चलते सैन्य शक्ति के विकास और सेना के आधुनिकीकरण की उपेक्षा।

८ पंथनिरपेक्षता की गलत व्याख्या। राष्ट्र की दृष्टि में सभी धर्म समान हैं। किन्तु किसी विशेष धर्म को प्रश्रय देना अनुचित।

८समान नागरिक संहिता का न होना

८धारा 370 और 35ए

८भाषाई विवाद को न सुलझाना और राष्ट्रभाषा का विकास न करना। कोई भी भाषा हमें तीन स्तर पर दिखाई देती है - शब्द, लिपि और ध्वनि (उच्चारण)। भारत जैसे विविधता वाले राष्ट्र में सबसे पहले लिपि की एकरूपता चाहिए। जिस प्रकार आज हम मोबाइल पर हिन्दी के शब्दों को अँग्रेजी में टाइप करते हैं। भाषा, बाँधने का एक माध्यम है।

शिक्षा में गुणवत्ता की उपेक्षा

भारत एक पंथनिरपेक्ष, सम्पूर्ण प्रभुसत्ता सम्पन्न लोकतांत्रिक गणराज्य है जो अपने सभी नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, समानता और बन्धुत्व की सुरक्षा को सुनिश्चित करता है। किन्तु गम्भीरता से विचार, मनन एवं चिन्तन करें - क्या इस्लामिक बहुलता अन्य सभी धर्मावलंबी नागरिकों को अपने धर्म के पालन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, स्त्री-पुरुष के अधिकारों की समानता एवं बन्धुत्व के लिए आवश्यक समान न्याय एवं सुरक्षा की सुनिश्चितता उपलब्ध करायेगा ? क्या इस्लाम ने अपने अस्तित्व में आने के 1400 वर्षों में अपने अतिरिक्त किसी अन्य धर्म का सम्मान किया है ? क्या इस्लाम में महिलाओं को समान अधिकार प्राप्त हैं ? क्या इस्लाम में अपने धर्म की बुराइयों के प्रति अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है? क्या उसके अनुयायी (अपवाद को छोड़कर) मजहब से ऊपर राष्ट्र की सम्प्रभुता को स्वीकारते हैं ? क्या विश्व पटल पर एक भी ऐसा इस्लामिक देश है जहाँ दूसरे धर्मावलंबियों के लिए समान व्यवहार और अधिकार हों ? क्या कोई ऐसा देश है जहाँ इस्लामी शरणार्थियों ने अराजकता न फैलाई हो? धर्म के नाम पर विश्व में जहाँ-जहाँ सामूहिक एवं व्यवस्थित रूप से आतंकी गतिविधियाँ हो रही हैं, उनमें इस्लाम के अनुयायी ही क्यों निकलते हैं ?

मुफ्त की सुविधाएं आज आपको आकर्षक लगती हैं। किन्तु क्या आपने कभी यह विचार किया कि ऐसी सुविधाओं का दूरगामी परिणाम क्या होगा ? मैं एक प्रश्न पूछता हूँ, क्या कोई भी माता-पिता अपने बच्चे को निठल्ला घर में बैठे-बैठे खाते हुए, ऐशोआराम से जिंदगी गुजारते हुए देखकर पुलकित और प्रसन्न होता है ?

नि:सन्देह जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को सभी के लिए सुलभ करना शासन का कर्तव्य है ; किन्तु इसके लिए दूरगामी योजना के तहत जनसंख्या नियंत्रण, प्राकृतिक संरक्षण के प्रयासों का किया जाना आवश्यक है। किसी भी व्यक्ति को बिना कुछ किए-धरे कुछ भी नहीं मिलना चाहिए, सिर्फ आपात परिस्थिति को छोड़कर।

बदलते वैश्विक परिदृश्य में युद्ध का स्वरूप बदल गया है। अब युद्ध कूटनीति और अर्थनीति से लड़े जाते हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में शस्त्र का स्थान मतपत्र ने ले लिया है। संख्याबल का महत्व बुद्धिबल और क्षात्रबल से ज्यादा हो गया है। जिसके पास जितने ज्यादा मत वह उतना ही सशक्त। इसलिए अपनी कीमत को पहचानो, अपने मत के महत्व को समझो, आपकी अकर्मण्यता और आलस्य आपको रसातल में पहुँचा देगा। वहीं आपकी जागरूकता और कुछ मिनटों की सक्रियता आपका भविष्य बदल सकती है।

इसे स्वीकारने में मुझे कोई गुरेज नहीं है कि भ्रष्टाचार भारतीय राजनीति ही नहीं जन-मानस के जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। क्योंकि भ्रष्टाचार सिर्फ पैसे के लेन देन तक ही सीमित नहीं है, वह किसी भी प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष लाभ के लिए कर्तव्य की अवहेलना है। यही कारण है कि हम बातें चाहे जितनी करें, हम किसी न किसी रूप में भ्रष्ट हुए हैं। अब भ्रष्टाचारियों के बीच मात्र सापेक्षता का भेद है। सिर्फ वर्तमान शीर्ष नेतृत्व और कुछ अन्य लोगों को छोड़कर।

ऐसे में विचारणीय है कि एक राज्य या देश और एक राष्ट्र में अन्तर है। राज्य या देश का आधार भौगोलिक सीमा और शासन की व्यवस्था है। पर राष्ट्र का आधार सांस्कृतिक एकता है। जब राष्ट्र ही नहीं रहेगा तब आप कहाँ रहेंगे ?

भारत जमीन का टुकड़ा नहीं,

जीता जागता राष्ट्रपुरुष है।

हिमालय मस्तक है, कश्मीर किरीट है,

पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं।

पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं।

कन्याकुमारी इसके चरण हैं,

सागर इसके पग पखारता है।

यह चन्दन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है,

यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है।

इसका कंकर-कंकर शंकर है,

इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है।

हम जियेंगे तो इसके लिये

मरेंगे तो इसके लिये।

- अटल बिहारी वाजपेयी

मैं पुन: यह दोहराना चाहूँगा कि -

सबसे बड़ी गलती, गलती से न सीखना है।

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