Home > विशेष आलेख > हरियाणा की राजनीति में रंग दिखाएगी चौटाला परिवार की जंग

हरियाणा की राजनीति में रंग दिखाएगी चौटाला परिवार की जंग

इनेलो 1987 में उस वक्त ऐसे ही दोराहे पर खड़ी थी, जब पूर्व उपप्रधानमंत्री देवीलाल ने अपने पुत्र ओमप्रकाश चौटाला को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित किया था।

हरियाणा की राजनीति में रंग दिखाएगी चौटाला परिवार की जंग
X

- योगेश कुमार गोयल

17 नवम्बर को जींद में इनेलो के पूर्व प्रधान महासचिव डॉ. अजय सिंह चौटाला द्वारा 9 दिसम्बर को नई पार्टी के गठन की घोषणा के साथ ही हरियाणा की मुख्य विपक्षी पार्टी इनेलो अंततः दोफाड़ हो गई है। अबर दोनों भाइयों अजय तथा अभय चौटाला की राहें जुदा-जुदा हो गई हैं। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला की पार्टी इनेलो की 7 अक्तूबर को गोहाना में पार्टी संस्थापक चौ. देवीलाल के जन्मदिवस के अवसर पर 'सम्मान दिवस रैली' आयोजित हुई थी। इस विशाल रैली में अभय चौटाला की हुई हूटिंग का मामला पार्टी के विभाजन का इतना बड़ा कारण बन जाएगा, किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था। अभय चौटाला ओमप्रकाश चौटाला के छोटे पुत्र हैं और दुष्यंत व दिग्विजय अभय के भतीजे हैं। दुष्यंत हिसार से सांसद हैं और दिग्विजय पार्टी के छात्र संगठन 'इनसो' के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।

इनेलो 1987 में उस वक्त ऐसे ही दोराहे पर खड़ी थी, जब पूर्व उपप्रधानमंत्री देवीलाल ने अपने पुत्र ओमप्रकाश चौटाला को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित किया था। हालांकि तब पार्टी पर देवीलाल की मजबूत पकड़ के चलते पार्टी टूटने से बच गई थी। 1989 में देवीलाल केन्द्र की राजनीति में सक्रिय हो गए थे और उनके उपप्रधानमंत्री बनने के पश्चात् उनके तीन बेटों जगदीश सिंह, रणजीत सिंह और ओमप्रकाश चौटाला में से रणजीत और ओमप्रकाश के बीच हरियाणा में उनकी राजनीतिक विरासत को लेकर जंग शुरू हुई थी। उन परिस्थितियों में देवीलाल ने कड़ा निर्णय लेते हुए पार्टी की बागडोर ओमप्रकाश चौटाला के हवाले कर दी थी, जिसके बाद रणजीत की बगावत का असर पार्टी, संगठन और उनकी सरकार पर भी पड़ा था। उस समय रणजीत की नाराजगी के चलते उनके समर्थन में कई कैबिनेट मंत्रियों ने इस्तीफे दे दिए थे किन्तु तब पार्टी सुप्रीमो चौ. देवीलाल की हरियाणा की जनता पर इतनी मजबूत पकड़ थी कि ओमप्रकाश चौटाला को उत्तराधिकारी बनाने के उनके फैसले का जनता के बीच कोई खास विरोध नहीं हुआ था।

आज स्थिति बिल्कुल विपरीत है। ओमप्रकाश चौटाला के जेल में रहते पार्टी के साथ-साथ परिवार पर भी उनकी पकड़ काफी ढीलीली हो गई है। उनमें अब देवीलाल जैसा वो सामर्थ्य नजर नहीं आता कि वे अपने फैसलों को बगैर किसी प्रतिरोध के लागू करा सकें। जहां तक पार्टी के वर्तमान संकट की बात है तो गोहाना रैली में दिग्विजय और दुष्यंत के समर्थकों द्वारा नारेबाजी और हुड़दंगबाजी को लेकर ओमप्रकाश चौटाला द्वारा दोनों को अनुशासनहीनता के आरोप में कारण बताओ नोटिस जारी किए गए थे। अंततः दीवाली से चंद दिन पहले 3 नवम्बर को दोनों को पार्टी से निष्कासित करने का फैसला सुना दिया गया था। तब दो ही दिन बाद दिग्विजय और दुष्यंत के पिता डॉ. अजय सिंह चौटाला 5 नवम्बर को 14 दिनों की पैरोल पर तिहाड़ से बाहर आ रहे थे। हालांकि देवीलाल परिवार के पुराने मित्र पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल द्वारा भी मध्यस्थता की कोशिशें की गईं किन्तु मामला सुलझने के बजाय बिगड़ता ही गया। पिछले दिनों जिस प्रकार इनेलो के प्रधान महासचिव अजय चौटाला को भी पार्टी से निष्कासित कर दिया गया, उससे पारिवारिक विवाद सुलझने की सारी उम्मीदें धराशायी हो गई थीं। उसकी परिणति अब अजय की नई पार्टी बनाने की घोषणा के रूप में सामने आ चुकी है।

पार्टी सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला और उनके बड़े बेटे अजय चौटाला हरियाणा के बहुचर्चित जेबीटी टीचर घोटाले में जेल की सलाखों के पीछे दस वर्षों की सजा काट रहे हैं। दोनों के जेल जाने के बाद से ही अभय चौटाला ही पार्टी की कमान संभाल रहे हैं, जिन्हें यह दायित्व उनके पिता ने ही सौंपा था। हालांकि ओमप्रकाश चौटाला के बड़े बेटे अजय चौटाला ही उनके अघोषित राजनीतिक वारिस माने जाते रहे थे। चूंकि वो भी जेल की सजा काट रहे हैं, इसीलिए अजय के पुत्र दुष्यंत अपने भाई दिग्विजय के साथ मिलकर उनकी इस विरासत को सँभालने के लिए इनसो के माध्यम से युवाओं को इनेलो के साथ जोड़ने में सक्रिय रहे। अभय चौटाला आक्रामक छवि के नेता रहे हैं। इसके विपरीत उनके पुत्र दुष्यंत अपनी सौम्य और सादगी भरी छवि के चलते तेजी से युवाओं के बीच लोकप्रिय होते गए। बहुत से समर्थक युवा तो उन्हें विभिन्न जनसभाओं में भावी मुख्यमंत्री के रूप में भी प्रोजेक्ट करने लगे थे, जो उनके चाचा अभय को रास नहीं आया। अभय को दुष्यंत के पर कतरने के लिए एक अच्छे अवसर की तलाश थी, जो उन्हें गोहाना रैली के दौरान पार्टी सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला की मौजूदगी में सहजता से मिल भी गया।

दुष्यंत और दिग्विजय के खिलाफ की गई कार्रवाई के बाद जिस प्रकार उनके समर्थन में पार्टी के कई विधायक, पूर्व विधायक तथा अन्य पदाधिकारी खड़े नजर आए और हजारों कार्यकर्ताओं ने इनके समर्थन में अपने इस्तीफे सौंप दिए, उससे पार्टी पर संकट के बादल किस कदर गहरा गए थे, अनुमान लगाना कठिन नहीं था। राज्य के 22 जिलों में से एक भी जिला ऐसा नजर नहीं आया, जहां से पार्टी कार्यकर्ताओं या पदाधिकारियों द्वारा इस्तीफे न दिए गए हों। इनेलो सुप्रीमो ने जेल वापस लौटने से ठीक पहले अभय की राह में रोड़ा बनते दिख रहे दुष्यंत और दिग्विजय के निष्कासन का फैसला लिया। उसके बाद उन्हीं के इशारे पर अजय चौटाला को भी पार्टी से बाहर कर दिया गया। साफ हो गया था कि इनेलो सुप्रीमो द्वारा अपने राजनीतिक वारिस के रूप में अभय सिंह चौटाला के नाम पर अधिकारिक मोहर लगा दी गई है।

हरियाणा के सबसे पुराने राजनीतिक घरानों में से एक चौटाला परिवार का यह पारिवारिक क्लेश उस समय जगजाहिर हुआ था, जब पार्टी सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला पैरोल पर तिहाड़ से बाहर थे। करीब चार वर्ष लंबे अंतराल के बाद उन्होंने गोहाना रैली में किसी सार्वजनिक मंच को साझा किया था। उस रैली में उनके बड़े बेटे अजय चौटाला के दोनों पुत्रों दिग्विजय और दुष्यंत के समर्थकों तथा पार्टी की युवा इकाई के कार्यकर्ताओं द्वारा उस वक्त जबरदस्त हूटिंग की गई, जब मंच पर अभय चौटाला भाषण देने सामने आए। हालांकि भीड़ की दृष्टि से इनेलो की यह रैली रिकॉर्डतोड़ थी। रैली में निरंतर दुष्यंत के समर्थन में नारेबाजी होती रही और उस नारेबाजी के कारण अभय अपनी बात नहीं रख पाए। अभय को बोलने ही नहीं दिया गया, जिसके लिए दिग्विजय और दुष्यंत को जिम्मेदार मानते हुए उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। पार्टी विरोधी ताकतों से मिलकर साजिश रचने और अपनी जिम्मेदारी सही ढंग से न निभाने के बहाने युवा इनेलो और इनसो की राष्ट्रीय व प्रदेश इकाई को भी भंग कर दिया गया। इस पर एक नया विवाद खड़ा हो गया क्योंकि जिस इनसो की सभी इकाइयों को अभय चौटाला और ओमप्रकाश चौटाला द्वारा भंग किया गया, उसका गठन 2003 में अजय चौटाला द्वारा किया गया था। उसके संयोजक अजय ही हैं और कहा जाता है कि उसे सिर्फ दो ही तरीकों से भंग किया जा सकता है, एक संयोजक के कहने पर और दूसरा इस संगठन की कार्यकारिणी के बहुमत के फैसले के आधार पर। दुष्यंत का कहना है कि इनसो भले ही वैचारिक तौर पर इनेलो से संबद्ध रहा है किन्तु यह छात्र संगठन इनेलो से जुड़ा नहीं है। इनेलो द्वारा चुनाव आयोग को दिए संगठन के विवरण में भी इसे पार्टी का फ्रंटल संगठन नहीं बताया गया है। अजय द्वारा ही 2002 में कांग्रेस पार्टी के कांग्रेस सेवादल की ही तर्ज पर 'जननायक सेवादल' का गठन किया गया था। अब संभावना जताई जा रही है कि दुष्यंत और दिग्विजय इसी के बैनर तले अपनी राजनीतिक लड़ाई की शुरुआत करेंगे।

दादा-पोतों, भाई-भाई और चाचा-भतीजों की इस राजनीतिक जंग ने इस परिवार की ऐसी लुटिया डुबो दी है कि हरियाणा की सियायत में इस परिवार के सत्ता में वापस लौटने की संभावनाओं पर फिलहाल तो विराम लग गया है। इनेलो पिछले 14 वर्षों से सत्ता से बाहर है। इस बार बसपा के साथ उसका गठबंधन होने के बाद से दोनों प्रमुख दलों भाजपा और कांग्रेस में चिंता का माहौल स्पष्ट देखा जा रहा था। भाजपा की खट्टर सरकार के प्रति हरियाणा में प्रबल नाराजगी हर तरफ देखी जा रही है। कांग्रेस आंतरिक लड़ाई की शिकार है। ऐसे में इनेलो आशा की किरण बनकर पुनः तेजी से उभर रही थी। अब चौटाला परिवार की फूट ने पार्टी का सारा खेल बिगाड़ दिया है।

Updated : 20 Nov 2018 3:58 PM GMT
Tags:    
author-thhumb

Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


Next Story
Top