कठोर जीवन का परिपालन गुरुजी की विशेषता थी

कठोर जीवन का परिपालन गुरुजी की विशेषता थी
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पुण्य स्मरण दिवस

सुबह का समय था । स्नान, संध्या से निवृत्त होकर पूजनीय माधव सदाशिव गोलवलकर 'श्री गुरुजी (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक) संघ कार्यालय (डॉ. हेडगेवार भवन, महाल) के कक्ष में बैठे थे । बगल में श्री कृष्णाराव मोहरील पत्र व्यवहार देख रहे थे। श्री गुरूजी डाक के द्वारा प्राप्त पत्र पढ़ रहे थे। इतने में एक स्वयंसेवक दौड़ा-दौड़ा आया और उसने श्रीगुरूजी से कहा कि, जल्दी घर चलो, ताईजी (श्री गुरुजी की मातु श्री) का स्वास्थ्य एकदम बिगड़ गया है । श्री गुरुजी और कृष्णराव आदि उठकर तेजी से नागोबा की गली में अपने घर पहुंचे । जाते समय पांडुरंग पंत क्षीरसागर ने एक स्वयंसेवक को डॉक्टर महोदय को बुला लाने के लिये भी भेज दिया । श्री गुरुजी के घर पहुंचते समय डॉ. पांडे भी आ पहुंचे । उन्होंने ताईजी का स्वास्थ्य देखा और कहा कि,अभी तो कुछ कहा नहीं जा सकता, परंतु स्वास्थ्य बहुत बिगड़ गया) है । प्राथमिक उपचारों से बेहोशी कुछ कम हुई। डॉ. पांडे ने कहा कि तुरन्त गरम कॉफी दीजिये । इस समय ताजगी के लिये कुछ गरम पेय चाहिये । ताईजी बोल नहीं सकती थी, अपने हाथ से कुछ इशारा भी नहीं कर सकती थी । परन्तु आखों से इशारा कर रही थी अपने दाहिने हाथ की ओर और किसी के ध्यान में यह बात नहीं आयी, परन्तु श्री गुरूजी ने कहा, ताईजी इशारे से कह रही हैं कि उनके नियम के अनुसार जब तक दाहिने हाथ पर पार्थिव (श्री शिव लिंग की प्रतिमा) पूजा नहीं होती तब तक वह कुछ भी ग्रहण नहीं करेगी । पार्थिव पूजा स्वयं ताईजी तो कर नहीं सकती थी । इसलिये श्री गुरुजी ने मधु टिकेकर (श्री गुरूजी का भांजा) को तुरन्त स्नान कर, पार्थिव तैयार कर, ताईजी के हाथ पर रखकर पूजा करने को कहा। पूजा होने के पश्चात् ही ताईजी ने कॉफी ली । श्री गुरुजी के पिताजी श्री भाऊजी भी ऐसे ही आग्रही कर्मनिष्ठ थे । ऐसे कर्मठ माता-पिता के संस्कार श्री गुरुजी को बचपन से स्वाभाविक रूप से प्राप्त थे।

पूजनीय डॉक्टरजी की सेवा सुश्रूषा

परमपूजनीय डॉक्टर जी के संपर्क में श्री गुरूजी, एक अधिकारी के नाते नहीं आये थे। वहां भी उनके संपर्क का आरंभ सेवा-शुश्रूषा कार्य से ही हुआ था। डॉक्टरजी बहुत बीमार थे । नासिक (महाराष्ट्र) में उनका औषधोपचार चल रहा था। डॉक्टर जी की सेवा-सुश्रूषा एक कठिन, कष्टप्रद काम था। उनको बहुत पसीना आता था। हर 20 -25 मिनिट के पश्वात बनियान गीली हो जाने से बदलनी पड़ती थी। दवा पानी, परहेज, यह सब कुछ श्री गुरूजी ही देखते थे । इस सेवा कार्य का अनुभव कर डॉक्टर जी ने उनकी क्षमता को समझ लिया था। स्वयं का कठोर जीवन और कर्म कठोर लोगों से पाला पड़ना, यही विशेषता श्री गुरूजी के जीवन में हम देखते हैं ।

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