अलविदा धर्मेंद्रः अभिनय अमर रहेगा...

अलविदा धर्मेंद्रः अभिनय अमर रहेगा...
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सिनेमा संसार को अपनी अदाकारी, जोशीले संवाद और ही-मैन की छवि से अलग पहचान देने वाले, लुधियाना के किसान परिवार में जन्मे फिल्म अभिनेता धर्मेंद्र (कृष्ण देओल) ने फिल्म प्रशंसकों और दर्शकों के दिलों पर लंबे समय तक राज किया। अभिनेता से नेता बने सांसद धर्मेंद्र ने राजनीति की पारी भी उतनी ही संजीदगी से निभाई थी। सोमवार को अभिनेता धर्मेंद्र के इस चकाचौंध भरी दुनिया को अलविदा कहकर अंतिम यात्रा पर निकल जाने ने उन असंख्य प्रशंसकों को दुखी कर दिया, जो अपने सामान्य जीवन और बातचीत में उनके फिल्मी संवादों को बार-बार दोहराकर उन्हें सच्चे अर्थों में प्यार देते थे।

किसी भी अभिनेता की सफलता यही है कि उसके संवाद और अभिनय दशकों तक याद रहें और आम जीवन का हिस्सा बन जाएं। अभिनेता धर्मेंद्र ने अपने योगदान से यही अर्जित किया। जैसे ही उनके अस्वस्थ होने की खबर सामने आई, प्रशंसक बेचैन होकर उनके लिए दुआएँ करने लगे थे, और वे हाल ही में अस्पताल से स्वस्थ होकर घर भी लौट आए थे। लेकिन इस बार ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था। सोमवार को आई दुखद सूचना ने पूरे देश और उनके चाहने वालों को गमगीन कर दिया।

अभिनेता धर्मेंद्र की पहली फिल्म दिल भी तेरा हम भी तेरे वर्ष 1960 में रिलीज़ हुई थी, जिसके लिए उन्हें मात्र 51 रुपये मेहनताना मिला था। बाद में उन्होंने कई हिट फिल्में दीं-फूल और पत्थर (1966), ममता (1966), अनुपमा (1966) और आए दिन बहार के (1966) प्रमुख हैं। 1968 के बाद भी उन्होंने शिखर, आंखें, इज्जत और मेरे हमदम मेरे दोस्त जैसी सफल फिल्में दीं।

उन्होंने शोले, चुपके चुपके और सत्यकाम में अपने अभिनय का लोहा मनवाया। बाद के वर्षों में वे लाइफ इन ए मेट्रो, यमला पगला दीवाना जैसी फिल्मों में सक्रिय रहे। आने वाली फिल्म इक्कीस में भी वे नज़र आने वाले थे। धर्मेंद्र अब तक अपने फिल्मी करियर में 300 से अधिक फिल्मों में अभिनय कर चुके थे।

कृषक परिवार में जन्मे धर्मेंद्र शुरुआत से ही पढ़ाई में संघर्ष करते रहे। 13 वर्ष की उम्र में उन्हें अहसास हुआ कि वे सितारों के बीच रहना चाहते हैं, और उन्होंने आईने के सामने दिलीप कुमार जैसा अभिनय करने की प्रैक्टिस शुरू कर दी। नौकरी करने लगे तब भी रात में यही अभ्यास जारी रहता था। “मेहनत करने वालों की हार नहीं होती”-धर्मेंद्र ने अपने पूरे जीवन से इस पंक्ति को सच साबित किया।

थोड़ी सी असफलता या थोड़ी सी सफलता से कभी विचलित न होने का संदेश भी उन्होंने अपने अभिनय सफर के उतार-चढ़ाव से दिया। तभी तो बॉलीवुड में उनकी पहचान ‘ही-मैन’ के रूप में बनी।

कहते हैं कि अभिनय में असफल होने की संभावना को देखते हुए धर्मेंद्र ने एक वैकल्पिक योजना भी तैयार कर रखी थी। उन्होंने अपनी पहली कार इस सोच के साथ खरीदी थी कि यदि कभी इंडस्ट्री में काम न मिला, तो वे टैक्सी ड्राइवर बन जाएंगे।

शोले फिल्म ने अमिताभ-धर्मेंद्र की ‘जय-वीरू’ जोड़ी को अमर कर दिया। फिल्मी पटकथा से हटकर, इस बार ‘वीरू’ ने “मरना कैंसिल” नहीं किया…

फिल्म का प्रसिद्ध संवाद-जब वीरू पानी की टंकी पर चढ़कर बसंती की मौसी को मनाने की कोशिश करता है-हर प्रशंसक को याद है। जब मौसी मान जाती हैं, तो वीरू कहता है, “अब मरना कैंसिल…” लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। इस बार अभिनेता धर्मेंद्र-हमारे ‘वीरू’-ने दुनिया को अलविदा कह दिया।

सिनेमा में उनका योगदान कालजयी रहा है। उनका जाना एक युग का अवसान है।

ओम शांति…

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