आस्था, तपस्या व संघर्ष हुआ सार्थक

आस्था, तपस्या व संघर्ष हुआ सार्थक
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कुछ साल पहले अयोध्या संघर्ष, अराजकता और बदहाली का शिकार बन चुकी थी, लेकिन आज प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में अयोध्या उत्सवों की वैश्विक राजधानी बन गई है। इन उत्सवों की श्रृंखला में आज का दिन स्वर्ण अक्षरों में तब दर्ज हो गया, जब श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के 191 फीट ऊंचे मुख्य शिखर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने धर्म ध्वज की पताका फहराई। आज का दिन हर भारतवासी के लिए आत्मगौरव और राष्ट्र–गौरव का दिन है। यह एक नए युग की शुरुआत है। आज का दिन संकल्प और विश्वास के सूर्योदय का प्रतीक है।

श्रीराम मंदिर पर फहराता केसरिया ध्वज शक्ति, न्याय और राष्ट्रधर्म का प्रतीक है। यह विकसित भारत की संकल्पना का प्रतीक भी है, क्योंकि संकल्प का कोई विकल्प नहीं होता। हम एक नए भारत का दर्शन कर रहे हैं। यह केवल एक ध्वज नहीं, बल्कि हमारी आस्था, अध्यात्म, सांस्कृतिक विरासत और पर्यावरणीय संदेशों का अद्भुत प्रतीक भी है।

यह दिन दिव्य मिलन का भी प्रतीक है। यह नौवें सिख गुरु, गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान दिवस को भी दर्शाता है, जिन्होंने 17वीं सदी में अयोध्या में लगातार 48 घंटे तक ध्यान किया था, जिससे इस दिन का आध्यात्मिक महत्व और बढ़ जाता है। यह केवल एक चार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और राष्ट्रीय प्रतीकात्मकता के महोत्सव की परिणति है।

यह ध्वजारोहण सिर्फ एक रस्मी चलन नहीं है। यह वह प्रतीकात्मक कदम है, जो दशकों की आस्था, तपस्या, संघर्ष और इंतजार को सार्थक रूप देता है। ध्वज न केवल मंदिर की स्थापत्य पूर्णता को दर्शाता है, बल्कि यह संदेश भी देता है कि राम मंदिर अब आधार से लेकर कलश तक हर दृष्टि से पूर्ण हो चुका है। यह ध्वज न केवल राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक बनेगा, बल्कि धार्मिक सद्भाव और सांस्कृतिक संपन्नता का संदेश भी विश्व को देगा- एक ऐसा समन्वय जो भारत की विविध सांस्कृतिक पहचान को प्रतिबिंबित करता है।

इस ध्वजारोहण समारोह की गूंज केवल मंदिर परिसर तक सीमित नहीं रहेगी। यह वह क्षण है जब भारत अपनी सांस्कृतिक गहराई, आत्मिक शक्ति और राष्ट्रीय एकता का पुनरावलोकन करेगा। कई दशकों की प्रतीक्षा, संघर्ष और तपस्या के बाद यह आयोजन यह पुष्टि करता है कि रामनगरी सिर्फ पुरातन मंदिरों का शहर नहीं, बल्कि नए भारत के उस आत्मविश्वास का प्रतीक है जिसका निर्माण हो चुका है।

ध्वजारोहण केवल धार्मिक महोत्सव तक सीमित नहीं है। यह अयोध्या को विश्व स्तरीय तीर्थस्थल और पर्यटन हब बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। मंदिर परिसर में पारंपरिक मंदिरों के साथ-साथ आधुनिक सुविधाओं का विकास हो रहा है। वैदिक अनुष्ठानों, तीर्थयात्राओं और सांस्कृतिक संरचनाओं के संयोजन से अयोध्या न केवल यात्रियों का आध्यात्मिक गंतव्य, बल्कि आर्थिक वृद्धि का केंद्र भी बन गया है।

श्रीराम जन्मभूमि मंदिर केवल शिलाओं का समूह नहीं है। यह अनगिनत भावनाओं का इतिहास है, संतों की साधना है, समाज का समर्पण है और उस राष्ट्र का जीवंत स्वरूप है जिसने सत्य को कभी छोड़ा नहीं। यह मंदिर केवल श्रद्धा का केंद्र नहीं, बल्कि जीवन–पथ का दीपस्तंभ है, जो आने वाले युगों को बताता रहेगा कि धर्म केवल पूजा की विधि नहीं, बल्कि आचरण की दृष्टि और समाज का आधार है।

प्रभु श्रीराम से यही कामना है कि वे हर हृदय में मूल्य बनकर बसें और उनकी करुणा, मर्यादा और धर्मबुद्धि हमारे जीवन को सतत आलोकित करती रहे।

इस ध्वजारोहण को लेकर देश के भीतर कुछ लोग इसे महज़ धार्मिक आयोजन बताकर प्रधानमंत्री की आलोचना भी कर रहे हैं, लेकिन उन्हें समझना चाहिए कि देश अब बदल रहा है। देश में उन्नति के रास्ते खुलते जा रहे हैं। देश में रामराज्य की स्थापना के द्वार तेजी से खुल रहे हैं। रामराज्य का वास्तविक आशय ऐसे लोगों को समझना होगा।

राम मंदिर निर्माण से पहले और इसके निर्माण के बाद की अयोध्या अब काफी बदल चुकी है। उत्तर प्रदेश के बड़े शहरों में अब अयोध्या भी शुमार है।

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