विशेष आलेख: पर्यावरण का क्षरण - जिम्मेदार कौन?

प्रो. नीलिमा गुप्ता: वैश्विक स्तर पर 3.2 बिलियन लोगों के प्रभावित होने के साथ, पर्यावरण क्षरण दुनिया के 30% से अधिक भूमि क्षेत्र और विकासशील देशों में 40% भूमि को प्रभावित कर रहा है।
माना जाता है कि भूमि क्षरण 1.5 बिलियन लोगों के जीवन को प्रभावित करता है और मानवजनित गतिविधियों और जलवायु परिवर्तन के कारण हर साल 15 बिलियन टन उपजाऊ मिट्टी नष्ट हो जाती है।
पिछले 10 वर्षों में औसत तापमान 1.1 डिग्री बढ़ गया है. 2030 तक 1 डिग्री तापमान और बढ़ने की सम्भावना है. समुद्री स्तर 4.4 एमएम प्रति वर्ष बढ़ रहा है और समुद्र में कार्बन डाई ऑक्साइड 380-3 ppm से 402.0 ppm की वृद्धि हुई है। कार्बन डाई ऑक्साइड बढ़ने से समुद्रीय पानी में अम्ल बढ़ने से जलीय मूंगा चट्टान (coral reefs) खतरे में आ गए हैं।
पर्यावरण क्षरण एक गंभीर समस्या है जो पूरे विश्व में फैल रही है। इसके कारण विविध हैं और इसके प्रभाव भी व्यापक हैं। पर्यावरण के क्षरण द्वारा दिनोदिन प्राकृतिक संसाधनों में गिरावट आ रही है। प्रदूषण, वनोन्मूलन, और जलवायु परिवर्तन इस क्षरण के उदाहरण हैं।
पर्यावरण क्षरण एक गंभीर समस्या है जिसका सामना आज पूरी दुनिया कर रही है। औद्योगिक प्रदूषण के कारण, पर्यावरण का तेजी से क्षरण हो रहा है। जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन और पेड़ों की कटाई बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे पर्यावरण का क्षरण भी बढ़ रहा है।
यह जानना आवश्यक है कि इस क्षरण का जिम्मेदार कौन है और क्यों यह क्षरण लगातार बढ़ता जा रहा है?
इस समय भारत की जनसंख्या विश्व भर में सबसे अधिक है। बढ़ती जनसंख्या के कारण प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है, जिससे उनमें कमी आ रही है। वनों की कटाई से जैव विविधता को खतरा है और मिट्टी का क्षरण हो रहा है। वायु, जल और मिट्टी के प्रदूषण से पर्यावरण को भारी नुकसान हो रहा है। पर्यावरण क्षरण का एक कारण तथा जीवाश्म ईंधन के दोहन भी हैं।
कृषि गतिविधियों से मिट्टी का क्षरण, लवणता और पोषक तत्वों की हानि बढ़ती जा रही है। पर्यावरणीय गिरावट से हवा, पानी और मिट्टी जैसे संसाधनों की गुणवत्ता में कमी, पारिस्थितिकी तंत्र का विनाश, आवास का विनाश, वन्यजीवों का विलुप्त होना और प्रदूषण के माध्यम से पर्यावरण की निरंतर गिरावट आना सर्वविदित है।
पर्यावरण में किसी भी परिवर्तन या गड़बड़ी को क्षरण के रूप में परिभाषित किया जाता है जो हानिकारक या अवांछनीय हैं। पर्यावरणीय गिरावट की प्रक्रिया पर्यावरणीय मुद्दों के प्रभाव को बढ़ाती है जो पर्यावरण पर स्थायी प्रभाव छोड़ती है।
पर्यावरण क्षरण के प्रभाव से मिट्टी का क्षरण होता है, उपजाऊ भूमि की कमी होती है और जैव विविधता पर विपरीत प्रभाव से पारिस्थितिक तंत्र को खतरा बढ़ जाता है। जलवायु परिवर्तन से मौसम के स्वरुप में बदलाव होता है और प्राकृतिक आपदाएं बढ़ जाती हैं।
पिछले 10 वर्षों में औसत तापमान 1.1 डिग्री बढ़ गया है। 2030 तक 1 डिग्री तापमान और बढ़ने की सम्भावना है। समुद्री स्तर 4.4 एमएम प्रति वर्ष बढ़ रहा है और समुद्र में कार्बन डाई ऑक्साइड 380.3 ppm से 402.0 ppm हो गया है जिसकी वजह से जलीय अम्ल बढ़ा है तथा जलीय मूंगा चट्टान (coral reefs) को खतरे की सीमा पार कर रहे हैं।
आज तक का सबसे गर्म वर्ष 2024 रहा है और उम्मीद है कि आगे आने वाले समय में मौसम और अधिक गर्म, अम्लीय, समुद्री स्तर में वृद्धि, अधिक तीव्र आंधी, सूखा, प्रजातियों का हनन और अधिक स्वास्थ्य जोखिम भविष्य में दस्तक देंगे।
इस विषम स्थिति में आखिर हमारी जिम्मेदारी क्या है? हमारा दैनिक जीवन कई तरह के प्रदूषण को बढ़ावा देता है, जैसे कि वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण।
हम वनों की कटाई और वनस्पति विनाश में योगदान कर रहे हैं, जिससे जैव विविधता को खतरा है। हम प्लास्टिक का अत्यधिक उपयोग कर रहे हैं, जो पर्यावरण के लिए हानिकारक है। हम तमाम तरह की ऊर्जा की बर्बादी कर रहे हैं, जिससे प्राकृतिक संसाधनों की लगातार कमी हो रही है।
विश्व पर्यावरण दिवस 2025 की थीम ’’प्लास्टिक प्रदूषण को हराना’’ है, जिसका उद्देश्य प्लास्टिक प्रदूषण के प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और इसके समाधान के लिए सामूहिक प्रयासों को प्रोत्साहित करना है।
प्लास्टिक प्रदूषण को हम शिक्षा और जागरूकता, व्यक्तिगत प्रयास तथा स्थानीय सफाई अभियानों में भाग लेकर और दूसरों को भी प्रेरित करके सामूहिक गतिविधियों द्वारा कम कर सकते हैं।
आज वह समय आ गया है कि हम गम्भीरता से सोचें कि हमें क्या करना चाहिए जो हम क्षीण होते हुए पर्यावरण को बचा सकें? हमें पर्यावरण के अनुकूल जीवनशैली अपनानी चाहिए, जैसे कि ऊर्जा-कुशल उपकरणों का उपयोग करना और प्लास्टिक का उपयोग कम करना।
‘एक राष्ट्र, एक मिशनः प्लास्टिक प्रदूषण का अन्त’ की भावना को व्यापक रुप देना होगा। हमें वृहद स्तर पर वृक्षारोपण कर वनों की सुरक्षा करनी चाहिए। प्रदूषण को नियंत्रण करने के उचित उपाय करने चाहिए, जैसे कि वाहनों का उपयोग कम करना और स्वच्छ ईंधन का उपयोग करना। हमें पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ानी चाहिए और आम जन मानस को भी जागरूक करना चाहिए।
प्रदूषण नियंत्रण के उपाय करने से पर्यावरण को बचाया जा सकता है तथा ऊर्जा का संरक्षण करके हम पर्यावरण क्षरण को कम कर सकते हैं।
आइए इस पर्यावरण दिवस पर, हम सब मिलकर प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिए कार्य करें, हम पर्यावरण की रक्षा के लिए अपनी जिम्मेदारी निभाएं और एक स्वच्छ और हरित भविष्य के लिए काम करें।
लेखक: प्रो. नीलिमा गुप्ता, कुलपति, डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय (केन्द्रीय विश्वविद्यालय), सागर-470003 (म.प्र.)