मेरी जेल यात्रा: आपातकाल लोकतंत्र और संविधान की ही नहीं, मानवता की भी हत्या…

आपातकाल लोकतंत्र और संविधान की ही नहीं, मानवता की भी हत्या…
X

अजय सेतिया। 19 साल की उम्र तब भी कोई ज्यादा नहीं होती थी। आज भी कोई ज्यादा नहीं होती। मैं सिर्फ 19 साल का था, जिसे इंदिरा गांधी को खतरा पैदा हो गया था, इसलिए मुझे गिरफ्तार कर लिया गया था, मुझे ही क्यों मेरी उम्र के सैंकड़ों युवाओं को जेल की सलाखों में डाल दिया गया था।

सिर्फ जेल में नहीं डाला गया, बल्कि उन युवाओं को टार्चर भी किया गया, जो अंडरग्राऊंड रह कर इंदिरा गांधी के आपातकाल के खिलाफ बिगुल बजा रहे थे, या जिन्होंने आपातकाल के खिलाफ सत्याग्रह किया। पुलिस निरंकुश हो गई थी।

मैं अपने शहर अबोहर के उन 10 लोगों में था, जिनका नाम पहली ही लिस्ट में शामिल था, कारण यह था कि 1975 में ही कुशाभाऊ ठाकरे के मार्ग दर्शन और जनसंघ के राज्यसभा सदस्य सुब्रहमन्यम स्वामी की अध्यक्षता में युवा जनसंघ का गठन हुआ था, मुझे युवा जनसंघ का नगर अध्यक्ष चुना गया था। बस यही कारण था कि 10 लोगों पहली ही सूची में मेरा नाम था। 26 जून की शाम को मुझे सूचना मिल गई थी, कि पुलिस मुझे ढूंढ रही है।

हम सभी पर आरोप था कि हमने शहर में मुख्य चौराहे पर लगी भगत सिंह की प्रतिमा के सामने इक्कठे हो कर इंदिरा गांधी के खिलाफ नारेबाजी की। छापेमारी शुरू हो गयी थी। पूर्व प्रचारक हरि सिंह गुम्बर और मेरी की ड्यूटी रात को दीवारों पर आपातकाल के खिलाफ नारे लिखने और पोस्टर चिपकाने की लगाई गई थी।

हमें एक ऐसे घर में रहते थे, जहां कोई नहीं रहता था, हम दिन भर पोस्टर तैयार करते और रात को दीवारों पर चिपकाते, हमारे साथ सुभाष मैगो नाम का 18 साल का सहयोगी भी था।

दीवारों पर लिखने और पोस्टरों से पुलिस परेशान। मेरे घर वालों पर दबाव बनाया गया, पर मेरे घर वालों को पता ही नहीं था कि मैं कहां हूँ। आखिर पुलिस मेरे पिता जी को पकड़ कर थाने ले गई। तय हुआ कि मैं अगले दिन सुबह शहर के मुख्य बाज़ार में नारे लगाते हुए गिरफ्तारी दे दूं। पुलिस से अगले दिन तक का समय माँगा गया, लेकिन पुलिस मेरे पिता जी को छोड़ने को तैयार नहीं हुई, आखिर मैंने आधी रात को सरंडर कर दिया तो मेरे पिता जी को तुरंत छोड़ दिया गया।

दो दिन तक ऐसे कमरे में रखा गया, जिसके दो तरफ लोहे की सलाखे थीं, कमरे के अंदर ही टायलट था, जिसकी दीवारें सिर्फ तीन फीट ऊँची थी, ताकि बाहर खड़ा सिपाही टायलट में बैठे व्यक्ति को भी देख सके। मुझसे पूछा जा रहा था कि दीवारों पर कौन लिख रहा है, पोस्टर कौन बना रहा है, जनसंघ के लोग कहां छिपे हुए हैं। दो दिन बाद जनसंघ के सात-आठ लोगों को एक साथ लाया गया, उस रात हम सभी को थाने के उसी एक कमरे और एक शौचालय वाले कैदखाने में ही रखा गया। अगले दिन बाकी सबको तो मजिस्ट्रेट के सामने पेश करके जेल भेज दिया गया, लेकिन मुझे मजिस्ट्रेट के सामने पेश ही नहीं किया गया। दो दिन बाद हरि सिंह गुम्बर भी मेरे साथ थाने के कैदखाने में पहुंच चुके थे, और वह 18 साल का सुभाष मैगों भी गिरफ्तार कर लिया गया था। पांचवें दिन हम तीनों पर बर्तन चोरी का आरोप लगा कर हमारा तीन दिन का रिमांड लिया गया था। पुलिस ने राजनीतिक कैदियों पर चोरी जैसे आरोप लगाने में कोई शर्म महसूस नहीं की।

पुलिस का घिनौना चेहरा उस के बाद उजागर हुआ, जब उन्हीं सवालों को लेकर मेरे सारे कपडे उतरवाए गए । चमड़े का पट्टा दिखा कर नंगा उलटा लिटाया गया। । जिस समय मुझ पर बर्तन चोरी का आरोप लगाया गया था, उसी समय पंजाब प्रांत के संघ कार्यवाह मित्रसेन जी पर लुधियाना में भैंस चोरी का आरोप लगा कर रिमांड लिया गया था। उन्हें अमृतसर के कुख्यात यातना केंद्र में दस दिन तक भयंकर यातनाएं दी गई थीं। इन यातनाओं के दौरान न कभी मुझ से बर्तनों के बारे में पूछा गया, न कभी मित्रसेन जी से भैंस के बारे में पूछा गया था। मित्रसेन जी के साथ जो कुछ हुआ, वह तो अंग्रेजों की ओर से क्रांतिकारियों को दी गई यातनाओं को भी मात देने वाली थीं।

मेरा तीन दिन का रिमांड खत्म हुआ, तो फिर अदालत में पेश किया गया। मजिस्ट्रेट यह देख कर भड़क गया कि जो लड़का तीन दिन पहले भगत सिंह की प्रतिमा के सामने इंदिरा गांधी के खिलाफ नारे लगा रहा था, वह तीन दिन बाद बर्तन चोरी में कैसे गिरफ्तार किया गया। मजिस्ट्रेट ने चोरी के केस वाला मामला तो तुरंत खारिज कर दिया था । मुझे इंदिरा गांधी के खिलाफ नारेबाजी करने वाले मामले में फिरोजपुर जेल भेज दिया। जेल के रिकार्ड के अनुसार हरि सिंह गुम्बर , सुभाष मैगो और मैं 11 जुलाई को फिरोजपुर जेल पहुंचे थे। मित्रसेन जी भी अपने दो बार के र्रीमांड की अवधि खत्म होने के बाद फिरोजपुर जे;ल लाए गए थे।

मुझे हैरानी तब हुई थी, जब मेरे फिरोजपुर जेल पहुँचने के सप्ताह भर बाद 16 जुलाई को प्रोफ़ेसर एस.सी.नंदा, प्रोफ़ेसर बृजलाल रिणवा और प्रोफ़ेसर प्रीतम लाल चावला भी जेल पहुंच गए । तीनों को इस लिए पकड़ा गया था, क्योंकि उन्होने “इंदिरा और लोकतंत्र” विषय पर भाषण दिया था, जिस में लाला जगत नारायण मुख्य अतिथि थे। अप्रेल 75 में यह सेमीनार मैंने युवा जनसंघ की ओर से आयोजित किया था। सेमीनार में मंच पर मौजूद चांद कुमार जायसवाल, समेत सभी लोग फिरोजपुर जेल में पहुंच चुके थे। पूर्व मंत्री और हिन्द समाचार पंजाब केसरी के मालिक और संपादक लाला जगत नारायण भी फिरोजपुर जेल में हमारे साथ थे। तीनों प्रोफेसर अक्सर कहा करते थे कि वे मेरी वजह से ही जेल में पहुंछे हैं, और यह सच भी था। हमारी दिनचर्या कराग्रे वसदि लक्ष्मी, कर मध्ये सरस्वती , कर मूले तू गोबिन्दा, प्रभाते कर दर्शनम से शुरू होती थी।

फिर शाखा, ध्वज प्रणाम , चर्चा-परिचर्चा , भोजन-विश्राम , गोष्ठी-कवि सम्मलेन इस तरह दिन बीतते गए । लोक संघर्ष समिति ने 15 जुलाई से 15 अगस्त तक उन लोगों को सत्यागृह कर के गिरफ्तारी देने के लिए कहा था, जिनके खिलाफ वारंट थे, या जिन्हें पुलिस ढूंढ रही थी, लेकिन कुछ लोगों ने आगे बढ़ कर बिना वारंट भी गिरफ्तारी दी। योजनाबद्ध ढंग से दूसरे दौर का सत्याग्रह 14 नवंबर 1975 से 26 जनवरी 1976 तक चला। इस सत्याग्रह में 80 हजार से ज्यादा कार्यकर्ताओं ने लोकतंत्र और संविधान बचाने के लिए गिरफ्तारी दी, जिनमें 35 हजार अकाली दल के सिख कार्यकर्ता थे। सत्याग्रह के बावजूद पुलिस ने उन कार्यकर्ताओं पर चोरी के झूठे केस बना कर रिमांड लिया और यातनाएं दी, जिन्हें पुलिस महीनों से तलाश कर रही थी। कई बार लगता है कि क्या दूसरे दौर के सत्याग्रह का फैसला गलत था, क्योंकि दूसरे दौर के सत्याग्रह में हिस्सा लेने वालों को बहुत ज्यादा यातनाएं दी गईं थी। ऐसे सत्याग्रहियों की संख्या सौ से ज्यादा है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और उत्तराखंड के पूर्व दर्जाधारी राज्यमंत्री हैं)

Next Story