एहसासों की भाषा में डिजिटल संचार

एहसासों की भाषा में डिजिटल संचार
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डॉ. विजया सिंह

भाषा और संस्कृति एक-दूसरे के पर्याय हैं। बिना संस्कृति के भाषा की संरचना नहीं गढ़ी जा सकती और दूसरी ओर बिना भाषा के संस्कृति का निर्माण असंभव है। संस्कृति का ताना-बाना भाषा के तारों के साथ गुंथा हुआ है। क्योंकि संस्कृति जब अन्य कारकों से प्रभावित होती है, तब भाषा पर भी उसके प्रभाव परिलक्षित होने लगते हैं। भाषायी तत्वों पर गौर किया जाए तोभाषा को संरचनात्मक रूप प्रदान करते हैं, उच्चरित ध्वनि और शब्द। लेकिन जब यह कहें कि एक ऐसी भाषा जिसमें न शब्द हों और न ही ध्वनि हो? तब! क्या भाषा बन पाएगी? बिलकुल, संचार के साधनों के द्वारा आज तकनीक में एक ऐसी वैकल्पिक भाषा का जन्म हो चुका है, जिससे पूरी दुनिया में डिजिटल संचार बहुत तेजी से हो रहा है। हालांकि अभी इसे पूरी तरह भाषा कहना थोड़ी जल्दबाज़ी होगी,लेकिन संचार के कारक के रूप का एक विकल्प जरूर कह सकते हैं। दरअसल इस संचार को आगे बढ़ाने का काम किया चित्रों से जुड़ी एक कड़ी ने,जिसे वर्ष 1999 में जापान के एक इंजीनियर शिगेतका कुरिता द्वारा अपनी टीम के साथ मिल कर तैयार किया गया था। यह थी 176 चित्रों की श्रृंखला, जिसे डिजिटल प्लेटफॉर्म पर बातचीत में शामिल किया गया। इस चित्रात्मक रूप ने बढ़ते हुए डिजिटल संचार को खूब गति प्रदान की।चूंकि इसकी शुरुआत जापान में हुई थी इसलिए नाम रखा गया 'इमोजीÓ। यह माना जाता है कि 'ईÓ का अर्थ चित्र और 'मोजीÓ का अर्थ पात्र या कैरेक्टर्स होता है जापानी भाषा में। इस तरह से इमोजी का जन्म हुआ। इसके लिए आज विश्व भर में इसके दिवस को मनाने का चलन भी शुरू हो चुका है। वर्तमान में पूरी दुनिया में 17 जुलाई को विश्व इमोजी दिवस के रूप में मनाया जाना, इसके महत्व को दर्शाता है। विभिन्न भावों को व्यक्त कराते ये नन्हें पात्र जब सोशल मीडिया के स्क्रीन पर आते हैं तब अहसासों और भावनाओं के संचार को एक नया रूप मिलता है। युवाओं के बीच इमोजी, आज के डिजिटल संसार में अहसासों को व्यक्त करने का सबसे सशक्त माध्यम बन रहा है। पॉपुलर कल्चर कहें, संचार क्रांति कहें या नेटिजन्स का भाषा-व्यवहार कहें, इन सब कारणों से अहसासों को संचरित करने में इमोजी ने आज भाषा के रूप में आधार प्राप्त कर लिया है। आज जब आप किसी को कोई हँसाने वाले संदेश भेजते हैं और उधर से लिखित टेक्स्ट के रूप में 'हहहाहाÓ का जवाब आता है या दूसरी ओर कोई हंसने वाली इमोजी आती है तब आप खुद तय कर सकते हैं कि इन दोनों में से कौन सा संदेश आपके अहसासों के नजदीक तक पहुंचता है।यही कारण है कि इसकी बढ़ती प्रसिद्धि के बाद वर्ष 2010 में इमोजी का यूनिकोड वर्जन बना, जिससे प्रयोग सुगम हुआ। लेकिन फिर भी इन चित्रात्मक पात्रों को समझने मेंअभी भी कई कठिनाइयाँ थी। इसके बाद ऑस्ट्रेलियाई ब्लॉगर जेरमी बर्ज द्वारा 17 जुलाई, 2013 को इमोजीपीडिया बनाया जाना फिर 'इमोजीÓ शब्द को ऑक्सफोर्ड की डिक्शनरी में शामिल किया जाना और पुन: इसके एक साल बाद 17 जुलाई, 2014 को पहला वर्ल्ड इमोजी-डे मनाया जाना इमोजी की बढ़ती प्रसिद्धि में एक के बाद एक कड़ियों का जुड़ता चला जाना है। बाद के वर्षों में यानि 2014 में गुगल, माइक्रोसॉफ्ट, फेसबुक और ट्विटर ने अपने-अपने विशेष इमोजी प्रस्तुत किए। वर्ष 2015 में 'इमोजीÓ को वर्ड ऑफ द ईयर चुने जाने ने भाषायी संचार के क्षेत्र में एक नये विमर्श को जन्म दिया। इमोजी का स्थान डिजिटल संचार के लिए स्थायी बन गया है, ऐसा कम से कम आज के परिदृश्य को देख तो कहा ही जा सकता है। आज इमोजी न सिर्फ हँसता चेहरा है बल्कि सोशल मीडिया की भाषा में आज अलग- अलग प्रकार के इमोटिकॉन प्रतीक चिह्न को लेकर एक विशेष प्रकार की भाषा का कारक बन चुका है। इमोजी का डिजिटल संचार में शामिल होना यह दर्शाता है कि सोशल मीडिया की भाषा का मुख्य काम संचार करना है। इमोजी की भाषायी चर्चा का अर्थ ही है सोशल मीडिया की भाषा पर भी बात करना। संचार की इस भाषा में न सिर्फ शब्द विस्तार हुए हैं वरन उन शब्दों में अर्थ बदले हैं। कई बार तो शब्दों में जबरदस्ती अर्थ को ओढ़ा भी दिया जाता है। ओढ़ाना इसलिए कि एक बाहरी आवरण जो मूल रूप से उस शब्द के अर्थ होते ही नहीं हैं, उस अर्थ को संप्रेषित किया जाता है। लेकिन सोशल मीडिया की भाषा केंद्र में सिर्फ संचार को रखती है, इस बात को भी नहीं भूलना चाहिए। भाषा का मानक रूप या अर्थ संवेदी होना सोशल मीडिया की भाषा में शामिल नहीं है।

आज इमोजी की दुनिया में लगभग सभी प्रकार की भावनाओं के लिए तथा फैशन और जीवन-शैली के भी हर पक्ष को प्रदर्शित करने के लिए पूरी तैयारी है। बस आपको अपनी भावना के हिसाब से सही इमोजी का चयन करना है। हर प्रकार की शारीरिक भाषा, चेहरे के भाव के बने ये प्रतीक विभिन्न प्रकार के भावों को बिना शब्दों के इस्तेमाल के प्रभावी तरह से प्रस्तुत करने में सक्षम हैं। इसलिए इमोजी को अहसासों की भाषा भी कह सकते हैं। ज्ञात हो कि इमोजी सोशल मीडिया की भाषा में रची- बसी एक एड-ऑन सामग्री की तरह भी है जो भाषा की संप्रेषणशीलता को बढ़ाती है। भावचिह्नों की प्रतीक इमोजी के द्वारा वर्तमान में संप्रेषण विस्तार हुआ है। हालांकि भाषा में भाव का कितना विस्तार हुआ है,और भाषा कितनी समृद्ध हुई हैएक अलग विमर्श का विषय है। वैसे भी भाषा का संवेदी होना तकनीक के सहारे संभव नहीं है। भाषा में भाव पक्ष का होना जरूरी तो है,जिसकी अपेक्षा मशीन के द्वारा या मशीनी भाषा से नहीं की जा सकती। इसलिए कम से कम भाषा की संप्रेषणशीलता को ही इमोजी से बढ़ाया जाए और संवाद कायम रहे।

( लेखिका महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विवि, वर्धा में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं)

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