पुण्य स्मरण दिवस: कलम, कागज और विचार ही 'मामाजी' की पूंजी थी

खनलाल चतुर्वेदी, लोकमान्य तिलक और गणेश शंकर विद्यार्थी की पत्रकारिता विशुद्ध रूप से देश के आजादी आंदोलन को क्रांतिकारी विचारों की ऊर्जा देने का मिशन लिए हुए थी। उस कठिन दौर में इन विभूतियों ने अपने पत्रकारिता धर्म को स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्पित कर दिया। इसलिए आज़ादी से पहले की पत्रकारिता और पत्रकारों का कोई मुकाबला नहीं किया जा सकता। अगर आज़ादी के बाद की पत्रकारिता पर नजर डालें तो एक ही चेहरा सामने आता है- ध्येयनिष्ठ पत्रकारिता के पितामह, श्री माणिकचंद्र वाजपेयी 'मामाजी'।
उन्होंने असहनीय पीड़ा, अभाव और सत्ताधीशों के शिकंजे से विचलित हुए बिना अपने पत्रकारिता कर्तव्य को अंतिम सांस तक निभाया। मुझे पत्रकारिता के उस महामना ऋषि और अपने अंतःकरण में संपूर्ण पत्रकारिता का विश्वविद्यालय समेटे हुए विभूति के दर्शन का अंतिम अवसर वर्ष 2004 में प्राप्त हुआ, जब वे अस्वस्थ होने के बावजूद व्हीलचेयर पर प्रेस कॉम्प्लेक्स में दैनिक 'स्वदेश' इंदौर के नवनिर्मित 'स्वदेश भवन' का अवलोकन करने पहुंचे थे।
मामाजी के लिए “पत्रकारिता का संपूर्ण विश्वविद्यालय” उपयुक्त है, क्योंकि उन्होंने इस विधा के प्रत्येक क्षेत्र में चरमबिंदु तक पहुंचकर दायित्व निर्वाह किया। उस समय पत्रकारिता में तीन प्रमुख विभाग होते थे- संपादकीय, मशीनी (प्रिंटिंग) और प्रबंधन। मामाजी ने कई बार इन तीनों विभागों का दायित्व निष्ठापूर्वक संपादित किया। रिपोटिंग, समाचार संपादन, आलेख, संपादकीय लेखन, प्रिंटिंग या अखबार के बंडलों को गंतव्य तक पहुँचाने में, मामाजी को प्रत्येक काम की चिंता रहती थी और वे उसे पूरी दक्षता से निष्पादित करते थे।
मामाजी के मार्गदर्शन में तराशे हुए अनेक पत्रकार, वरिष्ठ पत्रकार और संपादक आज देशभर में राष्ट्रनिष्ठ विचारों की अमृत वर्षा कर रहे हैं।
'स्वदेश' के रजत जयंती वर्ष के अवसर पर मामाजी ने लिखा था:
"स्वदेश के मार्ग में कठिनाइयाँ आईं, पर राष्ट्रनिष्ठ पाठकों और जनता ने 'स्वदेश' को हर क्षण संबल दिया। उस संबल के सहारे 'स्वदेश' सभी कठिनाइयों को पार करता रहा, विस्तार पाता रहा और अपनी वैचारिक सुगंध बिखेरता रहा।"
मामाजी ने यह विश्वास जताया कि 'स्वदेश' कभी भी अपने पथ से विचलित नहीं होगा। उनके संपूर्ण समर्पित कर्मभाव और राष्ट्रनिष्ठ वैचारिक यात्रा की बदौलत 'स्वदेश' ने 60वें वर्ष में प्रवेश किया।
मामाजी पत्रकारिता के ऐसे साहसी योद्धा थे, जो बिना किसी 'किंतु' और 'परंतु' के स्पष्ट शब्दों में अपनी बात रखते थे। उनकी कलम की निष्ठा, प्रामाणिकता और ध्येयनिष्ठता आज भी उनके लेखन में जीवंत है। इसलिए नवाक्षरों के लिए वे पत्रकारिता के पितामह हैं, जिनमें पूरा पत्रकारिता विश्वविद्यालय समाया हुआ था।
क्या यह विचारणीय और आत्मसात करने योग्य नहीं है कि मामाजी की बेबाक लेखनी के कारण तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने उन्हें आपातकाल में जेल में भेजा? इसके पहले भी सरकार ने उनके अखबार को विज्ञापन और सहयोग देने में अन्य अखबारों की तुलना में कंजूसी बरती। लेकिन अभावों के बावजूद मामाजी ने अपने पत्रकारिता धर्म को मंजिल तक पहुँचाया। उनके लेखन के कारण वे कांग्रेस शासन में जेल गए, पर कांग्रेस विरोधी सरकारों के लिए भी कभी पैरों तले नहीं बिछे। उन्होंने कभी किसी दल, सरकार या नेता के समक्ष राष्ट्र समर्पित ध्येय का तिलांजलि नहीं दिया।
मामाजी के तीन मूलमंत्र थे, जिनका उन्होंने अपने पत्रकारिता जीवन में पालन किया
पत्रकारिता वह न लिखे जो वह व्यक्तिगत रूप से चाहता है।
पत्रकारिता वह न लिखे जो केवल समाज को खुश करने वाला हो।
पत्रकारिता वह लिखे और दिखाए, जो समाज और राष्ट्रहित में आवश्यक हो और राजनीतिक मूल्यों के संरक्षण को आगे बढ़ाए।
मामाजी ने इन शर्तों पर पत्रकारिता का कर्तव्य निभाया। आज पत्रकारिता में उनके समर्पित जीवन और ध्येयनिष्ठता का स्थान रिक्त सा नजर आता है। पुण्य स्मरण दिवस पर पत्रकारिता के पितामह 'मामाजी' के श्रीचरणों में शत्-शत् नमन्।
