दादा दो हजारी के जाने का दारुण दुख
मैं दादा दो हजारी के निधन के सदमे से दस दिन बाद उभर पाया हूं। हालांकि अपने से दादा दो हजारी की कतई नही बनती थी, अपने को देखकर वह नाक मुंह सिकोड़कर चले जाते थे । मेरे दोस्त के पास जरूर दादा की पांच छह गुलाबी फोटो जेब में रखी रहती थी। चिंता मेरे दोस्त को थी। दादा दो हजारी के वेंटीलेटर पर होने की सरकारी घोषणा से मैं उनके चमत्कारिक व्यक्तित्व के बारे में सोचने लगा। मैं सोच रहा था उनके जीवन चरित्र के बारे में ,अगर इतिहास मे दादा दो हजारी पर लिखा जाए तो आईने - ए - ब्लैक मनी किताब के कई पन्ने गुलाबी रंग में रंगे जा सकते हैं। कम उम्र में दादा ने कई चमत्कार किए थे । वैसे दो हजारी दादा की अभी उम्र ही क्या थी, मात्र पांच छ: साल। उनके कार्य से हैरान लोगों ने बाजार से उनके गायब रहने पर कई तरह की अफवाह उड़ा रखी थी। कोई कहता था,आजकल दादा दो हजारी दिखते ही नहीं हैं। उनके स्वास्थ्य को लेकर कहा जाता था,वह किसी काला धन नामक बीमारी की चपेट में आ गए है इस तरह की दबी छुपी चर्चाएं चलती रहती थीं। पर दादा थे बहुत होशियार खुद को हमेशा इज्जत दिलाते रहते थे,आप बाजार में जाइए, छोटे दुकानदार तो दूर से ही हाथ जोड़ लेते थे। उनके जीवन परिचय में कहा जाता है कि दादा दो हजारी जन्में नहीं थे। वह एक घटना में अचानक प्रकट हुए थे। दादा दो हजारी के प्रकटीकरण में एक हजारी भाई साहब का भारी योगदान रहा है। एक हजारी भाई साहब के निधन की घोषणा 8 नवम्बर 2016 की रात 12 बजे होने के बाद उनकी आत्मा लेकर दादा दो हजारी इस भारत भूमि पर प्रकट हुए थे। जब वह प्रकट हुए तो उनको देखते ही लोग फोटो खींचने लगते थे। दादा बहुत क्यूट थे एक दम गुलाबी चट रंग लिए,उनके प्रारंभिक काल में उनकी सूरत थोड़ी-थोड़ी चटनी चूरन बैंक के नोट जैसी थी। पर दादा का प्रभाव इतना था कि लोगो ने उन्हें स्वीकार कर लिया। एटीएम मशीन में जब घर्र की आवाज के साथ दादा बाहर आते थे तो अलग ही जलवा रहता था। रिश्वत कथा नामक किताब में उनका बड़े ही सम्मान से नाम लिया जाता है, क्यों कि बड़े रिश्वत लालच के लोग उन्हें इसलिए भी सम्मान देते थे कि बड़ी डिमांड छोटी-छोटी गड्डियों में सिमट जाती थी। दादा दो हजारी, दो नंबरी के लेन देन के बादशाह थे। ऐसे दादा हजारी जिनके बारे में बहुत कुछ लिखा जा सकता है, वह अब निपट गए,अब वह बाजार में नही दिखेंगे। किसी के घर अलमारी में बंद गुलाबी पगड़ी वाले दादा के निपट जाने से कुछ लोग बेहद दुखी हैं, कुछ खुश भी हैं खुश वह हैं जिनको दादा दूर से नमस्कार कर निकल जाते थे,जेब में उनके आते ही नहीं थे । दुख में वह है जो दादा से अति प्रेम करते थे और उन्हें अपने से दूर नहीं जाने देते थे। खैर,अब क्या किया जा सकता है, दादा दो हजारी तो सच्ची में निपट गए ,अब कई महीने तक लोग बैंक की लाइन में खड़े होकर उन्हें श्रद्धांजलि देंगे।
(प्रस्तुति : प्रदीप औदिच्य)
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