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दिमाग से होकर आचरण में आता है भ्रष्टाचार

राजकुमार जैन

दिमाग से होकर आचरण में आता है भ्रष्टाचार
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गलत आचरण और भ्रष्टाचार को लेकर पुराने लोगों का अपना एक अलग ही मिजाज रहा है जो अब बदलाव के तेज बहाव के साथ बदल रहा है। एक समय चौराहे की गुमटी पर खड़े होकर चाय पीना भी आवारागर्दी की श्रेणी में आता था और ऑफिस में एक डायरी भी गिफ्ट में लेना भ्रष्ट आचरण माना जाता था। लेकिन अब भ्रष्ट आचरण के मायने बदल रहे हैं। भ्रष्टाचार के प्रति आम लोगों के साथ ही मीडिया का नजरिया भी परिवर्तन के बुरे दौर से गुजर रहा है। मीडिया केवल सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार के बारे में ही छापता और दिखाता है। लेकिन वास्तव में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक ईमानदार और कारगर लड़ाई लड़ना है तो आम जनों द्वारा की जा रही मक्कारी, धूर्तता, बगैर मेहनत के कमाई, रिश्वत देकर अपने लिए सुविधा खरीदना जैसे विषयों पर भी मीडिया को सतत लिखना और छापना चाहिए। रिश्वत या भ्रष्टाचार के दो छोर होते हैं, एक छोर पर जब कोई रिश्वत ले रहा होता है तो उसके साथ साथ दूसरे छोर पर खड़े उस देने वाले की नीयत की भी पड़ताल करना चाहिए, अपने हित में किस सुविधा को पाने के लिए वो रिश्वत दे रहा था। (हमेशा ही रिश्वत नाजायज तरीके से दबाव डालकर नहीं मांगी जाती है)

आम जनता द्वारा ट्रेफिक पुलिस को सौ- पचास रुपए देने के बारे बड़ी चीख पुकार मचाई जाती है लेकिन पूरी रकम भरकर रसीद लेने की बजाय ये छोटी रकम कोई क्यों देता है इस बारे में भी लिखना चाहिए। अपने घर में संग्रह करके रखने के लिए, योग्यता से परे एक अतिरिक्त गैस की टंकी पाने के लिए एक्स्ट्रा भुगतान करने वाले का भ्रष्ट आचरण भी उजागर करना चाहिए। आउट ऑफ टर्न प्रमोशन लेने वाले का कांड भी सामने आना चाहिए। जुगाड प्रभाव का इस्तेमाल कर अपने नकारा बच्चे का अच्छे स्कूल में एडमिशन करवाने वालों की करतूत भी उजागर होने चाहिए। अपनी सुविधा के लिए रेलवे टीटीई को रिश्वत देने वालों के बारे में भी लिखा जाना चाहिए। समुचित योग्यता ना होने के बावजूद जुगाड, प्रभाव, सिफारिश, रिश्वत देकर एक योग्य आवेदक का हक मारकर नौकरी पाने वालों की भी खोज खबर ली जानी चाहिए।

दुधारू पशु को इंजेक्शन लगाकर और दूध में पानी मिलाकर अधिक मुनाफा कमाने वाले भैय्याजी, खाद्यान्न में अखाद्य पदार्थ मिलाकर व्याधि देने वाले वाले पंसारी, खेती में सुरक्षित सीमा से अधिक और नियम विरुद्ध केमिकल का उपयोग कर कैंसर के निमंत्रण देने वाले किसान, तयशुदा गिनती से ज्यादा बच्चे बैठाकर दुर्घटना को निमंत्रण देने वाली स्कूल वैन की भी जांच होनी चाहिए। भ्रष्टाचार सबसे पहले हमारे अपने दिमाग में उपजता है फिर वो व्यवहार में आता है। लेकिन हमारा मीडिया यह सब ना तो लिखता है ना ही कभी दिखाता है। क्यों हमेशा रिश्वत लेने वाले के चरित्र को ही काला पोता जाता है। रिश्वत देने वाले की नीयत की खोज खबर क्यों नहीं की जाती।

अश्लील वेब सीरीज बनाने वाले से अधिक गंदा उसे अकेले में देखने वाला है ऐसा क्यों नहीं लिखा जाता, यह सोचने वाली बात है। सरकार के बारे में आम जनता का शगल यह हो गया है कि सरकार टैक्स मांगे तो बेकार सरकार, सरकार मुफ्त में बांटे तो जय जयकार, सरकार ब्याज रहित कर्ज बांटे तो जय जयकार और इन्ही सब खर्चों को पूरा करने को सरकार बाजार से कर्ज ले तो नकारा सरकार। यह नेरेटिव बदलना चाहिए, सरकार को लताड़ने की बजाय जनता जनार्दन को सत्य से साक्षात्कार करवाने का कर्म भी देश के जागरूक मीडिया को अपने हाथ में लेना चाहिए। कर्ज में डूबी सरकार के वित्तीय प्रबंधन को कोसते हुए बड़े बड़े लेख लिखे जाते हैं लेकिन कड़वा सच तो यह है कि जनता की मुफ्त सुविधा पाने की तृष्णा ने ही सरकार को कर्ज लेने के लिए मजबूर किया है, यह बात कील ठोक कर कहने का साहस दिखाना होगा। जब हम सरकार या सरकारी महकमों में कार्यरत कर्मचारियों को कोसने की बजाय जन जनार्दन को उनकी गलतियों, उनके लालच के लिए लताड़ने का उत्कृष्ट कार्य करेंगे तब ही हम लोकतंत्र के प्रहरी होने के कर्तव्य का असली निर्वहन करेंगे।

(लेखक स्वतंत्र विचारक हैं)

Updated : 15 Feb 2024 8:36 PM GMT
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City Desk

Web Journalist www.swadeshnews.in


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