नेपाल का हश्र : नेतृत्व पर भारी नैरेटिव

नेपाल का हश्र : नेतृत्व पर भारी नैरेटिव
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हेमलता चतुर्वेदी, वरिष्ठ पत्रकार

सिर्फ दो दिन में एक देश पूरी तरह बर्बाद हो गया। सवाल, संदेह और अनुमानों के बीच एक नैरेटिव सामने आया और एक थ्योरी की चर्चा अब खुलेआम हो रही है। नया नैरेटिव है जेन-ज़ी और थ्योरी है—आख़िर क्या इस सबके पीछे डीप स्टेट या साफ़-साफ़ कहें, अमेरिका का हाथ है?क्यों किसी भी देश की चीन के साथ नज़दीकी अमेरिका को खटकती है? श्रीलंका, बांग्लादेश और अब नेपाल! बिना आग के धुआँ नहीं उठता और आज तो नेपाल की आग और वहाँ से उठा धुआँ पूरी दुनिया के सामने है। आश्चर्य है कि जिन तीन देशों में तख़्ता पलट हुआ, उनमें सबसे भयावह हालात नेपाल के कहे जा सकते हैं।

जिस तरह से युवाओं ने अपने ही देश को तबाह कर जश्न मनाया, यह दुखद है। देश के नौनीहालों को जेन-ज़ी कहकर सम्बोधित कर दो और हाथ में तोड़-फोड़, आगज़नी का सामान देकर अपने ही देश को फूँकने के लिए उकसा दो। ईश्वर सद्बुद्धि दे नौजवानों को। विरोध का कारण सोशल मीडिया बैन करना रहा हो या भ्रष्टाचार के खिलाफ़ आवाज़ उठाना, लेकिन उसकी नीयत नेपाल की सत्ता को पलट देना ही थी और यही परिणति भी हुई।

कुछ माह पहले बांग्लादेश में हुए सत्ता-विरोधी आंदोलन का परिणाम भी यही रहा और बांग्लादेश की तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़कर भागना पड़ा था। नेपाल के प्रदर्शनकारी युवा ज़ोर-ज़ोर से नारे लगा रहे थे कि सरकार को देश छोड़कर जाना होगा! यानी उनका ध्येय यही था कि सत्ता गिराकर भगा कर ही मानेंगे।

नेपाल के विद्रोही युवाओं ने सारी हदें पार करते हुए अपने देश के लोकतांत्रिक संस्थानों—संसद, सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति भवन तक को आग के हवाले कर दिया। पूर्व प्रधानमंत्री और उनकी पत्नी के साथ ही कई मंत्रियों को युवाओं ने पीटा। ऐसा अगर किसी अंतरराष्ट्रीय पैटर्न के तहत हो रहा है तो यह पूरी दुनिया के लिए चिंताजनक है। जेन-ज़ी के तमगे से अनावश्यक जोश में भड़के युवाओं में से 22 की मृत्यु हो गई। इसकी जवाबदेही क्या उनके साथी युवाओं को नहीं लेनी चाहिए?

जिस तरह का हुड़दंग नेपाल में दो दिन में देखा गया, उसकी तैयारी निश्चित तौर पर काफ़ी लंबे समय से चल रही होगी। बिना योजना के ऐसा नहीं हो सकता कि विद्रोही जान हथेली पर लेकर सब कुछ बर्बाद कर रहे हों और एक दिन पुलिस ऐक्शन ले और अगले दिन पुलिस और सेना दोनों विद्रोहियों के आगे लाचार हो जाएँ।

सरकार से नाराज़गी किसी भी देश में सामान्य बात हो सकती है, लेकिन इसका इस्तेमाल अन्य देश क्यों करेंगे? उनका क्या हित है? इन सवालों का जवाब आज पूरा विश्व खोज रहा है। किसी भी देश को बर्बाद करना हो तो वहाँ गृहयुद्ध भड़का दो। यह आज कोई नई बात नहीं है। याद कीजिए, इराक़ में 2003 में सद्दाम हुसैन के साथ क्या हुआ था। आज ओली की मूर्ति तोड़ने में नेपाल के युवा लगे हुए थे, तब इराक़ में सद्दाम हुसैन की मूर्ति अमेरिकी सेना की सहायता से गिराई गई थी।

कमजोर नेतृत्व का परिणाम

कहते हैं—“यथा राजा तथा प्रजा।” जितना कमजोर नेतृत्व होगा, बाहरी ताक़तें उतना ही दखल देंगी। देश का प्रधान अगर देश छोड़कर भाग जाएगा, इसकी आशंका पहले से ही हो तो देश का भविष्य बर्बाद होना कोई बड़ी बात नहीं।

जो विपक्षी नेता अनावश्यक बयानबाज़ी कर ख़बरों में बने रहना चाहते हैं, उन्हें समझना होगा कि हमारे देश की जनता इतनी नासमझ नहीं है। वह किसी वहम में नहीं है। जैसा नेतृत्व सुदृढ़ है, वैसी ही देश की जनता भी समझदार है। इसलिए बिना वजह की बयानबाज़ी कर देश को कमजोर करने की कोशिश न करें।

हमारे युवा जेन-ज़ी नहीं, जेनरेशन नेक्स्ट हैं, जो देश को विकसित भारत बनाने में योगदान दे रहे हैं।

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