चर्च का बाजारवाद : सेकुलर शब्द बनाम संगठित भारत
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- अमित त्यागी
1976 में संविधान में सेकुलर और सोशलिस्ट दो शब्दों को जोड़ा गया था। इन शब्दों के अंग्रेजी मायने यूरोपीय सभ्यता के तो ज़्यादा करीब हैं किन्तु भारतीय सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में इसके मायने बिना विचारे ही ग्रहण कर लिए गए हैं। यह शब्द नैतिक आचरण की भारतीय शैली के स्थान पर भोगवाद को बढ़ावा देते हैं। भोगवाद के कारण सफलता का मापदंड धन बन जाता है। फिर यहीं से पनपता है भ्रष्टाचार। वास्तव में देखा जाये तो सेकुलर शब्द पश्चिम की देन है और यह पारलौकिक एवं इहलौकिक जीवन को अलग अलग रखता है। इस व्या या के कारण नैतिक अनुशासन का तत्व विलुप्त हो जाता है। भोगवाद का समर्थन हो जाता है। और यही से बाजार का निर्माण होता है। आज जब हम अँग्रेजी व्यवस्था और कान्वेंट शिक्षा के अनुसार मानसिकता धारण किए हुये हैं, तब सेकुलर शब्द का आशय बेहद महत्वपूर्ण बन जाता है। यह सहिष्णुता नहीं दिखाता। पश्चिम के जिन देशों में सेकुलरिज्म रहा है वहाँ जीवन का एक सिरा राजा के और दूसरा चर्च के नियंत्रण में रहा है। भारत के संदर्भ में ऐसा कभी नहीं रहा। हमारे यहाँ जीवन का प्रमुख तत्व नैतिक आचरण रहा है। किसी बाहरी सत्ता को नैतिक आचरण के कभी आड़े नहीं आने दिया गया। यूरोप में कई फिरकों में आपसी मतभेद की वजह राज्य के द्वारा जीवन का अधिकार भी रहा है। सेंट पीटर की व्या या के अनुसार 'मनुष्य के इहलोक जीवन पर राज्य का अधिकार है और परलोक पर चर्च का।Ó इस तरह की व्या या के कारण ही यूरोपीय शैली में स्वेच्छाचार, यौनाचार, स्वच्छंदता एवं भोगवाद की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिला। इसके द्वारा एक बड़ा बाजार पैदा हुआ। योग को प्रोत्साहित करने वाली भारतीय संस्कृति पर हमला करके भोग के बाजार से पूंजी पैदा करने का अन्तरराष्ट्रीय षड्यंत्र समानान्तर रूप से चलता रहा।
आज हम जो भी समस्याएँ, विचारधाराओं से भटकाव एवं सत्ताधीशों के द्वारा बाजार अनुकूल नीतियाँ देख रहे हैं, वह इसी व्या या से उपजी हैं। समस्या विचारधारा के साथ नहीं है। असली समस्या सत्ता में आने पर बाजार की विचारधारा हावी हो जाने को लेकर है। गत वर्ष कांग्रेसी नेता शशि थरूर ने एक बयान दिया था। उनका कहना था कि 'भाजपा के पास दो तिहाई बहुमत नहीं है नहीं तो वह संविधान बदल देती। अब अगर 2019 में भाजपा की वापसी हो गयी तो वह भारत को हिन्दू पाकिस्तान बना देगीÓ। उनके इस बयान पर कुछ हो हल्ला हुआ और कांग्रेस ने इसे उनका निजी बयान कहकर पल्ला झाड़ लिया। शशि थरूर ने न अपने बयान के लिए माफी मांगी और न ही उसे वापस लिया। शशि थरूर के इस बयान पर जितनी गंभीरता और स्पष्टता के साथ पूरे देश में विमर्श होना चाहिए था, एक साल बीतने के बाद भी वह नहीं हुआ। यदि गौर से देखें तो पाकिस्तान के निर्माण का आधार सिर्फ मजहब नहीं था। अगर ऐसा होता तो बाद में बांग्लादेश उससे अलग नहीं हुआ होता। अंग्रेजों ने बांटो और राज करो की नीति के अंतर्गत मुस्लिम नेताओं में बहुसं यक हिन्दू आबादी के प्रति असुरक्षा, घृणा और शत्रुता को इस्तेमाल किया। यह सिर्फ पाकिस्तानी परिक्षेत्र तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह बंगाल तक पहुँच गयी। इसलिए पाकिस्तान के साथ ही पूर्वी पाकिस्तान का विघटन हुआ।
इस तरह वजह साफ समझ आती है क्यों पाकिस्तान में हिंसक घटनाएँ अक्सर होती रहती हैं? वहाँ अहमदिया मुसलमानों से दोयम दर्जे का व्यवहार होता है। शिया समुदाय वहाबियों के खौफ के साये में जीता है। बहुसं यक होने के बावजूद बरेलवी भी दूसरे दर्जे के माने जाते हैं। बलूच के साथ होने वाला व्यवहार यह दिखाता है कि पाकिस्तान के बनने का आधार मजहब दिखाया तो गया था किन्तु था नहीं। इसी तरह ईसाइयों के खिलाफ नफरत दिखाकर पाकिस्तान में एक आवरण चढ़ाया जाता है जिसकी कलई समय समय पर खुलती रहती है। इसलिए भारत की तुलना पाकिस्तान से करना एक बेहद हल्का तर्क बन जाता है। पाकिस्तान में धर्म की शिक्षाओं के नाम पर हिंसा को लगातार बढ़ावा दिया जाता रहा है। उसी की परिणति यह रही है कि पाकिस्तान आज आतंकवादी देश के रूप में जाना जाने लगा है। पाकिस्तान से प्रेम दिखाकर भारत के मुसलमानों को प्रभावित करने की जो होड़ नेताओं में दिखती है वह भारतीय मुसलमानों को कमजोर करती है। भारतीय मुसलमान भारत के लिए समर्पित रहा है। जब जब उसकी तुलना पाकिस्तान के मुसलमानों से करके उसे उकसाया जाता है तब तब उसकी स्थिति भारत में कमजोर होती है और बहुसं यक वर्ग से उसकी दूरी बढ़ जाती है। गुड हिन्दू और बैड हिन्दू का सिद्धांत भी विघटन करने वाला है। हिन्दू और सनातन धर्म में आवरण का नहीं आचरण का महत्व है। इसलिए धर्म एक जीवन शैली है। राजनीतिक प्रतिद्वंदिता को वैमनस्यता तक ले जाने वाली वर्तमान राजनीतिक गतिविधियां देश को नुकसान करने वाली हैं। भारत का सर्वोच्च न्यायालय भी यह कह चुका है कि अन्य धर्मों के प्रति सहिष्णुता हिन्दू धर्म में अंतर्निहित है।
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