चैट जीपीटी के खतरे और भारत

डॉ. दर्शनी प्रिय
इन दिनों आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई का जादू लोगों के सर चढ़कर बोल रहा है। चैट जीपीटी के आने के बाद इसने दुनिया भर के लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। इस तकनीक ने बंद दरवाजों को यकायक खोल दिया है। जिन कामों के लिए पहले घंटों समय लगता था चैट जीपीटी ने उसे पलक झपकते आसान बना दिया है। यह एक ऐसी जादुई कलम है जो विचारों और तथ्यों के साथ मिलकर वांछित जानकारी का रूप ले लेती है। यह विस्तृत एल्गोरिदम की मदद से इनपुट के आधार पर लेख लिखने और कई तरह के प्रश्नों के उत्तर देने में भी सक्षम है। यह पूरी तरह डाटा और उसके विश्लेषण पर केंद्रित है इसमें सॉफ्टवेयर और एल्गोरिदम से डाटा का पैटर्न पहचाना जाता है।
इसे लेकर संसद से लेकर सड़क तक चर्चा गर्म है। विशेष रूप से इसके नकारात्मक पक्ष को लेकर चिंताएं जताई जा रही हैं।
इस बात में कोई संदेह नहीं कि चैट जीपीटी में तकनीकी का एक उन्नत स्वरूप देखने को मिल रहा है। यह विकास का वर्तमान एवं भविष्य है। खबरों के संक्षिप्तीकरण व इंटरनेट मीडिया पोस्ट लिखने से लेकर हिंदी समेत विभिन्न भाषाओं में एक साथ अनुवाद करने और सामग्री निर्माण में सक्षम यह मॉडल भले ही तकनीक का शानदार नमूना है लेकिन गुणवत्ता व तथ्यपरकता की कसौटी पर यह उतना खरा नहीं उतरता। इसके दुरुपयोग और नियंत्रण पर विचार भी जरूरी है।
फिलहाल एआई के साथ सबसे बड़ी चुनौती डाटा के इस्तेमाल को लेकर है मॉडल को प्रशिक्षित करने के लिए बड़ी मात्रा में व्यक्तिगत डेटा एकत्र किया जाता है जिसका कोई कानूनी आधार नहीं होता है केवल उन लोगों को जानकारी दी जाती है जिनसे डेटा लिया जाता है। यह निजता के उल्लंघन का मामला हो सकता है। दूसरा यह रोजगार के लिए खतरा माना जाता है। जैसे-जैसे यह विकसित होता जाएगा लोग कंप्यूटर या रोबोट की मदद से ऐसे बहुत से काम करने में सक्षम हो जाएंगे जिनके लिए पहले मानव श्रम की आवश्यकता होती थी। तीसरा इसकी सहायता से फर्जी वीडियो, फोटो या आवाज बनाई जा सकती है। अभी हाल में ऐसे कई मामले भी सामने आए हैं जिसमें इसकी सहायता से बनाए गए कानून और शोध पत्र पकड़े गए है। फेक न्यूज़ फैलाने से लेकर दुर्भावनापूर्ण सामग्री बनाने या व्यक्तियों का प्रतिरूपण करने के लिए भी इसका धड़ल्ले से उपयोग किया जा रहा है। माना जा रहा है कि वर्ष 2050 तक हमारे आधे से ज्यादा काम स्वचालित तरीके से होने लगेंगे।
अगर हमें इसे तकनीक को सकारात्मक और उत्पादक बनाना है तो उसे नैतिकता से जोड़ना होगा इसके साथ ही स्पष्ट प्रोटोकॉल भी बनाने की जरूरत है जिसमें यह बताया जाए कि क्या करना है और क्या नहीं। सर्वविदित है कि एआई का विस्तार पूरी सभ्यता को प्रभावित करेगा। और चैट जीपीटी जैसे सॉफ्टवेयर मानवता के भविष्य को नया आकार देंगे बावजूद इसके कानूनी पक्ष को सबल बनाना ही होगा।
तेज बुद्धि वाले मनुष्य की तरह व्यवहार करने वाली ये मशीनें पल भर में सब कुछ याद कर लेती है लेकिन उसके पास अपनी कोई सोच नहीं है। यह केवल डेटा के आधार पर आकलन करने और निर्णय लेने में सक्षम है। इसका नहीं सोच पाना ही इसकी अच्छाई है। जिस दिन मशीनें स्वयं ही खामियों को समझने में सक्षम हो गई उन पर नियंत्रण असंभव हो जाएगा। यूरोपीय संघ ने भी एआई नियमों के मसौदे में बदलाव पर सहमति जताई है। साथ ही जापान ने व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए एआई के उपयोग के नियमन की मांग की है। जीपीटी चैट के संस्थापक सैम अल्टमैन ने हाल ही में अमेरिकी सीनेट से एआई कंपनियों को लाइसेंस देने के लिए एक नई एजेंसी बनाने की मांग की है ताकि इसके जरिए एआई से जुड़े खतरों की पहचान की जा सके और भू राजनीतिक चुनौतियों को रोका जा सके। भारत को सिरे से इस पर विचार करना होगा साथ ही नियंत्रण के सभी तरीको को आजमाना होगा। क्योंकि एक बड़ी आबादी की नैसर्गिक बुद्धि इससे व्यापक तौर पर प्रभावित हो रही है। इससे स्मृति पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है।इसे तत्काल प्रभाव से नियंत्रित करने की अवश्यकता है। ( लेखिका स्तंभकार हैं)
