चंद्रमा के साथ चंद्रयान की सेल्फी

चंद्रमा के साथ चंद्रयान की सेल्फी
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निठल्ला चिंतन

प्रदीप औदिच्य

चंद्रयान ने चंद्रमा के दरवाजे को खटखटाना शुरू कर दिया है। अब जैसे ही चंद्रमा अपने घर के किबाड़ खोलेगा, चंद्रयान किसी बिना बुलाए मेहमान की तरह चंद्रमा को अपना घर समझ कर घुस जायेगा।

चंद्रमा जो अभी तक बेफ्रिक होकर रोज-रोज किसी कवि की कविताओं में घुस जाता है। कभी किसी के युवक के ख्वाब में। उसको अभी पता नहीं है कि उसकी जासूसी के लिए एक उसका रिश्तेदार दरवाजे पर खड़ा होकर उसे पुकार रहा है।

मैंने भी कल रात सपने में चंद्रमा की बातचीत सुनी...

चंद्रयान ने पहले चंद्रमा के खूब चक्कर लगाए जैसे चुनाव से पहले नेता मतदाता के लगाता है। फिर विधानसभा की क्लास में स्थापित होकर बैठ जाता है।

चंद्रयान की जोर-जोर से आवाज लगाने पर चंद्रमा ने दरवाजा खोला....

चंद्रमा ने कहा,भैया अपन कौन...?

चंद्रयान ने कहा, मामा मुझे पहचाना नहीं... मैं, चंद्रयान हूं...।

यहां क्यों आए हो? चंद्रमा ने जीते हुए नेता की तरह रूखे भाव से पूछा ।

ये देखने के लिए कि आप कैसे हो...!

चंद्रमा हंस कर बोला, अरे इसके लिए यहां आने की जरूरत ही नहीं थी। बस आप किसी भी हिंदी के कवि से पूछ लेते, या फिर, किसी प्रेमी का अपनी प्रेमिका के नाम का खत पढ़ लेते... आप को समझ आ जाता कि मैं कितना सुंदर हूं।

चंद्रयान ने कहा... मामा, आप समझ नहीं पा रहे हो। आप नील आर्मस्ट्रांग के जमाने से बाहर निकलो। वह आपको जब बताकर गया था, तब से जमाना अलग हो गया, अब कवि अपनी कविता में चंद्रमा को रोटी लिखता है,और प्रेमी अपनी प्रेमिका को चि_ी नहीं लिखता, बल्कि मेसेज करता है, इमोजी बनाकर।

मामा ... आपकी जमीन पर तो गड्ढे ही गड्ढे हंै, मुझे तो ये अहसास ही नहीं हुआ कि मैं चांद पर चल रहा हूं । मुझे लगा कि बारिश के बाद की भारत के किसी शहर की सड़क पर, चल रहा हूं। क्या आपके यहां भी इंजिनियर कमीशन खाते है...? चंद्रमा बोला, ये बकवास बंद करो मैं तो हमेशा से ही ऐसा हूं।

चंद्रमा ने पूछा ये बताओ, तुम यहां कितने दिन रुकोगे, ये अपने देश की जमीन मत समझ लेना कि कोई भी कहीं से आकर घुस जाता है, फिर वह पहचान पत्र बनवा लेता है... कुछ दिन बाद ये कहता है, ये किसी के बाप का हिंदुस्तान नहीं है। ये शरणार्थी से मालिक वाला सिस्टम नहीं चलेगा।

चंद्रयान ने कहा,मामा ये तो मेरे भेजने वाले ही जाने, मैं यहां कितने दिन रुकूंगा, लेकिन ये बात सच्ची है कि मैं यहां रहकर कब्जा नहीं करूंगा।

चांद ने कहा... रुको... पहले ये बताओ... ये मामा-मामा क्यों कह रहे हो... मुझसे तुम्हारा काहे का रिश्ता...। जबरदस्ती का रिश्ता... मत बनाओ...।

चंद्रयान ने कहा... अरे वाह... आप हमारी धरती माता के भाई हो, रक्षा बंधन के मौके पर मैं यहां आया हूं, मैं तो मामा ही कहूंगा।

चंद्रमा ने कहा... ठीक है, ज्यादा रिश्तेदारी मत बनाना ।

चंद्रयान ने पानी पीकर खाली बोतल वहां फेंकी,

चंद्रमा ने कहा... तुम लोगों को 75 साल में भी ये समझ नहीं आया कि कचरा कहां फंेकना है, ये भारत नहीं है, इसलिए... यहां कचरा मत करना।

चंद्रयान ने कहा, मामा एक बात बताओ तुम अकेले रहते हो, क्या तुमको नहीं लगता कि ये मनुष्य भी तुम्हारे साथ रहें।

चंद्रमा ने कहा, नहीं, तुम धरती पर रहकर उसके साथ कैसा बर्ताव करते हो धरती को खोद कर खोखला कर दिया। नदियां खतम कर दी... हिमालय पर कचरे के ढेर लगा दिए... समुद्र को जहरीला कर दिया... हवा, पानी कुछ भी तो नहीं छोड़ा। अब तुम्हारी निगाह कहीं मंगल ग्रह पर तो कहीं मुझ पर।

तुम्हारे लोग ये कहते रहते हंै, चांद सितारे तोड़ लाऊंगा... ये तोड़-फोड़ के डर से ही मैं तुम लोगों से दूर हूं...। हमको तो शांति से रहने दो...मुझे जीत कर क्या करोगे?

मनुष्य की दूसरो के घर में तांक झांक की आदत बहुत खराब है। चंद्रयान ने कहा, मामा आपके साथ एक सेल्फी हो जाए...।

चंद्रमा ने कहा क्या करोगे सेल्फी का?

चंद्रयान ने कहा... मैं ये धरती वालों को भेजूंगा...देखो ये गड्ढों वाली सड़क जैसा है...चंद्रमा। ...तुम्हारे किसी भी रिश्तेदार की शक्ल चंद्रमा से नहीं मिलती... अब फालतू में ऐसी कविताओं को किसी को मूर्ख मत बनाना।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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