Home > विशेष आलेख > बजट 2022-23ः चुनौती रोजगार संग आत्मनिर्भरता की

बजट 2022-23ः चुनौती रोजगार संग आत्मनिर्भरता की

डॉ. अश्विनी महाजन

बजट 2022-23ः चुनौती रोजगार संग आत्मनिर्भरता की
X

वेबडेस्क। पिछले लगभग दो वर्षों से कोविड की महामारी से ग्रसित अर्थव्यवस्था के मद्देनजर, एक ओर सरकारी खजाने से गरीब जनता के लिए राहत, तो दूसरी ओर राजस्व की कमी की समस्या से जूझते हुए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण को अपना चौथा वार्षिक बजट बनाना कोई आसान काम नहीं होगा। आज दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं के लिए स्थिति अभी भी अनुकूल नहीं हुई है, लेकिन भारत में ओमिक्रॉन के रूप में कोरोना की तीसरी लहर का असर अपेक्षाकृत रूप से कम ही देखने को मिल रहा है।

शायद यह बात वित्तमंत्री के लिए राहत का सबब हो सकती है। एक और राहत की बात यह है कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के हालिया अनुमानों के अनुसार 2021 में भारतीय अर्थव्यवस्था में ग्रोथ 9 प्रतिशत रही और आगे आने वाले दो वर्षों में भी यह ग्रोथ 9 प्रतिशत से कम रहने वाली नहीं हैं। जीडीपी ग्रोथ की यह अनुकूल स्थिति कहीं न कहीं प्रत्यक्ष करों और अप्रत्यक्ष करों की प्राप्तियों में परिलक्षित हो रही हैं। पिछले तीन महीनों से जीएसटी से कुल प्राप्तियां प्रतिमाह 1.3 लाख करोड़ के आसपास रही हैं, जो अर्थव्यवस्था में उठाव का लक्षण है। उसी प्रकार प्रत्यक्ष करों की प्राप्तियों में भी लगभग 60 प्रतिशत की वृद्धि की अपेक्षा है। कोरोना काल के दौरान आमदनी से अधिक खर्चे की कुछ भरपाई तो इन करों की प्राप्ति से हो जाएगी, लेकिन अर्थव्यवस्था के लिए अभी बड़े लक्ष्यों की तरफ आगे बढ़ाने की चुनौती वित्तमंत्री के सामने रहेगी।

आत्मनिर्भरता का बड़ा लक्ष्य -

पिछले लगभग 20-22 वर्षों में विदेशों, खासतौर पर चीन पर निर्भरता के कारण देश की मैन्युफैक्चरिंग बुरी तरह से प्रभावित हुई, जिसका प्रभाव रोजगार पर भी पड़ा। नरेन्द्र मोदी सरकार आने के बाद पहले 'मेक इन इंडिया' और कोरोना काल के दौरान विदेशी उत्पादों पर अत्यधिक निर्भरता के मद्देनजर 'आत्मनिर्भर भारत' योजना की घोषणा से यह आशा बंधी है कि विदेशों पर निर्भरता कम करते हुए मैन्युफैक्चरिंग में देष आत्मनिर्भरता की तरफ आगे बढ़ेगा। वित्तमंत्री ने अपने पिछले बजट में आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन योजना (यानि पीएलआई स्कीम) के अंतर्गत आने वाले कुछ वर्षों में 2 लाख करोड़ रूपए के प्रावधान की घोषणा की थी। इस योजना के तहत एक्टिव फार्मास्युटिकल इन्ग्रेडिएंटस (यानि एपीआई), कैमिकल्स, इलैक्ट्रॉनिक और टेलीकॉम, वस्त्र समेत कई उद्योगों को इस योजना में शामिल किया गया था। हाल ही में सरकार ने सेमीकंडक्टर के उत्पादन में प्रोत्साहन के लिए 10 अरब डालर के खर्च की घोषणा की है। गौरतलब है कि सेमीकंडक्टरों के उत्पादन को देश चीन, ताईवान इत्यादि देशों समेत शेष दुनिया पर निर्भर करता है। पिछले कुछ माह में सेमीकंडक्टरों की कमी के चलते देश में ऑटोमोबाइल समेत बहुत से उद्योग प्रभावित भी हुए। इस प्रकार से मैन्युफैक्चरिंग में आत्मनिर्भरता के लक्ष्य के हिसाब से वित्तमंत्री को बजट में बड़े आवंटन करने की जरूरत पड़ेगी।

उधर देश हाल ही में किसान आंदोलन की बड़ी त्रास्दी से गुजरा है और हालांकि नए कृषि कानूनों की वापसी के बाद किसान आंदोलन का तो पटाक्षेप हो गया है, लेकिन इसके साथ ही देश में खेती और किसानी की हालत को सुधारने की आवश्यकता भी रेखांकित हुई है। कोरोना काल के दौरान बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों की अपने गांवों में वापसी के मद्देनजर ग्रामीण क्षेत्रों में विकास और रोजगार सृजन की आवश्यकता महसूस की जा रही है। गांवों में आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए वहां कृषि से संबद्ध आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने के साथ-साथ कारीगरी और ग्रामोद्योगों को बढ़ावा देने की भी जरूरत महसूस की जा रही है। समझना होगा कि गांवों में आधे गृहस्थ ही किसान हैं, शेष जनसंख्या भूमिहीन परिवारों की है जो खेतों में मजदूरी के साथ-साथ अन्य प्रकार की गतिविधियों में संलग्न हैं। ऐसे सभी लोगों को लाभकारी रोजगार उपलब्ध कराना आज के समय की आवश्यकता है। इसके लिए मुर्गीपालन, पशुपालन, डेयरी, मशरूम फार्मिंग, मछली-पालन, ग्रामोद्योग सरीखे रोजगार इस आवश्यकता की पूर्ति कर सकते हैं। इन सब कार्यों को प्रोत्साहन देने के लिए भी बजट में आवश्यक व्यवस्था करनी होगी।

कृषि में देखा जाए तो आज देश खाद्यान्नों में लगभग आत्मनिर्भर हो चुका है। पिछले लगभग 5 वर्षों में सरकारों के प्रयासों से दालों में भी आत्मनिर्भरता की तरफ देश आगे बढ़ा है। लेकिन अभी भी खाद्य तेलों की दृष्टि से देश विदेशों पर निर्भर है। खाद्यान्नों में जरूरत से ज्यादा उत्पादन हो रहा है, जिसके चलते आज फसल चक्र में बदलाव की जरूरत महसूस की जा रही है। ऐसे में किसानों को खाद्यान्नों की बजाय तिलहनों की तरफ अग्रसर करना होगा, जिसके लिए बजट में प्रावधान की जरूरत होगी।

रोजगार -

कोरोना से पूर्व शुरू हुई आर्थिक गिरावट और कोरोना काल में आर्थिक गतिविधियों में रूकावट के चलते रोजगार सर्वाधिक प्रभावित हुआ है। रोजगार के इस विषय को बजट में महत्व मिलना अपेक्षित ही नहीं जरूरी भी है। आयकर की दृष्टि से उत्पादन ईकाईयों में अतिरिक्त रोजगार पर होने वाले खर्च को आय में से 150 प्रतिषत की कटौती की अनुमति देने से रोजगार सृजन को मदद मिल सकती है। लगभग 1000 उत्पाद जो पहले लघु उद्योगों के लिए आरक्षित थे, भूमंडलीकरण के दौर में उनकी सूची घटते-घटते शून्य पर आ गई। इसके कारण लघु उद्योगों का पतन तो हुआ ही, आयातों पर हमारी निर्भरता भी बढ़ी और रोजगार का भी हृास हुआ। लघु उद्योगों के आरक्षण की उस नीति को बहाल करने की जरूरत होगी। इसके साथ ही साथ लघु व्यवसायों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार द्वारा उसके पूंजी निवेष में 25 प्रतिषत की सब्सिड़ी सहायक सिद्ध हो सकती है। पीएलआई स्कीम से आगे बढ़ते हुए उन सभी उत्पादों पर जहां विदेषों पर निर्भरता अधिक है, देष में उत्पादन के लिए विषेष प्रोत्साहन की जरूरत होगी। मनरेगा येाजना में भी बदलाव करते हुए यदि उसे कृषि और लघु उद्योगों के लिए विस्तारित किया जाए तो ग्रामीण युवाओं के लिए लंबे समय तक और अधिक लाभकारी रोजगार मिलने के रास्ते खुलेंगे।

देषी निवेषकों को बराबरी का दर्जा-

पिछले समय में सरकार द्वारा विदेषी मुद्रा को आकर्षित करने के लिए विदेषी निवेषकों को तरह-तरह के प्रोत्साहन दिए गये। इसके कारण देष को कई बार खासा नुकसान भी सहना पड़ा। हालांकि हम गर्व करते है कि देष में कई स्टार्ट-अप्स यूनिकॉर्न बन गये यानि उनका पूंजीगत मूल्य 1 अरब डालर से अधिक हो गया लेकिन इसके साथ ही जिन विदेषी निवेषकों ने उन स्टार्ट-अप्स में निवेष किया था, वे इन उद्यमियों को देष से बाहर करने में सफल हो गये। यानि हमारे स्टार्ट-अप फ्लिप कर गये, यानि वे भारतीय रहे ही नहीं। कई हलको से यह आवाज भी उठी है कि अब हमारे स्टार्ट-अप्स को विदेषों में अपने शेयर सीधे सूचीबद्ध करने की अनुमति भी मिल जायेगी। आषंका यह है कि इससे हमारे बचे-खुचे स्टार्ट-अप्स भी विदेषी हाथों में चले जायेंगे और उन पर कर लगाने और उनके नियमन का अधिकार भी हमारे पास नहीं रहेगा। इसलिए सरकार को ऐसे फैसले से बचना चाहिए।

हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा यह आह्वान किया गया है कि देष के उद्यमों एवं स्टार्ट-अप्स को देष में ही पूंजी मिले। इसके लिए जरूरी है कि विदेषी निवेषकों को जो करों में छूट मिलती है, वह छूट देषी निवेषकों को भी मिले। उदाहरण के लिए, सूचीबद्ध कंपनियों के शेयरों से विदेषी निवेषकों को जो आय प्राप्त होती है, उस पर उन्हें कम कर देना पड़ता है, जबकि देषी निवेषकों को ज्यादा कर देना पड़ता है। इसलिए देषी निवेषक या तो कम निवेष करते है या विदेषों से धन घुमाकर निवेष करते है। इस विसंगति को दूर करने की जरूरत है। उसी प्रकार छोटे स्टार्ट-अप्स में जब भारतीय निवेषक निवेष करते है, तो उन्हें ज्यादा कर देना पड़ता है। स्टार्ट-अप्स को अपने शेयरों को देष में सूचीबद्ध करने और उसमें देषी निवेषकों को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार को अपनी कर प्रणाली को दरूस्त करना पड़ेगा, ताकि स्टार्ट-अप्स को ज्यादा निवेष मिले और देषी निवेषकों को ज्यादा अवसर।


Updated : 2 Feb 2022 10:41 AM GMT
Tags:    
author-thhumb

स्वदेश डेस्क

वेब डेस्क


Next Story
Top