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भव्य होती शादियां, जर्जर होते रिश्ते

डॉ. नीति पांडेय

भव्य होती शादियां, जर्जर होते रिश्ते
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भारत की सामाजिक व्यवस्था में विवाह को एक व्यवस्था के रूप में स्वीकार किया गया है। विवाह कोई हंसी-खेल नहीं, अपितु यह सात जन्मों का बंधन होता है जिसे मरते दम तक निभाना पड़ता है। अग्नि को साक्षी मानकर मरते दम तक साथ निभाने की कसमें खाने वाले युगल जोड़े अब शादी जैसे पवित्र बंधन को निभाने में विफल हो रहे हैं। बदलते परिवेश में जिस तेजी से तलाक के मामले बढ़ रहे हैं, उससे शादी के अस्तित्व पर संकट मंडराता जा रहा है। सवाल है कि आखिर युवाओं के लिए शादी निभाना मुश्किल क्यों होता जा रहा है। एक तरफ तो शादियों के भव्य रूप देखने में आ रहे हैं, जबकि दूसरी ओर संबंधों में लगातार खटास बढ़ती जा रही है। इसके इतर परिवार के अन्य रिश्ते भी टूटते नजर आ रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र में कुछ हद तक अभी नियंत्रण है, लेकिन शहरी इलाकों में स्थिति गंभीर बन रही है।

गांवों के मुकाबले महानगरों की बात करें तो यहां तलाक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। एक सर्वे के अनुसार 1960 में सालभर में जहां तलाक के एक या दो मामले ही आते थे, वहीं 1990 तक ये आंकड़ा 1000 को पार कर गया। 2005 में फैमिली कोर्ट में तलाक के सात हज़ार से भी ज्यादा मामले दर्ज थे। ताजा आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली में हर साल तलाक के 8-9 हजार मामले दर्ज हो रहे हैं, वहीं मुंबई में ये संख्या करीब 5 हजार है। जीवनसाथी डॉट कॉम के एक सर्वे के मुताबिक, तलाक लेने वालों में 25-35 साल के जोड़ों की संख्या ज्यादा है। मैरिज काउंसलर डॉ. राजीव आनंद के मुताबिक, आजकल के युवा शादी को कमिटमेंट की बजाय कन्वीनियंट (सुविधाजनक) रिलेशनशिप मानते हैं। जब तक सहजता से रिश्ता चलता है वो चलाते हैं और जब उन्हें असुविधा महसूस होने लगती है, तो बिना किसी झिझक के झट से रिश्ता तोड़ देते हैं। कुछ जानकार टूटते रिश्तों के लिए शहरों में तलाकशुदा महिलाओं को मिल रही स्वीकार्यता को भी जिम्मेदार मानते हैं। साइकोलॉजिस्ट मीता दोषी कहती हैं, तलाक को अब लोग कलंक नहीं मानते। पहले तलाकशुदा महिलाओं को घर तोडऩे वाली कहकर आस-पड़ोस वाले और नाते-रिश्तेदार ताने मारते थे। इतना ही नहीं, माता-पिता भी तलाकशुदा बेटी को अपनाने से कतराते थे, लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। तलाकशुदा महिलाएं अब समाज से नजरें चुराकर नहीं, बल्कि गर्व से सिर उठाकर जी रही हैं।

आर्थिक स्वतंत्रता भी एक कारक

डॉ. आनंद का मानना है, महिलाओं की आत्मनिर्भरता से भी उनके रिश्तों की लय बिगड़ गई है। आर्थिक रूप से मजबूत होने की वजह से उन्हें लगता है कि जब वो अकेले सब कुछ मैनेज कर सकती हैं, तो घुटन भरे रिश्ते को ढोने की भला क्या जरूरत है? दिलचस्प बात ये है कि पुरुषों को कमाऊ पत्नी तो चाहिए, लेकिन उसे वे खुद से ऊपर उठता नहीं देख सकते। पत्नी के सामने अपना रुतबा कम होता देख पुरुषों के अहं को ठेस पहुंचती है और यही ठेस उनकी शादीशुदा जिंदगी में दरार डाल देती है। कुछ ऐसी ही राय साइकोलॉजिस्ट मीता दोषी की भी है। उनके मुताबिक, आजकल महिलाएं स्वतंत्र हो गई हैं, आर्थिक रूप से वो किसी पर निर्भर नहीं हैं। ऐसे में पति से अलग होने का फैसला करने पर उन्हें इस बात का डर नहीं रहता कि अलग होने के बाद उनका खर्च कैसे चलेगा? बच्चों का पालन-पोषण कैसे होगा या समाज क्या कहेगा? पहले ज्यादातर महिलाएं मजबूरी में खोखले हो चुके रिश्तों का बोझ भी ढोती रहती थीं। शहरों में तलाक के बढ़ते मामलों का एक बड़ा कारण दोगुनी आय एवं नो किड्स का बढ़ता चलन भी है। आजकल के ज्यादातर दंपति कॅरियर की खातिर अकेले रहना पसंद करते हैं। ऐसे में तलाक की स्थिति में उन्हें ये डर भी नहीं रहता कि उनके अलग होने पर बच्चों पर क्या असर पड़ेगा?

जब बर्दाश्त करना मुश्किल हो जाता है, तो वो रिश्ता खत्म करने में ही भलाई समझती हैं। वैसे भी जिस रिश्ते में तिल-तिलकर रोज मरना हो उसे तोड़ देना ही बेहतर है। युवा जोड़े खुद के वजूद को ज्यादा महत्व देने लगे हैं। रिश्ता टूटने के लिए कोई एक जिम्मेदार नहीं होता, ताली दोनों हाथों से बजती है। हो सकता है, एक 70 प्रतिशत जिम्मेदार हो तो दूसरा 30 प्रतिशत ही हो, लेकिन गलती दोनों की होती है।

समाज व परिवार का सीमित दायरा

विशेषज्ञों का कहना है आजकल किसी भी शादीशुदा जोड़े की जिंदगी में समाज और परिवार की भूमिका सीमित हो गई है, जिससे उनके बीच की छोटी-मोटी अनबन या झगड़ों को सुलझाने वाला कोई नहीं रहता। मनमुटाव की स्थिति में कपल्स अपना धैर्य खो देते हैं और तुरंत अलग होने का फैसला कर लेते हैं। आजकल के युवा अच्छा जीवनसाथी चाहते हैं, जो हर चीज में उपयुक्त हो, लेकिन वो जीवनसाथी की मदद कर उसे किसी काम में परफेक्ट बनाने की जहमत नहीं उठाते। रिश्ते टूटने की एक बड़ी वजह धैर्य की कमी है, जिससे कुछ समय बाद कपल्स का एक-दूसरे के प्रति प्यार व आकर्षण कम हो जाता है, यही वजह है कि लव मैरिज करने वाले भी आसानी से तलाक ले रहे हैं।

प्यार व विश्वास में कमी

आई लव यू बोल देना ही इस बात का सबूत नहीं कि पति-पत्नी के प्यार की डोर मजबूत है। महानगरों में जहां कामकाजी जोड़ो की तादाद दिनोंदिन बढ़ती जा रही है, उनके बीच प्यार व विश्वास उतना ही कम होता जा रहा है। घर विलंब से आने या फोन न उठाने पर पति-पत्नी दोनों को ही लगने लगता है कि उसके साथी का किसी और से संबंध है, इसलिए वो उन्हें नजरअंदाज कर रहा है। फिर शक का यही बीज उनके रिश्तों को खोखला कर देता है। कई कपल्स तो अपने साथी की हर हरकत पर नजर रखने के लिए उनके पीछे जासूस लगाने से भी नहीं हिचकिचाते। विश्वास ही शादी की बुनियाद है, अगर बुनियाद ही कमजोर हो जाए, तो शादी टिक पाना मुश्किल हो जाता है। पहले जहां पति-पत्नी की भूमिका तय होती थी, वहीं अब महिलाओं की भूमिका बदल रही है। उन्हें पहले से ज्यादा अधिकार प्राप्त हैं और ये बात पुरुषों को हजम नहीं हो रही। इसके अलावा आर्थिक, भावनात्मक और शारीरिक पहलू भी रिश्ता टूटने के लिए जिम्मेदार है। कपल्स को ढेर सारी उम्मीदें रखने की बजाय एक-दूसरे के अलग व्यक्तित्व को स्वीकारना चाहिए। शादी निभाने के लिए भव्य शादी समारोह की नहीं, बल्कि समझदारी की जरूरत है।

बहुत ज्यादा अपेक्षाएं

डॉ. वीणा के मुताबिक, महिलाएं शादी निभाने की कोशिश करती हैं। कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो कामकाजी महिलाओं के प्रति नजरिए में कोई खास बदलाव नहीं आया है। आज भी पुरुष ऐसी पत्नी चाहते हैं, जो अच्छी दिखती हो, अच्छा कमाती हो और जो उनके घर-परिवार को भी अच्छी तरह संभाल सके, यानी पत्नी उनकी हर कसौटी पर खरी उतरे, जो संभव नहीं है। आजकल पुरुषों को ही नहीं, बल्कि महिलाओं को भी अपने साथी से बहुत-सी उम्मीदें रहती हैं, जैसे पति अच्छा दिखे, अच्छा कमाए, उसकी हर बात सुने, उसके माता-पिता का ज़्यादा ध्यान रखे आदि। मनोवैज्ञानिक मीता दोषी कहती हैं, आजकल युगल की शादी से अपेक्षाएं बहुत बढ़ गई हैं। एक-दूसरे से की गई ये अपेक्षाएं जब पूरी नहीं होतीं तो पति-पत्नी के रिश्ते में दूरियां आने लगती हैं और धीरे-धीरे ये दूरियां इस कदर बढ़ जाती हैं कि उनके रास्ते ही अलग हो जाते हैं।

ताली एक हाथ से नहीं बजती

तलाक के लिए हर बार पति ही जिम्मेदार हो, ये जरूरी नहीं। तीन साल पहले प्रेम विवाह करने वाले मुंबई के अम्बिका प्रसाद इन दिनों अकेले हैं। वे कहते हैं, मैं अपने माता-पिता का इकलौता बेटा हूं। शादी के बाद मेरी पत्नी को बेवजह न जाने क्यों मेरे माता-पिता से परेशानी होने लगी। वो चाहती थी कि मैं अपने मां-बाप को छोडक़र उसके साथ दूसरे फ्लैट में रहूं। जो संभव नहीं था। मैं अपने बूढ़े माता-पिता को अकेला नहीं छोड़ सकता, ये कहने पर वो मुझे ही छोडक़र चली गई और तलाक का नोटिस भेज दिया। दरअसल, शादी के बंधन को निभाने के लिए एक तरफ जहां प्यार और विश्वास की जरूरत होती है वहीं, दोनों तरफ से सामंजस्य बिठाने की भी जरूरत होती है। वो शायद अब हो नहीं पा रहा है। यही कारण है कि रिश्ते जर्जर नजर आ रहे हैं। चाहे फिर पति-पत्नी के अलावा माता-पिता या चाचा-चाही, भैया-भाभी, सास-स्वसुर, अन्य रिश्ते भी गौड़ होते नजर आ रहे हैं।

(लेखिका : डॉ. नीति पांडेय, माधव विधि महाविद्यालय में प्राचार्य हैं)

Updated : 19 Nov 2022 4:22 PM GMT
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