खूबसूरत अभिनेत्री और गायिका सुलक्षणा पंडित की बिदाई

खूबसूरत अभिनेत्री और गायिका सुलक्षणा पंडित की बिदाई
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प्रदीप सरदाना

सुलक्षणा पंडित यूं तो पिछले करीब 40 बरसों से फिल्म संसार से दूर थीं। यहाँ तक किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में भी वह नहीं जाती थीं। वह गुमनामी में एकाकी जीवन जी रही थीं। बस कभी कभार उनके स्वास्थ्य को लेकर खबर आती रहती थी कि वह बीमार हैं तो कभी कुछ तो कभी कुछ। लेकिन अब जब 6 नवंबर को सहसा उनके निधन की खबर आई तो मन दुखी हो गया। मुझे तो उनके साथ पुरानी मुलाकातें, पुरानी यादें ताजा हो आईं। बला की खूबसूरत इस अभिनेत्री का कभी बड़ा जलवा था। सन 1970 से 1985 के दौरान सुलक्षणा ने जहां करीब 25 फिल्मों में अभिनेत्री के रूप में काम किया। वहाँ इसी दौरान फिल्मों में करीब 50 गीत भी गाए। उलझन, संकल्प, सलाखें, हेरा फेरी, संकोच,शंकर शंभू, खानदान, बंडलबाज, वक्त की दीवार, फांसी, धर्मकाँटा, चेहरे पे चेहरा, गंगा और सूरज, राज, दिल ही दिल में और दो वक्त की रोटी उनकी प्रमुख फिल्मों में से हैं। फिर उनकी एक फिल्म ‘अपनापन’ तो एक ऐसी लोकप्रिय और शानदार फिल्म है जो सुलक्षणा के खूबसूरत अभिनय की याद हमेशा दिलाती रहेगी। देखा जाए तो बरसों बाद फिल्मों में कोई ऐसी गायिका अभिनेत्री आई थी, जो नूरजहां और सुरैया युग की वापसी का बोध कराती थी। लेकिन एक तो फिल्मकार सुलक्षणा की प्रतिभा का पूरा इस्तेमाल नहीं कर सके। दूसरा बाद में सुलक्षणा ने फिल्मों से संन्यास लेकर फिल्म दुनिया से भी ऐसी दूरी बनाई कि स्वयं ही अपने उज्ज्वल करियर को समाप्त कर दिया।



हालांकि सुलक्षणा पंडित ने चाहे कम फिल्में कीं, काम गीत गाए। लेकिन उनकी गायकी और अदायगी का लोहा सभी ने माना। इसका एक प्रमाण यह भी है कि उन्होंने उस दौर के कई बड़े नायकों राजेश खन्ना, संजीव कुमार, जीतेंद्र, शशि कपूर, राज कुमार, विनोद खन्ना, फिरोज खान, नवीन निश्चल, विनोद मेहरा, शत्रुघन सिन्हा और राज बब्बर के साथ काम किया। साथ ही किशोर कुमार, मोहम्मद रफी, महेंद्र कपूर, येसूदास, सुरेश वाडेकर, मोहम्मद अज़ीज़ और आशा भोसले व अपनी बहन विजेयता पंडित के साथ गीत भी गाए।

असल में सुलक्षणा एक गायिका ही बननी चाहती थी। उनका समस्त परिवार संगीत को समर्पित रहा है। चाहे उनकी दादा पंडित मोतीलाल और उनके पिता पंडित प्रताप नारायण हों या चाचा पंडित जसराज। ऐसे ही उनके भाई मंधीर पंडितऔर जतिन-ललित।

मध्यप्रदेश के रायगढ़ में 12 जुलाई 1954 को जन्मी सुलक्षणा को पिता पंडित प्रताप नारायण ने यूं तो अपने सभी 7 बच्चों को उनके बचपन से संगीत की शिक्षा दी। लेकिन सुलक्षणा संगीत के मामले में अपने नाम को साकार करते हुए सभी से सुलक्षण रहीं। उधर फिल्म गीतों में सुलक्षणा का आगमन यूं तो 1967 में आई फिल्म ‘तकदीर’ के गीत ‘पापा जल्दी आ जाना’ से हो गया था। इस लोकप्रिय गीत में सुलक्षणा ने लता मंगेशकर के साथ अपनी आवाज दी थी। लेकिन फिल्मों में एक गायिका के रूप में बड़ी पहचान और लोकप्रियता उन्हें तब मिली जब 1971 में फिल्म ‘दूर का राही’ में किशोर कुमार के साथ उनका गीत ‘बेकरार दिल तू गाए जा’ आया। यह गीत सुलक्षणा का ‘सिग्नेचर सॉन्ग’ बन गया। लेकिन इस हिट गीत के बावजूद सुलक्षणा को गायिका के रूप में फिल्मों में अच्छे मौके नहीं मिले। लेकिन वह रफी, किशोर, हेमंत कुमार के साथ देश-दुनिया में स्टेज शो करने लगीं। इससे आर्थिक संकटों से जूझते पूरे पंडित परिवार को आर्थिक संबल मिला। बाद में गायक-संगीतकार हेमंत कुमार और किशोर कुमार की सलाह पर सुलक्षणा अभिनेत्री बन गईं। एक तो इसलिए कि लता-आशा के युग में उन्हें बतौर गायिका फिल्मों में अभिनय के साथ गायिका के रूप में ज्यादा मौके मिल सकेंगे। दूसरा तब गायिकाओं से ज्यादा सम्मान अभिनेत्रियों का होता था। उनकी अभिनेत्री के रूप में पहली फिल्म मुमताज़ की भी याद दिलाती देन सुलक्षणा


‘उलझन’ 1975 में प्रदर्शित हुई। अपनी पहली ही फिल्म से सुलक्षणा सभी की पसंद बन गईं। सुलक्षणा के अभिनय, रूप और आवाज को देख अभिनेत्री मुमताज़ की याद हो आती थी। जो शादी के बाद फिल्मों से संन्यास लेकर विदेश चली गई थीं। ‘उलझन’ में सुलक्षणा के नायक संजीव कुमार थे। सुलक्षणा संजीव कुमार के व्यक्तित्व और अभिनय से इतनी प्रभावित हुईं कि उन्हें दिल दे बैठीं। बस उनका यही कदम उनके अच्छे भले जीवन का घातक बन गया। सुलक्षणा, संजीव कुमार संग शादी के सपने बुनने लगीं। लेकिन संजीव हेमा मालिनी से शादी करना चाहते थे। उधर हेमामालिनी ने 1980 में जब धर्मेन्द्र से शादी कर ली तो सुलक्षणा को लगा अब संजीव से उनकी शादी हो जाएगी। लेकिन पहले तो संजीव हेमामालिनी के गम में उदास रहे। बाद में वह सुलक्षणा के करीब तो आए। लेकिन उन्हें हृदय रोग हो गया। अपने दिल की सर्जरी कराने के बाद जब वह कुछ ठीक होने लगे तो आसार बने कि संजीव और सुलक्षणा की शादी हो सकती है। लेकिन तभी 6 नवंबर 1985 को संजीव कुमार का निधन हो गया। सुलक्षणा इस सदमे को सहन नहीं कर सकीं। वह इतनी गमगीन हो गईं कि उन्होंने अपने करियर की कुर्बानी दे दी, यहाँ तक समाज को त्याग दिया। फिल्म संसार में ऐसे अनुपम प्रेम और त्याग की कहानी बहुत कम हैं। इधर इसे संयोग कहें या सुलक्षणा का शास्वत प्रेम कि सुलक्षणा ने भी उसी 6 नवंबर के दिन इस दुनिया को अलविदा कहा, जिस दिन संजीव कुमार ने यह दुनिया छोड़ी थी।

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