अटल बिहारी वाजपेयी और ‘स्वदेश’

अटल बिहारी वाजपेयी और ‘स्वदेश’
X
चन्द्रवेश पाण्डे

अटल बिहारी वाजपेयी का व्यक्तित्व जितना व्यापक राजनीति में था, उतना ही गहरा और आत्मीय उनका रिश्ता साहित्य और पत्रकारिता से भी रहा। वे उन विरल राजनेताओं में थे, जिनकी वाणी में काव्यात्मकता थी और लेखनी में विचार। उनका ‘स्वदेश’ से जुड़ाव केवल एक संपादकीय दायित्व नहीं था, बल्कि वैचारिक प्रतिबद्धता, राष्ट्रबोध और रचनात्मक पत्रकारिता की साधना थी। ‘स्वदेश’ के आद्य संपादक के रूप में उन्होंने जिस परंपरा की नींव रखी, वह हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में एक प्रेरक अध्याय बन गई।

‘स्वदेश’ और वाजपेयी का आरंभिक जुड़ाव

वर्ष 1945 में, जब ‘स्वदेश’ की यात्रा आरंभ हुई, उसी समय अटल बिहारी वाजपेयी लखनऊ में ‘स्वदेश’ के संपादक बने। यह उनके सार्वजनिक जीवन का प्रारंभिक चरण था, किंतु वैचारिक स्पष्टता, भाषाई सामर्थ्य और राष्ट्रीय दृष्टि में वे पहले से ही परिपक्व दिखाई देते थे। ‘स्वदेश’ एक वैचारिक पत्र के रूप में राष्ट्रवादी चेतना, सांस्कृतिक आत्मसम्मान और लोकतांत्रिक मूल्यों को अभिव्यक्त करने के उद्देश्य से निकला था। वाजपेयी के लिए संपादन मात्र समाचार-संकलन नहीं था, बल्कि समाज से संवाद और राष्ट्र के भविष्य पर विमर्श का सशक्त माध्यम था।

यद्यपि वे अल्पकाल के लिए ही ‘स्वदेश’ के संपादक रहे, पर उनके कार्यकाल में बोए गए वैचारिक बीज आगे चलकर एक विशाल वृक्ष बने। आज ‘स्वदेश’ तीन राज्यों में 16 संस्करणों के साथ एक सुदृढ़ पत्रकारिता संस्थान के रूप में खड़ा है। यह उसी प्रारंभिक दृष्टि की दीर्घकालिक परिणति है।

संपादकीय दृष्टि और लेखन-शैली

अटल बिहारी वाजपेयी की संपादकीय दृष्टि संतुलित, संवेदनशील और दूरदर्शी थी। ‘स्वदेश’ के माध्यम से उन्होंने राष्ट्रीय हितों, सामाजिक न्याय, लोकतंत्र, सांस्कृतिक विरासत और अंतरराष्ट्रीय घटनाओं पर संयत एवं विचारोत्तेजक लेखन किया। उनकी भाषा सहज, ओजपूर्ण और साहित्यिक सौंदर्य से युक्त होती थी। वे कटुता के स्थान पर तर्क को और उत्तेजना के स्थान पर विवेक को महत्व देते थे। यही कारण है कि विचारधारा से जुड़ा होने के बावजूद ‘स्वदेश’ संवादधर्मी और विश्वसनीय बना रहा।

पत्रकार, पाठक और समाज से संवाद

‘स्वदेश’ के संपादक के रूप में वाजपेयी ने पत्रकारों और लेखकों के साथ सहयोगात्मक संबंध स्थापित किए। वे युवा लेखकों को प्रोत्साहित करते, वैचारिक विविधता को स्थान देते और संपादकीय स्वतंत्रता का सम्मान करते थे।

पाठकों के साथ भी उनका रिश्ता संवादपरक था। वे पत्र के माध्यम से समाज की चिंताओं को समझते और उन्हें जिम्मेदारी के साथ अभिव्यक्त करते थे। यह रिश्ता विश्वास, बौद्धिक ईमानदारी और नैतिकता पर आधारित था।

राजनीति और पत्रकारिता के बीच सेतु

‘स्वदेश’ से वाजपेयी का जुड़ाव राजनीति और पत्रकारिता के बीच एक स्वस्थ सेतु का निर्माण करता है। उन्होंने यह उदाहरण प्रस्तुत किया कि वैचारिक प्रतिबद्धता के बावजूद पत्रकारिता मर्यादित, तथ्यनिष्ठ और लोकतांत्रिक रह सकती है। आगे चलकर उनके राजनीतिक जीवन में जो संवादशीलता, लोकतांत्रिक शिष्टाचार और व्यापक दृष्टि दिखाई दी, उसकी जड़ें उनके इसी संपादकीय अनुभव में स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं।

‘स्वदेश’ के प्रति अटल प्रेमः निरंतर सहभागिता

अटल बिहारी वाजपेयी का ‘स्वदेश’ के प्रति प्रेम अटल ही रहा। संपादक पद छोड़ने के बाद भी उनका भावनात्मक और वैचारिक संबंध निरंतर बना रहा। 22 मार्च 1985 को वे ‘स्वदेश’ की फोटो कंपोजिंग इकाई के उद्घाटन समारोह में उपस्थित हुए। ‘स्वदेश’ की प्रगति देखकर वे अत्यंत प्रसन्न हुए और इसे वैचारिक पत्रकारिता की सफलता का उदाहरण बताया।

जब ‘स्वदेश’ द्वारा उनके व्यक्तित्व पर आधारित ‘अमृत अटल’ ग्रंथ का प्रकाशन हुआ, तब भी वे विशेष रूप से स्वदेश कार्यालय पधारे। इन अवसरों पर स्वदेश के प्रधान संपादक मामा माणिकचंद वाजपेयी, उनके परम मित्र शिवकुमार शर्मा ‘अन्ना’ जी काकिडे, गोपालकृष्ण छापरवाल, संपादक जयकिशन शर्मा, विवेक शेजवलकर, यशवंत इंदापुरकर, अनुराग बंसल सहित स्वदेश परिवार के सदस्य उपस्थित रहे। ये प्रसंग स्पष्ट करते हैं कि ‘स्वदेश’ केवल उनके जीवन का प्रारंभिक अध्याय नहीं, बल्कि एक सतत भावनात्मक और वैचारिक रिश्ता था।

विरासत और प्रभाव

अटल बिहारी वाजपेयी का ‘स्वदेश’ से जुड़ाव भले ही समय की दृष्टि से अल्पकालिक रहा हो, पर उसका प्रभाव दीर्घकालिक और बहुआयामी है। उन्होंने हिंदी पत्रकारिता को विचार, भाषा और नैतिकता-तीनों स्तरों पर समृद्ध किया। ‘स्वदेश’ उनके लिए ऐसा मंच था, जहाँ राष्ट्र के प्रति उनकी प्रतिबद्धता शब्दों में ढलकर समाज तक पहुँची।

‘स्वदेश’ के आद्य संपादक के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी का योगदान उनकी बहुआयामी प्रतिभा का सशक्त प्रमाण है। यह संबंध बताता है कि जब साहित्यिक संवेदना, वैचारिक स्पष्टता और लोकतांत्रिक मूल्य एक साथ आते हैं, तो पत्रकारिता केवल सूचना नहीं देती, बल्कि समाज को दिशा भी देती है।

‘स्वदेश’ के माध्यम से वाजपेयी ने न केवल विचारों का संपादन किया, बल्कि एक जिम्मेदार राष्ट्रीय चेतना के निर्माण में भी योगदान दिया, जो आज भी पत्रकारिता और सार्वजनिक जीवन-दोनों के लिए प्रेरणा बनी हुई है।

Next Story