Home > विशेष आलेख > धर्म विरोधी, संस्कृति विध्वंसक एवं अपसंस्कृति आमंत्रक

धर्म विरोधी, संस्कृति विध्वंसक एवं अपसंस्कृति आमंत्रक

धर्म विरोधी, संस्कृति विध्वंसक एवं अपसंस्कृति आमंत्रक
X

स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि

देश की पराधीनता के कालखण्ड में परतंत्र भारत में कांग्रेस संस्था का जन्म हुआ तब से इस कांंग्रेस संस्था से जुड़े लोगों का एक ही लक्ष्य था 'भारत वर्ष को आजादी दिलाना अत: भारतीय जनमानस इस संस्था से जुड़ता गया। भारतीयता एवं भारतीय संस्कृति व भारत के मूल संस्कारों एवं यहां के पारम्परिक जीवन मूल्यों के संरक्षण व संवर्द्धन के गहरे सोच से जुड़ा हर व्यक्ति इस कांग्रेस नामक संस्था से जुड़ना अपना सौभाग्य समझता था। अनेक नेतृत्वकर्ता जिनके मन-मस्तिष्क में अंग्रेजों की गुलामियत से छुटकारा पाने का एक जुनून था, भारतीय नेताओं के नेतृत्व में भारतवर्ष का प्रत्येक घर, देश का प्रत्येक नागरिक 'कांग्रेस के जनांदोलन का हिस्सा बनना 'गौरव समझता था देश की स्वाधीनता के लिए लोग 'बलिदान देना तथा अपना सर्वस्व न्यौछावर करना 'सौभाग्य समझते थे परंतु भारत के स्वतंत्र होते ही कांग्रेस संस्था का 'राजनीतिकरण हो गया और वह स्वतंत्र भारत की एक 'राजनैतिक पार्टी हो गई, जबकि तत्कालीन राजपुरुषों ने (जिसमें स्वाधीनता आंदोलन के पुरोधा महात्मा गांधी का भी स्वर सम्मिलित था) कांग्रेस संस्था को भंग कर देने तक की पहल की परन्तु देश के नेतृत्वकर्ता राजनैतिक महत्वाकांक्षी 'राजनेताओं ने इसे 'राजनैतिक दल बनाकर अपनी महत्वाकांक्षा का उल्लू सीधा किया और स्वतंत्र भारत के जनमानस को दिग्भ्रमित कर दिया ।

स्वतंत्र भारत में जिस संविधान का निर्माण किया गया उसे 'सेक्युलर सिद्धांतवादी बना कर भारतीय पारम्परिक धर्म अवधारणा के विरूद्ध, पारम्परिक भारतीय अध्यात्ममूलक संस्कृति का विरोधी 'भारतीय संविधान स्वाधीन भारत के राजनेताओं ने दिया और स्वतंत्र भारत के प्रथम आम चुनाव में जब कांग्रेस पार्टी सत्तारूढ़ हुई तो 'इसी सेक्युलर संविधान की आड़ में कांग्रेस सम्बद्ध 'राजनेतागण धर्म विरोधी, संस्कृति विध्वंसक और विदेशों से आयातित अपसंस्कृति अपसंस्कारों के आमत्रंक हो गए।

'मुझे सार्वजनिक रूप से कहने और यह लिखने में कोई संकोच नहीं है कि कांग्रेस पार्टी (जो अब राजनैतिक दल के रूप में सक्रिय है) उसके स्वतंत्र भारत में राजसत्ता हासिल कर लेने से, उसने भारतीय जनमानस को जितना क्षोभ और संताप दिया है उसका विस्तारपूर्वक जिक्र करना इसीलिए भी उचित नहीं होगा कि - 'जनता सब जानती है

'कांग्रेस की चाल और उससे सम्बद्ध कांग्रेसजनों के चरित्र (आचरण) ने भारतीय धार्मिक मान्यताओं और सांस्कृतिक अवधारणा तथा यहां के परम्परागत सनातन संस्कारों की जितनी अवहेलनापूर्वक हानि की है उसकी भरपाई करने में आधी शताब्दी संघर्ष करना होगा और उस संघर्ष का मूल यही होगा कि - 'कांग्रेस पार्टी को जड़ से उखाड़ फेंकना होगा। भारतीय जनमानस को वर्तमान कालिक समय की नजाकत को समझना होगा। आज समय भारतीय संस्कृति, संस्कार यहां की धार्मिक अध्यात्मिक और पारम्परिक अवधारणाओं के अनुकूल चल रहा है। इस हिंदुत्व के पुनरूत्थान की शताब्दी में संस्कारक्षम दल एवं उससे सम्बद्ध सुधीजनों को सत्तारूढ़ करना होगा अन्यथा हिंदुत्व की बाजी हाथ से निकल जाने पर भारतीय समाज हाथ मलता रह जाएगा। धर्म और संस्कृति के उत्थान का सुअवसर प्रकारान्तर से कहूं तो - 'स्वर्णिम काल इतिहास में बार-बार और जल्दी-जल्दी नहीं आता। हिन्दवी स्वराज, 'हिन्दू पद पादशाही के संस्थापक वीर शिवाजी महाराज के काल के बाद यह समय पुन:'हिन्दू समाज - भारतीय जनमानस के समक्ष बड़ी मुखरता से आया है- हम सभी को इसका दृढ़ता और प्रखरता से एक जुट होकर इसका साथ देना होगा। यही वर्तमान की अनिवार्य आवश्यकता है। हम आप अनुकूल समय का सम्मान करें - यह समय हमारा आपका मान रखेगा। हम भारतीय यह ना भूलें कि - समय ही भगवान का स्वरूप है। अत: 'समय परमेश्वर का सम्मान कर उसकी इच्छा के अनुरूप निर्णय लेकर 'भारतीय राष्ट्र की एकात्मता - अखण्डता और भारतीय संस्कृति के मूल स्वर सामाजिक समरसता को मुखरित कर उसकी रक्षा करें इसके लिए जरूरी है कि जनता-जनार्दन भी ऐसे दल व नेताओं को आइना दिखाने से नहीं चूके, जो कि भारतीय संस्कृति, हिन्दू धर्म एवं भारतीय संस्कृति में विकृतियों को प्रवेश करवाने के जबरिया हथकंडे अपनाने से बाज नहीं आ रहे हैं।

(लेखक : श्री रामजन्मभूमि मंदिर संत उच्चाधिकार समिति के सदस्य एवं विहिप केन्द्रीय मार्गदर्शक मण्डल के सदस्य हैं।)

Updated : 31 May 2023 8:30 PM GMT
author-thhumb

City Desk

Web Journalist www.swadeshnews.in


Next Story
Top