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क्या एक बड़े षडयंत्र का शिकार हुए हैं हम

सौ. महिमा तारे

क्या एक बड़े षडयंत्र का शिकार हुए हैं हम
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समय के साथ साथ अब यह प्रश्न लगता है दुर्भाग्य से सिर्फ प्रश्न नहीं रहा है और मिल रहे संकेत,प्रमाण यह साफ इशारा कर रहे हैं कि भारत और भारत याने क्या हम सब एक बड़े षडयंत्र का शिकार हो गए हैं ।और उस से भी बड़ा दुर्भाग्य यह है कि भारत के खिलाफ चल रहे इस प्रॉक्सी वॉर में भारत का एक विशिष्ट वर्ग लगा हुआ है और उस से भी बड़ा संकट यह है कि भारत का ही एक बहूत बड़ा वर्ग इस से बेखबर है ऒर वह तथ्यों के अभाव में एक ऐसा मानस तैयार कर रहा है जो भारत को भारत के ही खिलाफ करता है।

कोरोना वैश्विक महामारी की दूसरी लहर देश के सामने एक बड़ा संकट लेकर आई है यह एक सच है।जिस तेजी से मार्च अप्रैल में आंकड़े बढ़े और जिस तेजी से इलाज के अभाव में लोगो को अपने प्राण गंवाने पड़े वह बेहद पीड़ादायक है।कोरोना से प्रभावित आंकड़े पहली लहर की तुलना में काफी ज्यादा है और खासकर विगत 20 दिन में जो देश मे भय का,अराजकता का वातवरण बना वह डराता है।लेकिन देश के समक्ष उपस्थित इस संकट पर वाल स्ट्रीट जरनल, न्यूयॉर्क टाइम्स ने को दृश्य प्रस्तुत किया वह एक योजना पूर्वक भारत के खिलाफ अभियान का एक हिस्सा है।टाइम्स का कवर भारत को लाशों के ढेर पर बताता है।एक एक मोत पीड़ादायक है और किसी की मृत्यु सिर्फ आंकड़ा भर नही है।आज भारतवासी 2 लाख के करीव अपने प्रियजनों को खो कर बेहद दुखी हैं लेकिन भारत को श्मशान बताने वाला टाइम्स अपने देश पर गौर करे।33 करोड़ की जनसंख्या वाले देश मे अब तक वहाँ 5 लाख मर चुके हैं और प्रभावितों का आंकड़ा 5 करोड़ के करीब है।जो भारत की तुलना में 3 करोड़ ज्यादा है।जबकि भारत की जन संख्या 130 करोड़ है।एक साधन सम्पन देश आज त्राहिमाम की मुद्रा में है और ज्ञान भारत को।

आइये थोड़ा पीछे लौटते हैं।पहली लहर में भारत ने आधारभूत संरचना और कमजोर स्वास्थ्य गत सुविधाओ के बावजूद इस लहर को एक बड़े आत्म विश्वास से न केवल टक्कर दी अपितु परास्त किया।ताली,थाली,दिया यह प्रतीक अवश्य थे पर इन प्रतीक के जरिये देश उठ खड़ा हुआ।देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नियमित अंतराल से देशवासियों से आभासी माध्यंम से मिले।और जिस देश के पास एक पी पी टी किट नही थी वह देश किट का ही नही वैक्सीन का न केवल निर्यातक बना अपितु वैक्सीन डिप्लोमेसी के तहत वैश्विक शक्ति बन कर उभरने लगा।।

खतरा यही से शुरू हुआ।भारत मे रह कर भारत के खिलाफ जहर बोने वाले सक्रीय हुए।जब विदेशों में वैक्सीन को लेकर एक अभियान चल रहा था देश मे वैक्सीन के खिलाफ अभियान चला।इन्फॉर्मेशन वॉर फेयर स्टडीज के शोधकर्ता सुमित कुमार के अनुसार इस अभियान में गैर भाजपा,एन. जी.ओ.ओर मीडिया के वर्ग ने मिल कर काम किया।मीडिया की बात करें तो इंडियन एक्सप्रेस ने 182,लोकसत्ता ने 172, नव भारत टाइम्स ने 236, हिंदुस्तान टाइम्स ने 236, टाइम्स ऑफ इंडिया ने 287, वायर ने 78, प्रिंट ने 5 स्क्रोल ने 122, न्यूज़ लांड्री ने 54 ओर अल्ट न्यूज़ ने 128 आलेख प्रकाशित किये और भारतीय वैक्सीन के खिलाफ वातावरण बनाया।58 कांग्रेस के 17 समाजवादी पार्टी के ,27 शिव सेना के ,13 डी एम के ओर 12 तृण मूल के ओर यहाँ तक की 7 भाजपा के नेताओ ने भी खिलाफ में बयान दिए।265 बड़े एन जी ओ.ने वारावरण बिगाड़ने का कार्य किया।कौन नही जानता अमेरिका के राष्ट्रपति के चुनाव में बाइडन को सबसे अधिक चंदा देने वाली कम्पनी फार्मा की थी जो वैक्सीन ही बनाती थी।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्म निर्भर भारत अभियान के तहत भारतीय वैक्सीन विकसित करने के लिए जो प्रोत्साहन वैज्ञानिकों को दिया उस से विश्व की ताकते हैरान थी।

इधर ठीक उसी समय फरवरी के पहले हफ्ते में विदर्भ में कोरोना के मरीज आना शुरू हुए।केन्द्र की टीम भी दौरा कर आई।लोक डाउन की चर्चा शुरू होती इसी के साथ महाराष्ट सरकार वसूली कांड में उलझी ओर केंद्र और प्रदेश के बीच संबंधों में टकराव शरू हुआ।इधर पांच राज्यो में चुनाव प्रचार शुरू हो गए थे।पर जैसे ही दक्षिण के राज्यो के चुनाव पूर्णता की ओर आ गए और बंगाल की रैलियों ने संदेश देने शुरू किए ।मीडिया ने कोरोना को चुनाव से जोड़ दिया।ईधर कुम्भ भी शुरू हो गया था।अच्छा होता कुंम्भ शुरू से ही सांकेतिक होता,ओर अच्छा होता चुनाव प्रचार आभासी माध्यम से होता।रैलियों को किया ही नही जाता।पर ऐसा नही हो सका यह सच है।लेकिन देश के हालात सिर्फ बंगाल चुनाव से बिगड़े यह स्थापित करने में मीडिया सफल हो गया।

ओर बढ़ते आंकड़ों के बीच जो भारत आज से चार माह पहले एक बडी वैश्विक भूमिका में था अचानक याचक की मुद्रा में दिखाई देने लगा।मदत के हाथ पूरी दुनिया से बढ़े यह सच है।पर

अक्टूबर के बाद से फरवरी तक ओर खासकर वैक्सीन आने के बाद से एक अभियान देश मे चलता तो हालात ऐसे न होते।निश्चित रूप से यह भी सच है कि कुछ कदम खासकर ऑक्सिजन,जीवन रक्षक दवाई ,नए अस्पताल आदि के कार्य भी शिथिल हुए ।लेकिन यंह गलती सिर्फ केंद्र के स्तर पर ही नही राज्यो से भी हुई।दूसरी लहर में निर्णय का अधिकार राज्य को देने का अनुभव भी ठीक नही रहा।।

अब फिर एक बार केंद्र थोड़ी देर से ही सही पर मज़बूती से खड़ी हुई है।राज्यों ने भी अपनी प्राथमिकता में कोरोना को लिया है।राष्ट्रीय विचार से प्रेरित संगठन भी आगे आये हैं।पर कोरोना के खिलाफ, राष्ट्रीय स्वाभिमान के लिए लड़ाई लंबी है।और एक स्वर में एक दिशा में कदमताल ही इसका विकल्प है।

Updated : 5 May 2021 10:08 AM GMT
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