संघ कार्य के 100 वर्ष:नरसिंहगढ़ में संघ शाखा की शुरुआत

संघ कार्य के 100 वर्ष:नरसिंहगढ़ में संघ शाखा की शुरुआत
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नरसिंहगढ़ में शाखा की शुरुआत 1942 में हुई। 1944 में यहां बालकृष्ण सप्त ऋषि प्रचारक बनकर आए। इसी तरह, खुजनेर की शाखा हरिनारायण टेलर ने शुरू की थी। उन्होंने शंकरजी की बगीचे में शाखा लगाना प्रारंभ किया। जीरापुर में 1944 में कमलाकर शुक्ला प्रचारक नियुक्त किए गए थे और अपनी संगठन कुशलता से उन्होंने जीरापुर के गांव-गांव तक संघ कार्य पहुंचाया। इसकी कल्पना हम इस तथ्य से भी कर सकते हैं कि सन् 1946 में विजयादशमी कार्यक्रम में 2000 लोगों की उपस्थिति रही। भाऊ साहब इंदुरकर के पश्चात भोपाल के सनत कुमार बनर्जी वहां प्रचारक नियुक्त हुए।

भले ही नरसिंहगढ़ में शाखा 1942 में प्रारंभ हुई, लेकिन नगर में शाखाओं का विस्तार 1960 से शुरू हुआ। शुरुआत में चार-पांच स्थानों पर शाखा लगाई जाती थी। इनमें थावरिया, जमात मंदिर, जय स्तंभ सूरज पोल, रामलला मंदिर के सामने वर्तमान दीनदयाल पार्क, बड़ा महादेव वर्तमान दशहरा मैदान में शामिल थे।

राजगढ़ जिले में संघ की पहली शाखा एवं विस्तार

खुजनेर में शिवजी के बाड़े में 1939 में संघ की पहली शाखा लगी थी। 1944 में भाऊ साहब इंदुरकर पहले जिला प्रचारक बनकर आए।

राजगढ़ जिले में संघ कार्य की शुरुआत खुजनेर नगर में शिवजी के बाड़े से सन् 1939 में हुई और उसके बाद सन् 1944 में भाऊ साहब इंदुरकर जिले के पहले जिला प्रचारक नियुक्त हुए। तब जिले में संघ कार्य को गति मिली। खुजनेर में उस स्थान पर आज भी शिवजी का मंदिर बना हुआ है।

राजगढ़ की पहली शाखा रामलीला मैदान में लगती थी। प्रारंभिक स्वयंसेवकों में गोविंद वल्लभ त्रिपाठी, प्रीतम लाल जोशी, चुन्नी लाल मौर्य, लक्ष्मी नारायण प्रजापति, श्रीनाथ गुप्ता और शंभूदयाल सक्सेना शामिल थे।

राजगढ़ में कर्मचारियों की अलग से शाखा लगने लगी। उज्जैन के शारदा शंकर व्यास द्वितीय वर्ष का संघ शिक्षा वर्ग करने गए थे और वहीं से प्रचारक बनने का निश्चय कर वापस लौटे। नौकरी से त्याग-पत्र देकर प्रचारक जीवन की शुरुआत की और ब्यावरा तहसील में संघ कार्य के विस्तार के लिए पहुंचे। बाद में वहां 1950 तक जिला प्रचारक के रूप में रहे।

सन् 1952 में दत्ताजी उननगांवकर शाजापुर व राजगढ़ संयुक्त जिले के प्रचारक बने। उनके कार्यकाल में जिले में सौ शाखाओं का लक्ष्य प्राप्त किया गया। सन् 1978 तक राजगढ़-ब्यावरा का क्षेत्र शाजापुर जिले के साथ संयुक्त रहा।

ब्यावरा की पहली शाखा

ब्यावरा में संघ की पहली शाखा अग्रवाल धर्मशाला में प्रारंभ हुई। प्रारंभिक दौर के स्वयंसेवकों में लक्ष्मी नारायण मेवाड़ा मुंशी, विष्णुदत्त गुप्ता, रामनारायण शर्मा, गिरवारीलाल काछी और ब्रजकिशोर शर्मा शामिल थे। यह धर्मशाला आज भव्य रूप में विकसित हो चुकी है।

नरसिंहगढ़ में सबसे पहले शाखा उस समय मैदान में लगी थी, जो अब शासकीय कर्मचारी भवन बन चुका है।

राजगढ़ को अलग जिला बनाया गया। उस समय संतोष त्रिवेदी संयुक्त जिले का कार्य देख रहे थे। इसके बाद माखन सिंह चौहान (शाजापुर) और परमानंद मनोहर (राजगढ़-ब्यावरा) जिले के जिला प्रचारक नियुक्त किए गए। राजगढ़ जिले में अब तक 14 जिला प्रचारकों ने संघ कार्य को आगे बढ़ाया।

संघ की शाखा में जाने वाले पहले स्वयंसेवक

सुभाष सक्सेना, ज्ञान तिवारी, नंदू सक्सेना, गोकुल वर्मा, सिंथे मामा, जगदीश चौहान, घनश्याम श्रीवास्तव, नंदू उदावत, राधारमण उपाध्याय, गोपाल सोनी, दादाभाई, भारतभूषण बाथम, कैलाश शर्मा, गांवटी मोहन शर्मा, लक्ष्मीनारायण पचवारिया, गोपाल खत्री, बाबूलाल साहू, राम पाठक, नरेन्द्र शर्मा, बृजमोहन सक्सेना, प्रेम बिहानी, शिव बिहानी, सत्यनारायण जाजू, रमेश भावसार, कमल सोनगर, भूपेन्द्र सिंह चौहान, रामचरण शर्मा, राकेश सक्सेना, पवन मेहता।

संघ ने किसी व्यक्ति विशेष को गुरु स्थान पर न रखकर परम पवित्र भगवा ध्वज को ही गुरु माना है। इसका कारण यह है कि व्यक्ति चाहे जितना महान हो, वह निरंतर अचल और पूर्ण नहीं रह सकता।

डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार

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