संघ कार्य के 100 वर्ष: भिण्ड में 87 वर्ष पहले शासकीय इंजीनियर श्री साठे ने अत्रे के बाड़े में लगाई पहली शाखा

लाहौर से लौटकर कृष्णचंद्र शास्त्री ने संघ कार्य को व्यवस्थित किया
स्वतंत्रता मिलने से पूर्व, लाहौर में अध्ययनरत भिण्ड के मूल निवासी कृष्णचंद्र शास्त्री जब भिण्ड लौटे, तब उनके प्रयासों से संघ कार्य को व्यवस्थित रूप मिला। उन्होंने लाहौर में पढ़ाई के साथ संघ के द्वितीय वर्ष का प्रशिक्षण भी प्राप्त किया था। इस दौरान श्रीराम थापक, वसंत सुरंगे, श्री केलकर, प्रभुदयाल गुप्ता, बालमुकुंद गुप्ता, श्रीनारायण भटनागर आदि की टोली ने भी संघ कार्य के विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
जिले के बड़े केन्द्र लहार में संघ कार्य 1942 में शुरू हुआ। सबसे पहले अडोखर में शिक्षक गोविंद सिंह चौहान ने शाखा लगाई। 1945 में भिण्ड से कृष्णचंद्र शास्त्री ने मिहोना में शाखाओं का विस्तार किया। वहीं, प्रभुदयाल गुप्ता ने लहार, राममोहन गुप्ता ने दबांह और मुरारीलाल बौहरे ने मौ क्षेत्र में प्रचारक के रूप में संघ कार्य का विस्तार किया। 1947 में खरगौन से आए प्रचारक कवीश्वर ने लहार में शाखाओं का विस्तार किया।
भिंड में पहली शाखा
भिण्ड जिले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा लगाने वाले प्रथम व्यक्ति ग्वालियर आए प्रचारक नारायणराव तटें थे। श्री तटें 1938 की सर्दियों में शाखा प्रारंभ करने के लिए भिण्ड आए थे। उनके साथ ग्वालियर के कार्यकर्ता व्यास भी भिण्ड आए। श्री तटें भिण्ड में कन्या पाठशाला की गली में एक महाराष्ट्रीय परिवार में ठहरे। यहां उनका सम्पर्क वनखण्डेश्वर मंदिर के निकट निवास करने वाले ओवरसियर (उप यंत्री) श्री साठे और उनके युवा पुत्र गजाननराव से हुआ।
श्री तटें ने उन्हें संघ कार्य की जानकारी दी और उनके सहयोग से कुछ युवकों से संपर्क कर अत्रे के बाड़े में शाखा शुरू की। प्रारंभिक स्वयंसेवकों में गजाननराव साठे, राधामोहन गुप्ता, मुकुंदराव अत्रे, शांति दीक्षित, रत्नाकर मित्र, नायब तहसीलदार परांजपे के भाई, रोशनलाल भटनागर आदि प्रमुख थे। श्री तटें दो-तीन दिन बाद भिण्ड से ग्वालियर लौट गए, पर स्थानीय युवा शाखा को निरंतर संचालित करते रहे। बाद में शाखा का स्थान बदलकर ठाकुर नेमीचंद जैन के बाड़े में कर दिया गया।
1944 में माणिकचंद वाजपेयी प्रचारक बने
सन् 1944 में माणिकचंद वाजपेयी नागपुर से तृतीय वर्ष का संघ प्रशिक्षण प्राप्त कर लौटे। छोटे उम्र में विवाह बंधन में बंध जाने के बावजूद वे संघ कार्य के लिए पूरी निष्ठा से लगे।भिण्ड में प्रचारक के रूप में कार्य करने के लिए उन्होंने आसपास के क्षेत्र से आने वाले विद्यार्थियों के रहने की व्यवस्था हेतु 15 रुपये मासिक किराए पर एक बड़ा मकान लिया। यह भवन आगे चलकर संघ का स्थायी कार्यालय बन गया। मामाजी गणित और अंग्रेज़ी पढ़ाने में भी कुशल थे, और विद्यार्थी इनके मार्गदर्शन में पढ़ाई के साथ शाखा कार्य में भी सक्रिय हुए।मामाजी ने 1944–1953 तक भिण्ड जिले के गांव-गांव में संघ कार्य का विस्तार किया और राष्ट्रभक्ति की अलख जगाई। उनके मार्गदर्शन में भिण्ड नगर की शाखाओं का विस्तार हुआ।
संघ की विचारधारा
“हमारा यह प्यारा हिन्दुस्थान, यह पवित्र हिंदू राष्ट्र हमारी कर्तव्यभूमि है। अतः हम लोगों ने अपने राष्ट्रीय हित की रक्षा के लिए संघ को स्थापित किया है। इसके द्वारा हम राष्ट्र की हर तरह से उन्नति करना चाहते हैं।”
- डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार
