संघ कार्य के 100 वर्ष: 1935 में डॉ. हेडगेवार ने खुद रखी थी सागर में संघ कार्य की नींव

वर्ष 1946 में डॉ. हरीसिंह गौर ने सागर विश्वविद्यालय की स्थापना की। देश के विभिन्न भागों से, विशेषकर विदर्भ से, अनेक विद्यार्थी उच्च शिक्षा हेतु सागर आने लगे। विश्वविद्यालय मकरोनिया स्थित बैरिक्स में प्रारंभ हुआ। विश्वविद्यालय परिसर में उस समय के हिसाब से एक बहुत बड़े संघ शिक्षा वर्ग (प्रथम) का आयोजन हुआ, जिसमें 2000 से अधिक स्वयंसेवक उपस्थित रहे।
शुरुआत में डॉ. हरीसिंह गौर ने विश्वविद्यालय परिसर उपलब्ध कराने से मना कर दिया था, परंतु एकनाथ रानाडे (प्रांत प्रचारक), भैयालाल सराफ (प्रांत संघचालक) तथा अन्य संघ कार्यकर्ताओं से चर्चा के बाद उन्होंने अपनी सहमति दे दी। इसके साथ ही उन्होंने संघ शिक्षा वर्ग के लिए आवश्यक सभी सुविधाएँ उपलब्ध कराने की अनुमति भी प्रदान की।
संघ शिक्षा वर्ग से डॉ. गौर इतने प्रभावित हुए कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हुए देश-विभाजन की विभीषिका पर वे स्पष्ट कहते थे- “हमारे यहाँ संघ है, अतः किसी को डरने की आवश्यकता नहीं है।” उस समय के सरसंघचालक श्री गुरुजी गोलवलकर तीन दिन तक शिविर में उपस्थित रहे। शिविर में उपयोग होने वाला अधिकांश सामान विश्वविद्यालय द्वारा उपलब्ध कराया गया।
1935 में डॉ. हेडगेवार ने रखी थी सागर में संघ कार्य की नींव
सागर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का पदार्पण प्रथम सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के सागर प्रवास के साथ हुआ। प्रामाणिक जानकारी के अनुसार सन् 1935 में डॉ. हेडगेवार का सागर प्रवास हुआ। वे लक्ष्मीपुरा स्थित नगर के तत्कालीन प्रसिद्ध वकील गंगाधर राव खेर (पूर्व प्रांत कार्यवाह लक्ष्मणराव खेर के पिताजी) के निवास पर दो दिन रुके थे।
उन्होंने श्री खेर के निवास पर नगर के कुछ प्रमुख लोगों की बैठक लेकर उन्हें संघ की अवधारणा से अवगत कराया। इस बैठक में नगर के 12 लोग उपस्थित थे- जिनमें गंगाधर राव खेर, भैयालाल सराफ, लक्ष्मण प्रसाद तिवारी, किशोर सिंह तोमर, रामकृष्ण पांड्या, मनोहरराव टिकेकर आदि प्रमुख थे।
बैठक के बाद डॉ. हेडगेवार ने जिले का संघ कार्य देखने की जिम्मेदारी भैयालाल सराफ को सौंपी। सागर में संघ की पहली शाखा लक्ष्मीपुरा के ‘चंपा बाग’ नामक स्थान पर प्रारंभ हुई। बाद में इसे स्थानांतरित कर महिला विद्यालय के पास स्थित वर्तमान मोराजी स्कूल के मैदान में लगाया जाने लगा।
सागर में पहले प्रचारक थे एकनाथ रानाडे
संघ कार्य के विस्तार के दृष्टि से डॉ. हेडगेवार ने सर्वप्रथम एकनाथ रानाडे को सागर भेजा। उन्होंने कुछ समय सागर में रहकर संघ का विस्तार किया। बाद में वे जबलपुर में प्रांत प्रचारक बने। इनके बाद डी.वी. शेष ‘अन्नाजी शेष’ सागर आये और 1936–37 में संघ शाखाओं का विस्तार किया।
कमल के पत्ते पर भोजन और फायर ब्रिगेड से स्नान
1946 के संघ शिक्षा वर्ग में पानी की भारी किल्लत थी। इसलिए लगभग ढाई हजार स्वयंसेवकों को नहलाने हेतु फायर ब्रिगेड के टैंक और पाइप का उपयोग किया जाता था। एक साथ लगभग 500 स्वयंसेवकों को मोटी धार से स्नान कराया जाता था।बर्तन धोने में पानी की बचत करने हेतु तालाब से कमल के पत्ते लाकर उन पर भोजन कराया जाता था।
सागर में श्रवणे जी का कार्य
सन् 1937–38 में मोतीचंद श्रवणे सागर आए। उनसे पूर्व संघ कार्य वर्धा से आए डी.वी. शेष (अन्नाजी शेष) द्वारा प्रारंभ हुआ था। 1936 में उन्होंने जैसीनगर जाकर वामन वासुदेव वाखले ‘भैय्याजी वाखले’ के सहयोग से संघ कार्य प्रारंभ किया।श्रवणे जी मृदुभाषी, समर्पित तथा प्रभावी व्यक्तित्व वाले कार्यकर्ता थे। वन-संचार के माध्यम से उन्होंने अनेक लोगों को संघ कार्य से जोड़ा। उनके समय में नगर में पाँच सार्थ शाखाएँ एवं तीन प्रभात शाखाएँ प्रारंभ थीं, जिनकी उपस्थिति 1000 तक पहुँच जाती थी। वन-संचार में भी 200–300 लोगों की उपस्थिति रहती थी।
पंजाब से आए थे कुंद्रा जी
1946 में ओमप्रकाश कुंद्रा पंजाब से संघ प्रचारक बनकर सागर आए। वे एयरफोर्स में अधिकारी थे। उनका विशेष योगदान यह था कि उन्होंने ही जबलपुर से के.सी. सुदर्शन जी को संघ प्रचारक बनाया था। सुदर्शन जी अपने बौद्धिकों में अक्सर उल्लेख करते थे कि उन्हें संघ से जोड़ने वाले कुंद्रा जी ही थे।श्री कुंद्रा बाद में हिंदुस्थान समाचार और पांचजन्य जैसे प्रकाशनों में महत्वपूर्ण भूमिकाओं में रहे। वे 1948 से 1957 तक सागर में प्रचारक रहे।
1940 में नागपुर गए थे स्वयंसेवक
सन् 1940 के नागपुर संघ शिक्षा वर्ग में सागर से 7-8 स्वयंसेवक प्रशिक्षण हेतु गए थे। इनमें बीरेन्द्र सिंह तोमर, यादव राव खेर, प्रसन्न मोघे, शिवराज सिंह ठाकुर, रामकृष्ण जड़िया, ओंकार प्रसाद श्रीवास्तव आदि प्रमुख थे।संघ कार्य के विस्तार में दामोदर लक्ष्मण अडोनी का भी योगदान रहा। वे 1939 में महिला विद्यालय सागर में शिक्षण कार्य के लिए आए थे। यहाँ उनका संपर्क श्रवणे जी से हुआ और वे उनके साथ रहने लगे। शिक्षण कार्य के बाद वे श्रवणे जी के साथ जनसंपर्क में अपना अधिकांश समय देते थे।
