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आस्थामय शौर्य का प्रतीक: भारत का प्रथम परमाणु परीक्षण

पोखरण: 18 मई के उपलक्ष्य में विशेष प्रसंग

आस्थामय शौर्य का प्रतीक: भारत का प्रथम परमाणु परीक्षण
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स्वदेश स्टोरी। विश्वव्यापी विषाणु संक्रमण की वर्तमान विषम परिस्तिथियों में संक्रमण मुक्ति के संघर्ष के साथ साथ देश की आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा का चिंतन भी आवश्यक हो गया है। भारत का गरिमामय महान इतिहास अहिंसा की आस्था के साथ साथ शौर्य के विश्वास से परिपूरित है। भगवान् बुद्ध की दयालुता तथा भगवान् महावीर का संयम हमारे आत्मीय सम्बल के आधार हैं, तो वीरांगना लक्ष्मीबाई का अदम्य साहस एवं हुतात्मा चंद्रशेखर आज़ाद ,भगत सिंह, सुभाषबोस जैसे क्रांतिवीरों के स्व बलिदान हमारे शौर्य के प्रेरणास्रोत हैं |

स्वातंत्र्योतर भारत में भी देश को सुरक्षा एवं शक्ति प्रदान करने के लिए जल, थल तथा नभ में भारतीय सेनाओं का गौरवशाली योगदान सदैव सर्वोपरि रहा है। सैन्य विज्ञान के शौर्य के इस शक्तिपुंज को प्रज्वल्लित रखने हेतु हमारे निष्ठ्वान समर्पित रक्षा वैज्ञानिकों की अनूठी सहभागिता भी अद्भुत् एवं अद्वतीय है। 18 मई1974 के दिन बुद्ध पूर्णिमा की पर्व तिथि पर बुद्ध की मुस्कान से पराक्रम का आव्हान करते हुए "मुस्कुरातेबुद्ध " नाम के गुप्त सांकेतिक अभियान से देश के इन निष्ठावान एवं समर्पित वैज्ञानिकों ने देश की पश्चिमी सीम के समीप पोखरण क्षेत्र में भारत का प्रथम सफल एवं शक्तिशाली परमाणु परीक्षण करके देश को परमाणु शक्ति के रूप में सम्मपन्नता प्रदान की।

देश की आंतरिक तकनीक का उपयोग करते हुए " अभियान शक्ति" नामांकित द्वितीय श्रंखला में पोखरण दो के नाम से ज्ञात 11 मई 1998 के दिन कुशल भारतीय वैज्ञानिकों ने "पोखरन दो"के नाम से प्रसिद्ध एक और शक्तिशाली सफल परमाणु परीक्षण करके वैश्विक पटल पर भारत को परमाणु शक्ति के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्रदान की। इन अद्वतीय एवम् साहसिक सैन्य वैज्ञानिक अभियानों का पूर्वानुमान अमेरिका, रूस, फ्रान्स, ब्रिटैन, चीन जैसे शक्ति संपन्न देशों की अत्याधुनिक गुप्तचर संस्थाओं को भी नहीं हो सका। भौतिक एवं रासायनिक पदार्थों के प्रकट रूप तो सामान्यत: सभी को दिखाई देते हैं परन्तु जिन मूल अणुओं तथा परमाणुओं से ये पदार्थ निर्मित- सृजित होते हैं उनसे जनसामान्य परचित नहीं होता है| परमाणु शौर्य के प्रतीक गौरवशाली वैज्ञानिक पराक्रमों के मूल अणु एवम् परमाणु हमारे वे रक्षा अनुसंधान संगठन तथा उनके वैज्ञानिक एवम् सैन्य अधिकारी हैं जिनके समन्वित एवं सुनियोजित अभियानों ने परमाणु शक्ति की विधा में भारत को विश्व गौरव प्रदान किया |

इन अद्भुत अभियानों के सफल क्रियान्वन में भारतीय सेना की अभियांत्रिक इकाई तथाभारतीय नाभिकीय केंद्र ट्रोम्बे , रक्षाअनुसंधानएवं विकास संगठन, इसरो, भाभा परमाणु अनुसन्धान केंद्र ,,परमाणु उर्जा विभाग आदि के अनेक सैन्यएवंपरमाणुवैज्ञानिकों ने अथक रूप से विशेष समन्वय के साथ सहभागिता की, इनमेंडॉ.होमी जहाँगीर भाभा,डॉ. विक्रम साराभाई ,डॉ. सेठना,रजा रमन्ना ,पी के अयंगार ,डॉ.ए पी जी अब्दुल कलाम,डॉ.अनिलकाकोडकर,डॉ. संथानम, डॉ.कस्तुरीरंगन,,डॉ.एम्रामकुमार,डॉ.राजगोपाला, डॉ.सतिन्द्रसिक्का,डॉ.दिख्शितुलू,डॉ.डी.सूद,डॉ.एस.के.गुप्ता,डॉगोविन्दराज,डॉ,वासुदेव, कर्नलगोपालकौशिक, कर्नल उमंग कपूर, स्क्वैड्रनलीडर महेंद्र शर्मा के नाम प्रमुख हैं | इन विलक्षण अभियानों की सफलता में तत्कालीनप्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरागांधीएवंश्रीअटलबिहारीवाजपेयीतत्कालीन रक्षामंत्रीश्रीजोर्जफर्नाडीज तथा तत्कालीन सेना प्रमुख जनरलगोपालगुरुनाथबेवुर एवं जनरल वेद प्रकाश मालिक का नेतृत्व अविस्मरणीय है

संयोग से प्राय:मई माह से भगवान् बुद्ध की पावन प्राकट्य तिथि भी सम्बद्ध होती है | अहिंसा में एक स्वयंसिद्ध आत्मशक्ति भी समाहित होती है | अत:18 मई 1974 के दिन "इस्माइलिंग बुद्ध" तथा 11 मई 1998 को "बुद्ध पूर्णिमा" की पुनीत तिथि के अवसर पर " अभियान शक्ति" से सम्बद्ध पराक्रमी वैज्ञानिक अभियानों के भागीरथ माध्यम से भारत को परमाणु शक्ति के शिखर पर संस्थापित करने वाले ज्ञात अज्ञात विज्ञान मनीषियों एवं साहसी सैनानियों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना हमारा परम कर्तव्य है |

लेखक : नवीन सविता, वेब एडिटर

Updated : 7 May 2021 2:15 PM GMT
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