मालवा-ए-कश्मीर "नरसिंहगढ़" सावन भादो में वृन्दावन में ढल जाता
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नरसिंहगढ़/श्याम चोरसिया। कदम पर शिवालय, वीर हनुमान, माता सती के सेकड़ो मंदिरों में प्रतिदिन अल सुबह से ही आरती, मंगल गीत, भजन की भक्ति भरी गूंज देर रात तक होती रहती है। स्तानीय के अलावा भोपाल,शाजापुर,गुना,इन्दोर,विदिशा, राजगढ़ के ग्रामीण अंचलों के सेकड़ो श्रद्धलुओं का तांता लव जाता है। मनोटिया पूरी होने पर विधि विधान से बड़े महादेव, छोटे महादेव, गुप्तेश्वर, नादेश्वर,,कोदुपनी, विजय गढ़ आदि दर्जनो सिद्ध देवालयों पर अभिषेक करवाने आते है, श्रद्धालु। आलम ये कि यदि पंडित जी की समय रहते बुकिंग करने में चूक हो जाए तो पंडित मिलना मुश्किल। फिर साथ मे लेकर आने के सिवा कोई विकल्प नही बचता। देवालयों की तासीर से धर्म और भक्ति को हर साल उचाइयां मिल रही है।
आजादी के 75 साल बीत जाने के बाबजूद रोजगार के साधन विकसित न होने की त्रासदी को प्रतिदिन आने वाले सेकड़ो सैलानी यदि पूरा न करे तो बाजारों में रंगत ही न आए।हालांकि 40 किलोमीटर दूर पीलूखेड़ी में पचासों उद्योग हजारो लोगों को रोजगार दे रहे है। मगर यूनियन बाजी के डर से है उद्योग स्थानीय की बजाय बाहरी लोगों को रोजगार देते है।
सावन लग चुका है। बड़े महादेव,छोटे महादेव सहित अन्य देवालय भक्तो की शक्ति से गुलजार है।धर्म ,श्रद्धा,भक्ति, की अटूट, अटल धारा प्रवाहित है। सबसे खास। यहाँ हर पर्व अनूठे अंदाज में मनाया जाता है। चाहे वह भुजरिया यानी कजली, जन्म अष्टमी,डोल एकादशी, गणेश चतुर्थी, अनंत चौदस,सर्व पित्र अमावस्या, नवरात्रि, दशहरा, आदि। सावन से कार्तिक तक पर्व को ही पर्व है। पर्व मुख्य मार्गो से लेकर गलियों तक को महकाए रखते है।
अभिषेक, अनुष्ठानो की होड़ का सबसे बड़ा फायदा दाल बाफले बनाने वालों को हे। पहले इस पाक कला के हुनरमंद अंगुलियों पर गिने जाने योग्य ही थे। मगर अब दर्जनो हो गए। ठेका भी लेने लगे। बस ऑर्डर दो। भोजन तैयार।
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