गीता को जाने: संसार में रहने के दो तरीके- एक भोगी का, दूसरा योगी का

संसार में आसक्त और कामनाओं के जाल में फंसे सामान्य भोगी व्यक्ति और स्थितप्रज्ञ की दृष्टियों की तुलना करते हुए भगवान कहते हैं
"जो सम्पूर्ण प्राणियों को रात है, उसमें स्थित पुरुष जानता है। जिस समय सब प्राणी जागते हैं, वह तत्त्ववेत्ता मुनि की रात होती है।"
शास्त्रों की विशेषता यह है कि वे कभी-कभी सीधी-साधी बात को विरोधाभास या रहस्यात्मक रूप में कहते हैं। इससे अध्ययन करते समय बुद्धि को झटका लगता है, उत्सुकता बढ़ती है और वह सचेत होकर उस वाक्य के तत्व को समझने का प्रयास करने लगता है। इसी प्रकार का श्लोक यह है, जिसमें दो श्रेणियों के लोगों के लिए रात और दिन विपरीत बताए गए हैं।
सामान्य मनुष्य इन्द्रियों के दास होते हैं, अतः उनके समस्त कर्म सांसारिक भोग और वस्तुओं की प्राप्ति के लिए होते हैं। इसके विपरीत, जो व्यक्ति अपने मन और इन्द्रियों पर नियंत्रण रखता है, विवेकशील बुद्धि से निर्णय लेता है, उसे संयमी कहा गया है। इसे ही पूर्व में भगवान ने मुनि कहा था। ऐसा संयमी मनुष्य जो दूतभाव में रहता है और आत्मतत्व पर मनन करता है, वह मुनि कहलाता है।
दोनों शब्द- संसारिक और मुनि – सूक्ष्म अंतर के साथ स्थितप्रज्ञ के लिए प्रयुक्त हुए हैं। संसारिक मनुष्य और मुनि दोनों के कार्यक्षेत्र अलग होते हैं। भगवान ने सम्पूर्ण प्राणियों की रात को संयमी का दिन और प्राणियों के दिन को तत्त्ववेत्ता मुनि की रात के रूप में वर्णित किया है।
पशुओं की तुलना में मनुष्यों की विशेषता उनकी विवेकशील बुद्धि है। बुद्धि-विवेक का सार यह है कि हम अपने जीवन का उद्देश्य समझें, जीवन में दुख क्यों है और परमात्मा क्या है। सांसारिक लोग इसे भोग-सामग्री के संग्रह में खर्च करते हैं। वे केवल आहार, निद्रा, भय और मैथुन में उलझे रहते हैं। धन, संपत्ति, पद आदि के लिए न्याय-अन्याय की परवाह किए बिना प्रयास करते हैं।
इस प्रकार उनके लिए आत्मा और परमात्मा की बातें अज्ञात हैं। स्वाध्याय और सत्संग में रुचि नहीं होती। उनके लिए यह क्षेत्र रात्रि है।
इसके विपरीत मुनि, जिसने वास्तविकता पर मनन किया है, जो अपने मन पर नियंत्रण रखता है और संसार को साथीभाव से देखता है, वह जानता है कि सांसारिक भोग अस्थाई हैं। वह इनकी प्राप्ति के लिए प्रयास नहीं करता। वह जीवन के परम लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निरंतर सचेत रहता है।
संसारी लोग जिस संसार को सत्य मानकर महत्व देते हैं, उसे ज्ञानी स्वप्नवत मानते हैं। संसारी लोग केवल सांसारिक भोग देखते हैं, तत्त्वज्ञ महापुरुष सांसारिक भोग और परमात्मतत्त्व दोनों को जानते हैं।
