Home > धर्म > धर्म दर्शन > भाग-5/ पितृ-पक्ष विशेष : विश्वामित्र : एक पराक्रमी, यशस्वी ऋषि

भाग-5/ पितृ-पक्ष विशेष : विश्वामित्र : एक पराक्रमी, यशस्वी ऋषि

महिमा तारे 

भाग-5/ पितृ-पक्ष विशेष : विश्वामित्र : एक पराक्रमी, यशस्वी ऋषि
X

विश्वामित्र यानी एक पराक्रमी यशस्वी क्षत्रिय राजा। विश्वामित्र याने बह्म ऋषि। एक राजा से ब्रह्म ऋषि बनने की अद्भुत कथा है विश्वामित्र जी की।

विश्वामित्र ने मेनका और रंभा जैसे मानवीय प्रलोभन का सामना करते हुए प्रकृति के रहस्य को जानने के लिए भी साधना की। विश्वामित्र ने समकालीन समाज में आतंक के खिलाफ राम को आगे कर के समाज को भयमुक्त किया और राष्ट्र में प्रगति के मार्ग खोले।

विश्वामित्र, ऋषि वशिष्ठ और भारद्वाज ऋषि के समकालीन थे। उनका जन्म कान्यकुब्ज (कन्नौज) देश में हुआ था। उनका जन्म का नाम विश्वरथ था। आगे चलकर क्षत्रिय से ब्रह्मतत्व प्राप्त करने पर इन्हें विश्वामित्र कहा जाने लगा।

हम सब जानते हैं कि महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में विश्वामित्र का अपनी सेना के साथ जाना और वशिष्ठ की संकल्प से सिद्धि देखकर शिव की आराधना के लिए प्रतिबद्ध होना। शिव से वरदान में अस्त्रों को पाना और और पुन: महर्षि वशिष्ठ के आश्रम पर हमला करना और पुन: पराजय का हाथ लगना। ब्रह्म दंड के आगे अपने को असहाय पा कर पुन: तपस्या के लिए जाना। और तब तक अध्यात्म की राह पर लगे रहे, जब तक उन्होंने अपने नाम के आगे ब्रह्म ऋषि की पदवी नहीं लगा ली।

परशुराम द्वारा क्षत्रिय विहीन धरती करने पर जब आतताइयों का संपूर्ण पृथ्वी पर आतंक बढ़ गया, तब इसे देखकर विश्वामित्र का दशरथ से राम लक्ष्मण को मांगना और उन्हें अपने पास की सिद्धियां देकर राक्षसों का विनाश करवाया। वह राम के पहले वन गमन के शिक्षक भी हैं और उन्हें भविष्य के पराक्रम के लिए सज्ज करते हैं।

गाधि पुत्र विश्वामित्र के बहनोई ऋचीक वेदज्ञ थे। उन्होंने विश्वामित्र को अनेक दिव्यास्त्र दिए दंड चक्र, काल चक्र, विष्णु चक्र, इंद्र चक्र ब्रह्मास्त्र, वरुणा पाश, आग्नेयास्त्र, नारायणास्त्र इन महा अस्त्रों के कारण विश्वामित्र की शक्ति अपार हो गई थी। यह सब महाअस्त्र उन्होंने श्री राम, लक्ष्मण को उस समय दिए, जब वे उन्हें अपने साथ ताडक़ा वध के लिए नैमिषारण्य ले गए थे। साथ ही 'बला' तथा 'अतिबला' जैसी विस्मयकारी योगिक क्रियाओं की विद्याएं सिखाईं, जिनके उच्चारण मात्र से शरीर में अद्भुत ऊर्जा का संचार हुआ करता था और भूख प्यास नियंत्रित रहती थी इनका प्रयोग राम ने रावण से युद्ध करते समय किया था।

विश्वामित्र, नारद की वाम पूजा विधि के समर्थक थे। विश्वामित्र ने जो ऋचाएं तैयार कीं, वह भी वाम विधि मूलक थी। उनका वेद आर्यों के वेद से बिल्कुल पृथक और निराला था। आर्यजन जिन ऋचाओं को वेद कहते थे, ऋचिक उन्हें नहीं मानते थे। वे अपनी ऋचाएं पेश करते थे। ऋचिक का यह वामाचार- मूलक वेद ही आगे चलकर अथर्ववेद के नाम से प्रसिद्ध हुआ, जिसके अनुयाई विश्वामित्र थे।

राम ने रावण का वध किया यह सच है। दंडकारण्य को अभय दिया, यह भी सच है, पर इसके पीछे की प्रारंभिक साधना, परिश्रम और दूरगामी योजना के शिल्पी विश्वामित्र ही थे, इसीलिए वह नाम के अनुरूप विश्व के मित्र बने, सहयोगी बने। ऐसे ऋषि को नमन।

Updated : 6 Sep 2020 1:58 PM GMT
author-thhumb

Swadesh News

Swadesh Digital contributor help bring you the latest article around you


Next Story
Top