Kailashnath Wanchoo: कौन थे कैलाशनाथ वांचू, क्या सच में कानून की पढ़ाई के बिना बन गए थे वे CJI

कौन थे कैलाशनाथ वांचू
Kailashnath Wanchoo : साल 1967 से 68 में भारत के मुख्य न्यायाधीश रहे कैलाशनाथ वांचू ने कानून की कोई पढ़ाई नहीं की थी। - यह दावा भाजपा सांसद निशिकांत दुबे द्वारा एक सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए किया गया है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश रहे कैलाशनाथ वांचू का जन्म 25 फरवरी, 1903 को हुआ था। वे मूलतः कश्मीरी पंडित थे। उनका परिवार कश्मीर से आकर इलाहबाद में बस गया था। कैलाशनाथ वांचू प्रारंभिक शिक्षा मध्यप्रदेश के नौगांव में हुई। माध्यमिक शिक्षा उन्होंने कानपुर के पंडित पिरथी नाथ हाई स्कूल से प्राप्त की।
कैलाशनाथ वांचू ने पास की इंडियन सिविल सर्विस :
इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद विश्विद्यालय से बीए की डिग्री हासिल की और 1924 में वे उन्होंने इंडियन सिविल सर्विस (ICS) की परीक्षा पास कर ली। इंडियन सिविल सर्विस की कठिन परीक्षा पास करने के बाद वे ट्रेनिंग के लिए लंदन चले गए।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में ट्रेनिंग :
कैलाशनाथ वांचू की ट्रेनिंग ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में हुई। उन्होंने प्रशिक्षण के दौरान वहां कानून और प्रमुख रूप से क्रिमिनल कानून के बारे में गहन अध्ययन किया। कैलाशनाथ वांचू ने 1 दिसंबर 1926 को इंडियन सिविल सर्विस (ICS) ज्वाइन कर ली। बतौर प्रशासनिक अधिकारी उन्होंने संयुक्त प्रांत (उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड) के विभिन्न जिलों में संयुक्त मजिस्ट्रेट और जिला एवं सत्र न्यायाधीश के रूप में कार्य किया।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायधीश :
एक दशक तक कैलाशनाथ वांचू ने संयुक्त मजिस्ट्रेट और जिला एवं सत्र न्यायाधीश के रूप में किया। इसके बाद उन्हें साल 1937 में सेशन एंड डिस्ट्रिक्ट जज बना दिया गया। साल 1947 में वे इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज बने। उन्होंने फरवरी 1947 से जनवरी 1951 तक इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायधीश के रूप में काम किया।
कैलाशनाथ वांचू की उपलब्धि :
इसके बाद कैलाशनाथ वांचू राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बनाए गए। उन्होंने साल 1951 से 1958 तक राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में सेवाएं दीं। साल 1950-51 में उत्तरप्रदेश न्यायिक सुधार समिति के अध्यक्ष भी रहे। फरवरी 1953 में उन्होंने नए आंध्र राज्य के वित्तीय और अन्य निहितार्थों पर भारत सरकार को रिपोर्ट दी। वे इंदौर फायरिंग जांच आयोग के एकमात्र सदस्य थे। 1955 में उन्होंने धौलपुर उत्तराधिकार मामला आयोग की अध्यक्षता की। 1955 में ही वे विधि आयोग के सदस्य बने। अपने जीवन में विभिन्न पदों पर रहते हुए देश सेवा करने के बाद उन्हें 12 अप्रैल 1967 को भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया। 24 फरवरी 1968 को वे सेवानिवृत्त हुये।
