भारत कोई धर्मशाला नहीं: शरणार्थियों पर सुप्रीम कोर्ट के सख्त तेवर…

शरणार्थियों पर सुप्रीम कोर्ट के सख्त तेवर…
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नई दिल्‍ली: सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने शरणार्थियों की एक याचिका पर तीखे तेवर अपनाते हुए काफ़ी सख्त टिप्पणी कि है और शरणार्थियों को भारत में रहने की अनुमति दिए जाने और नागरिकता दिए जाने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है। यह देश 140 करोड़ लोगों के साथ पहले से ही संघर्ष कर रहा है।

यह याचिका एक श्रीलंकाई नागरिक को लेकर लगायी गई थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए कि श्रीलंकाई नागरिक किसी और देश में पनाह लेने को कोशिश करें याचिका को ख़ारिज कर दिया है।

दरअसल 2018 में एक ट्रायल कोर्ट ने इस श्रीलंकाई नागरिक को यूएपीए के तहत दोषी ठहराया था और उसे 10 साल जेल की सजा सुनाई थी। साल 2022 में मद्रास हाईकोर्ट ने उसकी सजा को घटाकर सात साल कर दिया था, साथ ही सजा पूरी होते ही देश छोड़ने और निर्वासन से पहले शरणार्थी शिविर में रहने के आदेश दिए थे।

यह मामला सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस दीपांकर दत्ता की कोर्ट में चल रहा था मगर जस्टिस दत्ता ने श्रीलंका से आए तमिल शरणार्थी को हिरासत में लिए जाने के मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया । इस शरणार्थियों वाली याचिका पर अपना फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है। दुनिया भर से आए लोगों को शरण देने का कोई औचित्य नहीं है। कोर्ट ने पूछा भारत ऐसे लोगों को शरण क्‍यों दे?

सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट से कहा कि श्रीलंकाई तमिल वीजा लेकर भारत आया था। उसके अपने देश में उसकी जान को खतरा है. याचिकाकर्ता बिना किसी निर्वासन प्रक्रिया के लगभग तीन वर्षों से नजरबंद है। उसकी पत्नी और बच्चे भारत में बस गए हैं।

इस पर जस्टिस दत्ता ने पूछा यहां बसने का आपका क्या अधिकार है? वकील ने दोहराया कि याचिकाकर्ता एक शरणार्थी है। इस पर जस्टिस दत्‍ता ने कहा, भारत कोई ऐसा देश नहीं है, जहां दुनियाभर के शरणार्थी आकर बस जाएं।

अपनी दलीलों में याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को संविधान के अनुच्छेद 21 और 19 का हवाला दिया। इसपर सुप्रीम कोर्ट ने वकील को फटकार लगाते हुए साफ किया कि अनुच्छेद 19 केवल भारतीय नागरिकों के लिए है, विदेशी नागरिक इसके दायरे में नहीं आते हैं।

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