नई दिल्ली: अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने जेएनयू चुनाव समिति को भेजा लीगल नोटिस, चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता पर उठाए गंभीर सवाल

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने जेएनयू चुनाव समिति को भेजा लीगल नोटिस, चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता पर उठाए गंभीर सवाल
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नई दिल्ली। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने जेएनयू चुनाव समिति को कानूनी नोटिस भेजा है। यह नोटिस संयुक्त सचिव पद के एबीवीपी समर्थित प्रत्याशी वैभव मीणा द्वारा प्रेषित किया गया है। नोटिस में 18 अप्रैल 2025 को जारी उस अधिसूचना को अवैध, अनावश्यक और चुनावों की निष्पक्षता के विरुद्ध करार दिया गया है, जिसके तहत नामांकन वापसी की प्रक्रिया को अप्रत्याशित रूप से दोबारा खोला गया। एबीवीपी का स्पष्ट कहना है कि यह अधिसूचना एकतरफा तरीके से जारी की गई है, जो चुनावी नियमों और पूर्वनिर्धारित समय-सारणी का घोर उल्लंघन है।

एबीवीपी ने चुनाव समिति से उक्त अधिसूचना को तत्काल निरस्त करने की मांग करते हुए स्पष्ट किया है कि इस प्रकार के कदम स्वतंत्र लोकतंत्र के निर्माण में बाधक है। इसके अलावा अभाविप ने चुनावों को पूर्व घोषित तिथि 25 अप्रैल 2025 को ही संपन्न कराने पूर्व में जारी की गई प्रत्याशियों की अंतिम तिथि के अनुरूप चुनाव कराने की दृढ़ मांग की है।

• ध्यातव्य हो कि 11 अप्रैल 2025 को जेएनयू चुनाव समिति ने छात्रसंघ चुनाव की विस्तृत अधिसूचना जारी करते हुए नामांकन, जांच, नाम वापसी, प्रचार, एवं मतदान की तिथियां निर्धारित की थीं। तय कार्यक्रम के अनुसार, नाम वापसी की अंतिम समय सीमा 16 अप्रैल 2025 को दोपहर 2 बजे तक थी।

• विलंब के कारण 17 अप्रैल 2025 को नामांकन वापसी का एक अवसर दिया गया और उसी दिन शाम 5 बजे के बाद वैध प्रत्याशियों की अंतिम सूची जारी कर दी गई। इस सूची के अनुसार चुनावी प्रक्रिया आगे बढ़नी थी और प्रत्याशियों को प्रचार के लिए केवल 8 दिन का समय उपलब्ध था।

• अचानक, 18 अप्रैल 2025 को चुनाव समिति ने एक और अधिसूचना जारी कर दी, जिसमें "अप्रत्याशित कारणों" का हवाला देते हुए 18 अप्रैल को ही दोपहर 2 बजे से 30 मिनट की अवधि के लिए पुनः नाम वापसी की विंडो खोल दी गई।

यह निर्णय पूरी चुनावी प्रक्रिया के स्थायित्व और पारदर्शिता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है। इससे न केवल प्रत्याशियों के प्रचार की योजना प्रभावित हुई, बल्कि वैध उम्मीदवारों की स्थिति भी अनिश्चित हो गई।

लीगल नोटिस के प्रमुख बिंदु:

1. समिति द्वारा अपनी घोषित अधिसूचना का उल्लंघन:

अप्रैल को घोषित कार्यक्रम का उल्लंघन कर समिति ने अपनी ही तय की गई समयसीमा को तोड़ा है।

2. लिंगदोह समिति की सिफारिशों का उल्लंघन:

लिंगदोह समिति की सिफारिशों के अनुसार (बिंदु 6.4.1), नामांकन से परिणाम तक संपूर्ण चुनावी प्रक्रिया 10 दिनों के भीतर संपन्न होनी चाहिए। वहीं बिंदु 6.4.2 के अनुसार, शैक्षणिक सत्र शुरू होने के 6 से 8 सप्ताह के भीतर चुनाव संपन्न होना चाहिए। अवैध नोटिस के कारण इस समय सीमा का भी उल्लंघन हो रहा है।

3. वैध प्रत्याशियों के अधिकारों का हनन:

नामांकन वापसी की पुनः अनुमति देने से ऐसे प्रत्याशियों को अनुचित लाभ मिलेगा, जिन्होंने दो पदों के लिए नामांकन किया है, जबकि नियमों के अनुसार ऐसा करना प्रतिबंधित है।

4. चुनाव की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर आघात:

अंतिम सूची जारी होने के बाद उसे अप्रत्याशित कारणों से शिथिल करना चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सीधा प्रहार है।

5. वैध प्रत्याशियों के अधिकारों का अतिक्रमण:

निर्धारित प्रक्रिया का पालन करते हुए नामांकन भरने वाले एवं प्रचार की तैयारी कर रहे प्रत्याशी के अधिकारों का गम्भीर उल्लंघन हुआ है।

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की माँगें:

1. 17 अप्रैल 2025 को घोषित वैध प्रत्याशियों की सूची के अनुसार पूर्व निर्धारित तिथि 25 अप्रैल 2025 को चुनाव संपन्न कराया जाए।

2. 18 अप्रैल 2025 को जारी अवैध अधिसूचना को तत्काल निरस्त किया जाए।

3.चुनाव प्रक्रिया को पूर्व घोषित कार्यक्रम एवं लिंगदोह समिति की सिफारिशों के अनुरूप पारदर्शिता एवं निष्पक्षता के साथ पूर्ण किया जाए।

4. यदि जेएनयू चुनाव समिति उपरोक्त माँगों को समय रहते नहीं मानती है, तो एबीवीपी न्यायिक प्रक्रिया का सहारा ले जेएनयू चुनाव समिति पर कानूनी कार्रवाई करेगा।

एबीवीपी जेएनयू के इकाई अध्यक्ष राजेश्वर कांत दुबे ने कहा कि चुनाव समिति द्वारा घोषित प्रारंभिक चुनाव कार्यक्रम और लिंगदोह समिति की सिफारिशों का गंभीर उल्लंघन करते हुए, पारदर्शिता एवं समानता के मूलभूत सिद्धांतों को तोड़ा गया है। चुनाव समिति ने पूर्व में स्वयं ही अपनी चुनाव घोषणा प्रपत्र में सशक्त रूप से लिंगदोह समिति की रिपोर्ट के अनुसार चुनाव कराने की घोषणा की थी परन्तु स्वयं की नैतिक रूप से उसके विरुद्ध काम करना प्रारंभ कर दिया। यह कदम न केवल प्रत्याशियों के अधिकारों का उल्लंघन करता है, बल्कि संपूर्ण चुनाव प्रक्रिया की वैधता एवं विश्वसनीयता को भी संदेह के घेरे में डालता है। हमारा मानना है कि ऐसी अव्यवस्थित और तात्कालिक निर्णय प्रक्रिया से छात्रों का लोकतांत्रिक अधिकार कमजोर हो रहा है और इससे छात्रसंघ चुनावों के प्रति विद्यार्थियों के मन में संदेह उत्पन्न होने लगा है।

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