कैलारस शक्कर कारखाना: केंद्र और राज्य के बड़े नेताओं की सहमति के बावजूद अटका हुआ है कारखाना पुनरुद्धार प्रस्ताव

केंद्र और राज्य के बड़े नेताओं की सहमति के बावजूद अटका हुआ है कारखाना पुनरुद्धार प्रस्ताव
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अफसरशाही की ज‍िद बनाम जनहित की ज़रूरत

भोपाल। मुरैना जिले के कैलारस स्थित सहकारी शक्कर कारखाना वर्षों से बंद पड़ा है, लेकिन इसे पुनर्जीवित करने की संभावनाएं अब भी पूरी तरह जीवित हैं। इसके बावजूद, प्रदेश की अफसरशाही इसे स्थायी रूप से बंद करने पर आमादा है।

स्थिति यह है कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह, केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी जैसे दिग्गज नेताओं की सहमति के बावजूद कारखाने को फिर से शुरू करने का निर्णय ज़मीन पर नहीं उतर पाया है।

केंद्र से 5000 करोड़ की संभावना

5 मई 2025 को राष्ट्रीय सहकारी शक्कर कारखाना संघ, नई दिल्ली ने सहकारिता मंत्री विश्वास सारंग को एक पत्र लिखकर इस कारखाने के पुनरुद्धार हेतु भारत सरकार के नेशनल कोऑपरेटिव डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (NCDC) से 5000 करोड़ रुपए तक की वित्तीय सहायता प्राप्त होने की संभावना जताई। यह प्रस्ताव कारखाने के पूर्व प्रबंध संचालक एमडी पाराशर के सुझाव और बसंत दादा शुगर इंस्टिट्यूट, पुणे की अध्ययन रिपोर्ट पर आधारित है।

इस धनराशि से न केवल कैलारस कारखाना पुनर्जीवित हो सकता है, बल्कि ग्वालियर अंचल की सभी 34 विधानसभा सीटों में नई शुगर मिलें स्थापित करने की राह भी खुल सकती है।

अफसरशाही की अड़चन

लेकिन 5 मई के इस सकारात्मक पत्र के बावजूद सहकारिता विभाग के अफसरों ने 11 मई को एक पत्र जारी कर कारखाने की जमीन सरकार को हस्तांतरित करने, देनदारियां शासन से चुकाने और परिसमापन (बंद करने) की अनुशंसा कर दी। यह उस मानसिकता को दर्शाता है जो पुनरुद्धार की संभावनाओं को नजरअंदाज कर कारखाने को समाप्त करने पर तुली है।

यह वही कारखाना है, जिसे 24 नवम्बर 2024 को मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हुई उच्चस्तरीय बैठक में निजी क्षेत्र के माध्यम से पुनः चालू करने और परिसंपत्तियों की बिक्री कर देनदारियां चुकाने की सहमति दी जा चुकी है। सहकारिता विभाग का ताजा कदम उस निर्णय और केंद्र की सिफारिशों के ठीक उलट है। यही कारण है कि विभागीय मंशा पर अब सवाल उठ रहे हैं।

2011 से बंद है कारखाना

कैलारस का यह सहकारी कारखाना 2011 में बंद कर दिया गया था। इसे दि मुरैना मंडल सहकारी शक्कर कारखाना कैलारस के अंतर्गत चलाया जा रहा था। वर्ष 2019 में इसे विधिवत रूप से बंद करने के लिए एक परिसमापक नियुक्त किया गया, जिसकी जिम्मेदारी थी कि संपत्तियां बेचकर करीब 54 करोड़ रुपए की देनदारियां चुकाई जाएं।

इसी दौरान स्थानीय किसानों और व्यापारियों ने मिलकर मध्यांचल किसान उद्योग कंपनी नाम से एक इकाई गठित की और सरकार को यह प्रस्ताव दिया कि वे इस कंपनी के माध्यम से कारखाना चलाने को तैयार हैं। इस प्रस्ताव को एक्सिस बैंक ने 50 करोड़ की फाइनेंसिंग लिमिट के साथ समर्थन भी दिया।

नीलामी की कोशिश और जनविरोध

सरकारी अधिकारियों ने इस कारखाने की नीलामी की तैयारी शुरू कर दी, जिसका स्थानीय लोगों ने कड़ा विरोध किया। इसके चलते सरकार को 24 नवम्बर 2024 को एक उच्चस्तरीय बैठक बुलानी पड़ी। इस बैठक में यह सहमति बनी कि कारखाने की जमीन की बिक्री कर देनदारियां चुकाई जाएं और निजी साझेदारी के माध्यम से कारखाना पुनः शुरू किया जाए।

लेकिन इस निर्णय के क्रियान्वयन में टालमटोल की जा रही है। अफसरों की यह भूमिका केवल प्रश्नचिह्न ही नहीं खड़े करती, बल्कि इस बात का भी संकेत देती है कि कहीं कोई छिपा एजेंडा तो नहीं चल रहा है? अफसरशाही की जिद या अनदेखी जनहित के बड़े अवसर को खत्म कर सकती है। यह न केवल ग्वालियर-चंबल क्षेत्र के हजारों किसानों और श्रमिकों के लिए नुकसानदायक होगा, बल्कि शासन की नीयत पर भी सवाल खड़े करेगा।

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