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प्रधानमंत्री कल आएंगे शहडोल, सिकल सेल उन्मूलन मिशन का करेंगे शुभारम्भ

ग्राम पकरिया में कोदो भात-कुटकी खीर का लेंगे आनंद

प्रधानमंत्री कल आएंगे शहडोल, सिकल सेल उन्मूलन मिशन का करेंगे शुभारम्भ
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शहडोल। एक जुलाई का दिन शहडोल जिले के लिए ऐतिहासिक होगा। इस दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिले के प्रवास पर रहेंगे और स्थानीय जनजातीय संस्कृति एवं परंपराओं से अवगत होंगे। प्रधानमंत्री खटिया पर बैठकर देशी अंदाज में जनजातीय समुदाय, फुटबॉल क्रांति के खिलाड़ियों, स्व-सहायता समूह की लखपति दीदियों और अन्य लोगों से संवाद करेंगे। ऐसा पहली बार होगा, जब प्रधानमंत्री देशी अंदाज में जनजातीय समुदाय के साथ जमीन पर बैठ कर कोदो, भात- कुटकी खीर का आनंद लेंगे। संपूर्ण कार्यक्रम भारतीय परंपरा एवं संस्कृति के अनुसार होगा। प्रधानमंत्री के भोज में मोटा अनाज (मिलेट) को विशेष प्राथमिकता दी जा रही है। पकरिया गांव की जल्दी टोला में प्रधानमंत्री के भोज की तैयारी जोर-शोर से चल रही है।

जनसम्पर्क अधिकारी प्रलय श्रीवास्तव ने शुक्रवार को बताया कि पकरिया गांव अद्भुत एवं अविस्मरणीय है। गांव में जीवन अपनी सहज निश्छलता के साथ मुस्कान बिखेरता हुआ सात रंग के इंद्रधनुष की तरह गतिमान है। पकरिया सघन वन से आच्छादित एक ऐसा गांव है, जहां साल, सागौन, महुआ, कनेर, आम, पीपल, बेल, कटहल, बांस और अन्य पेड़ों से प्रवाहित हवाएं उन्नत मस्तकों का गौरव-गान करती हैं। उनकी उपत्यकाओं में कल-कल निनाद से आनंदित सोन नदी की वेगवाही रजत-धवल धाराएं मानो वसुंधरा के हरे पृष्ठों पर अंकित पारंपरिक गीतों की मधुर पंक्तियां हैं।

पकरिया गांव में 4700 लोग निवास करते हैं, जिसमें 2200 लोग मतदान करते हैं। गांव में 700 घर जनजातीय समाज के हैं, जिनमें गोंड समाज के 250, बैगा समाज के 255, कोल समाज के 200, पनिका समाज के 10 और अन्य समाज के लोग निवास करते हैं। पकरिया गांव में 3 टोला है, जिसमें जल्दी टोला, समदा टोला एवं सरकारी टोला शामिल है। ढोल, मांदर, गुदुम, टिमकी, डहकी, माटी मांदर, थाली, घंटी, कुंडी, ठिसकी, चुटकुलों की ताल पर बाँसुरी, फेफरिया और शहनाई की स्वर-लहरियों के साथ भील, गोंड, कोल, कोरकू, बैगा, सहरिया, भारिया आदि जनजातीय युवक-युवतियों की तरह बघेलखंड-शिखर थिरक उठते हैं। जनजातियों का नृत्य-संगीत प्रकृति की इन्हीं लीला-मुद्राओं का अनुकरण है।

पकरिया गांव का जनजातीय समुदाय अद्भुत एवं अद्वितीय इसलिए भी है कि यहां के जनजातियों के रीति-रिवाज, खानपान, जीवन शैली सबसे अलहदा है। जनजातीय समुदाय प्राय: प्रकृति के सान्निध्य में रहते हैं। इसलिए निसर्ग की लय, ताल और राग-विराग उनके शरीर में रक्त के साथ संचरित होते हैं। वृक्षों का झूमना और कीट-पतंगों का स्वाभाविक नर्तन जनजातियों को नृत्य के लिए प्रेरित करते हैं। हवा की सरसराहट, मेघों का गर्जन, बिजली की कौंध, वर्षा की साँगीतिक टिप-टिप,पक्षियों की लयबद्ध उड़ान ये सब नृत्य-संगीत के उत्प्रेरक तत्व हैं।

गोंड समुदाय के 'सजनी' गीत-नृत्य की चमत्कृत भाव-मुद्राएं

गांव में गोंड जनजाति समूह में करमा, सैला, भड़ौनी, बिरहा, कहरवा, ददरिया, सुआ आदि नृत्य-शैलियां प्रचलित हैं। गोंड समुदाय के 'सजनी' गीत-नृत्य की भाव-मुद्राएं चमत्कृत करती हैं। इनका दीवाली नृत्य भी अनूठा होता है। मांदर, टिमकी, गुदुम, नगाड़ा, झांझ, मंजीरा, खड़ताल, सींगबाजा, बाँसुरी, अलगोझा, शहनाई, बाना, चिकारा, किंदरी आदि इस समुदाय के प्रिय वाद्य हैं। बैगा, माटी माँदर और नगाड़े के साथ करमा, झरपट और ढोल के साथ दशहरा नृत्य करते हैं। विवाह के अवसर पर ये बिलमा नृत्य करते हैं। बारात के स्वागत में किया जाने वाला परघौनी नृत्य आकर्षक होता है। छेरता नृत्य नाटिका में मुखौटों का अनूठा प्रयोग होता है। इनकी नृत्यभूषा और आभूषण भी विशेष होते हैं।


Updated : 30 Jun 2023 2:38 PM GMT
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स्वदेश डेस्क

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