त्याग और समर्पण सीखना है तो भगिनी निवेदिता से सीखें

त्याग और समर्पण सीखना है तो भगिनी निवेदिता से सीखें
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माधव महाविद्यालय में भगिनी विवेदिता सार्धशती विमर्श कार्यक्रम

ग्वालियर। स्वामी विवेकानंद केन्द्र कन्याकुमारी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद्मश्री निवेदिता भिड़े ने कहा कि आज हम देखते हैं कि समाज का हर व्यक्ति चाहता है कि बच्चों की पढ़ाई अच्छे स्कूल में हो, समाज अच्छा मिले, हम सब समाज में रहते हुए सुख शांति का अनुभव करें। हम सब यह सोचते जरूर हैं, पर समाज के लिए हम क्या कर रहे हैं या क्या करेंगे? यह कभी सोचा है। हमें समाजसेवा, त्याग व समर्पण भाव यदि किसी से सीखना है तो वह हैं स्वामी विवेकानंद जी की प्रधान शिष्या भगिनी निवेदिता। उन्होंने आयरलैण्ड से आकर देश सेवा के लिए अपना पूरा जीवन न्यौछावर कर दिया। हम सबको उनके जीवन से प्रेरणा लेना चाहिए। निवेदिता दीदी मंगलवार को माधव महाविद्यालय में आयोजित भगिनी निवेदिता सार्धशती विमर्श कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि के रूप में प्रबोधन दे रहीं थी। कार्यक्रम की अध्यक्षता महापौर विवेक शेजवलकर ने की।

भगिनी निवेदिता की 150वीं जन्म जयंती के उपलक्ष्य में 'समर्पिता भारत की निवेदिताÓ विषय पर आयोजित कार्यक्रम में निवेदिता दीदी ने भगिनी निवेदिता के जीवन पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए कहा कि भगिनी आयरिस मूल की एक स्वाभिमानी युवती थीं, जो सत्य को जानने के लिए सदैव जिज्ञासु रहीं। वे जब उनके पिता के साथ चर्च जाती थीं तो सोचती थीं कि उनका जन्म किसलिए हुआ है? वे सदा सत्य को जानने के लिए प्रयासरत रहती थीं। एक बार उनकी एक मित्र ने उन्हें भारत के एक युवा सन्यासी को सुनने का आह्वान किया और उन्हें अपने घर पर बुलाया, किंतु वे स्वामी विवेकानंद जी की बातों से सहमत तो थीं, पर बोली कि उनके व्याख्यान में कुछ नया नहीं था। फिर भी वह स्वामी जी के भाषणों को सुनने जाने लगीं और कुछ समय बाद उनके बीच पत्राचार भी शुरू हुआ। तब एक बार सभा में स्वामी विवेकानंद जी ने उनसे कहा कि भारत की महिलाओं के लिए शिक्षा के क्षेत्र में कार्य की बहुत आवश्यकता है। यदि वहां कोई नारी शिक्षा पर कार्य करे तो बेहतर होगा। इस दौरान उन्होंने भारत में सेवा कार्य करने की बात कही तो स्वामी जी ने उनसे कहा कि भारतीयों की सेवा करने के लिए आएंगी तो आपके लिए चार कठिनाइयां होंगी। आप भारतीय नहीं हैं, इसलिए आपको संशय से देखेंगे। दूसरा यहां आएंगी तो ब्रिटिशों को अच्छा नहीं लगेगा। तीसरा यहां कोई सुख-सुविधा नहीं मिलेगी। चौथा भारत देश अत्यंत गरम देश है आपके लिए। उन्होंने कहा कि मैं सबके लिए तैयार हूं और भारत आना चाहती हूं। इन तमात कठिनाइयों के बाद वह भारत आईं और जीवन पर्यन्त साधना में जुट गईं और कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने भगिनी निवेदिता से जुड़े उदाहरणों का जिक्र करते हुए बताया कि जगदीशचन्द्र बसु अपने विज्ञान के अनुसंधानों को समाज के सामने लाना चाहते थे, लेकिन अंग्रेजों की वजह से ऐसा नहीं हो सका। तभी भगिनी निवेदिता ने पुस्तक लिखने के लिए कहा। बाद में पुस्तकों के माध्यम से वह वैज्ञानिक अनुसंधान को समाज के सामने लेकर आए। यह भगिनी निवेदिता ही थीं, जिनके प्रयासों से ऐसा हो सका। निवेदिता दीदी ने कहा कि यदि हम अच्छा समाज चाहते हैं तो हमें कुछ समय नि:स्वार्थ भाव से समाज निर्माण कार्यों में देना होगा। भले ही समाज का स्वाभाव अलग हो, किंतु ईश्वरीय कार्य करने के लिए हमें अपने स्वभाव में परिवर्तन करना ही होगा। जिस प्रकार भगिनी निवेदिता ने अपने व्यक्तित्व में परिवर्तन कर भारत शक्ति की अनूठी मिसाल पेश की। हम जो भी समय समाज कार्य में दें पूरी श्रद्धाभाव से दें। हमारे भीतर यह भाव रहे कि मैं काफी कम समय दे रहा पा रहा हूं। ऐसा लज्जाभाव भी रहे। ऐसा ही भाव रखकर भगिनी निवेदिता ने भारत को अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया। उन्होंने कहा कि वे केवल 13 साल भारत में रहीं, जिनमें से यदि तीन साल का समय उनका विदेशों में प्रवास का निकाल दें तो केवल नौ या दस साल भारत में रहीं। वे सदैव सोचती थीं कि मैं अपने जीवन का ज्यादा से ज्यादा भाग भारत की सेवा को समर्पित करूं। हम भी समाज कार्य के लिए अपना ज्यादा से ज्यादा समय दें और यदि आवश्यक हो तो अपने व्यवहार और आचरण में पूर्ण बदलाव कर आगे बढ़ें, तभी हम समर्पिता भारत की निवेदिता की भांति समाज कार्य कर पाएंगे। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे महापौर विवेक शेजवलकर ने भगिनी निवेदिता के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि विदेश से आकर जिस तरीके से उन्होंने देश व समाजसेवा के क्षेत्र में काम किया है, वह हम सबके लिए प्रेरणादायी है। इस दौरान निवेदिता दीदी ने लोगों की जिज्ञासाओं का समाधान भी किया। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. दिवाकर विद्यालंकार एवं मुरारीलाल माहेश्वरी ने शॉल व श्रीफल भेंटकर मुख्य अतिथि का अभिनंदन किया। श्रीमती महिमा तारे ने निवेदिता वाणी प्रस्तुत की। अतिथियों का परिचय डॉ. अक्षय निगम ने दिया। नितिन मांगलिक ने एवं आभार शशिदत्त गगरानी ने व्यक्त किया।

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