अंचल की वो दस सीटें जिन पर है सबकी नजर

अंचल की वो दस सीटें जिन पर है सबकी नजर
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पांच पर भाजपा, कांग्रेस की सीधी टक्कर तो पांच पर त्रिकोणीय मुकाबला

ग्वालियर। प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए मतदान तीन दिन बाद 17 नवंबर को है और चुनाव प्रचार थमने में 48 घंटे शेष हैं। अंचल की एक-एक सीट को लेकर जनमानस में अटकलें जारी हैं। लेकिन अंचल की दस ऐसी सीटें हैं जिन पर सभी की खास नजर है। इन दस सीटों में से पांच पर भाजपा-कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर है तो पांच पर त्रिकोणीय मुकाबला है।

प्रदेश विधानसभा के लिए इस बार भी पिछले चुनाव की तरह घमासान है। ग्वालियर-चंबल संभाग की 34 सीटों पर पिछले चुनाव में कड़ा संघर्ष हुआ और कांग्रेस 26 सीटें लेकर सत्तारूढ़ हो गई थी। इस बार भी घमासान साफ दिखाई दे रहा है और कोई भी दल या प्रत्याशी अपनी जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नजर नहीं आ रहा है। जनमानस के बीच अटकलों का दौर चल रहा है तो कार्यकर्ता जीत के प्रति आशंकित है। अंचल की दस सीटें जनचर्चा के केन्द्र में हैं।

दिमनी में जोरदार मुकाबला

मुरैना जिले की दिमनी सीट प्रदेश में ही नहीं देशभर में चर्चित हो गई है। इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी ने केन्द्रीय कृषि मंत्री और मुरैना के सांसद नरेन्द्र सिंह तोमर को मैदान में उतारा है, जिससे यह सीट चर्चा का विषय बन गई है। बसपा ने पूर्व विधायक बलवीर सिंह दंडोतिया को आम आदमी पार्टी ने सुरेन्द्र सिंह तोमर को टिकट दिया है। वहीं कांग्रेस ने वर्तमान विधायक रविन्द्र सिंह तोमर भिड़ौसा पर ही विश्वास व्यक्त कर अपनी सीट बरकरार रखने का जिम्मा सौंपा है। कांग्रेस के रविन्द्र सिंह ने वर्ष 2020 में हुए उप चुनाव में यह सीट कांग्रेस के लिए जीती थी। वर्ष 2018 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर गिर्राज सिंह दंडोतिया जीते थे। बाद में वह भाजपा में शामिल हो गए थे और उप चुनाव में भाजपा के टिकट पर मैदान में उतरे थे, जिसमें वह अपनी सीट नहीं बचा पाए थे। वर्ष 2013 में यहां से बसपा जीती तो 2008 में भाजपा उम्मीदवार को जीत मिली थी। इस बार यहां भाजपा हर हाल में जीत चाहती है तो कांग्रेस सीट बचाना चाहती है। वहीं बसपा जातिय समीकरणों के साथ सीट जीतने के लिए प्रयासरत है। भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में भाजपा ने पूरी ताकत यहां लगा दी है। तोमर पर पूरे प्रदेश के चुनाव प्रबंधन का जिम्मा है सो वह अपने क्षेत्र के साथ -साथ प्रदेशभर में चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं। दिमनी में उनकी धर्म पत्नी श्रीमती किरण तोमर, सुपुत्र देवेन्द्र प्रताप तोमर, प्रबल प्रताप तोमर के साथ अन्य परिवारजनों ने मोर्चा संभाल रखा है। गांव-गांव, घर-घर यह परिवार दस्तक दे रहा है और जन समर्थन जुटा रहा है। दिनों दिन यहां का माहौल अब बदल रहा है और मतदान तक स्थिति और बदलने की जनचर्चा है। इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला है और आमजन में चर्चा है कि इसके परिणाम सभी को चौंकाएंगे।

लहार में घिर गए हैं गोविंद सिंह

भिण्ड जिले की बात करें तो यहां तीन सीटों पर आमजन की नजर है। लहार, अटेर और भिण्ड। कांग्रेस का गढ़ बन चुकी लहार सीट से कांग्रेस के डाक्टर गोविंद सिंह आठवीं पारी खेलने मैदान में हैं तो भाजपा ने उन्हें चुनौती देने का जिम्मा अबंरीश शर्मा गुड्डू को सौंपा है। वहीं पूर्व विधायक रसाल सिंह बसपा ने बसपा का दामन थाम मैदान में आकर चुनाव को त्रिकोणीय बना दिया है। कांग्रेस उम्मीदवार को इस बार घेरने के लिए भाजपा चुनाव घोषणा से पूर्व ही सक्रिय हो गई। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया यहां लगातार प्रचार करने पहुंचे हैं। वहीं डॉ. गोविंद सिंह के भाई ने भाजपा में शामिल होकर उन्हें जोरदार झटका दिया है, उनके भाई भाजपा के लिए वोट मांग रहे हैं। वहीं रसाल सिंह भी बसपा के टिकट पर मैदान में आकर मुकाबले को त्रिकोणीय बना रहे है। एक ओर वह क्षत्रिय मतदाताओं में सेंध लगा रहे हैं तो अनुसूचित जाति के वोट भी बसपा के कारण, हासिल कर दौड़ में अपने को बनाए हुए हैं। इन दोनों वर्गों के वोट में बसपा की सेंध ने कांग्रेस उम्मीदवार की नींद उड़ा दी है तो भाजपा की राह में सहयोगी बनते दिख रहे हैं। वहीं भाजपा यहां पिछले चुनाव की अपेक्षा कुछ हद तक एकजुट और आक्रामक है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार यहां कड़ा मुकाबला है और कांग्रेस की राह उतनी आसान नहीं है। अटेर में भाजपा सरकार के मंत्री अरविंद सिंह भदौरिया मैदान में हैं। कांग्रेस के युवा उम्मीदवार हेमंत कटारे उन्हें चुनौती दे रहे हैं। वहीं भाजपा से बगावत कर पूर्व विधायक मुन्ना सिंह भदौरिया ने सपा के टिकट पर मैदान में उतरकर मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। यहां कड़ा मुकाबला हो रहा है और चुनाव परिणाम कुछ भी हो सकते है। भिण्ड सीट पर पुराने प्रतिद्वंदियों के बीच त्रिकोणीय मुकाबला हो रहा है। भाजपा ने पुराने चेहरे पूर्व विधायक नरेन्द्र सिंह कुशवाह को टिकट दिया है। कांग्रेस ने चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी को प्रत्याशी बनाया है। वहीं विधायक संजीव सिंह कुशवाह भी भाजपा को एक बार फिर अलविदा कर वापस बसपा में शामिल होकर मैदान में आ गए हैं। वह पिछला चुनाल बसपा से ही जीते थे और बाद में भाजपा में शामिल हो गए थे। यहां का चुनाव भी रोचक होने जा रहा है।

दतिया में सीधा मुकाबला

संभाग की दतिया सीट भी इस चुनाव में सुर्खियों में है। भाजपा से प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा एक बार फिर चुनाव मैदान में हैं। कांग्रेस ने पूर्व विधायक राजेन्द्र भारती को मिश्रा का किला ढहाने एक और मौका दिया है। कांग्रेस ने पहले भाजपा छोडक़र कांग्रेस में आए अवधेश नायक को प्रत्याशी घोषित किया और उनका भारती समर्थकोंं द्वारा विरोध किए जाने पर टिकट बदल दिया। अब फिलहाल राजेन्द्र भारती और अवधेश नायक एक साथ मिलकर मिश्रा को चुनौती दे रहे हैं। मिश्रा के समर्थन में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान, केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा सभा कर आए हैं तो सोमवार को देश के गृह मंत्री अमित शाह भी हुंकार भर आए हैंं। कांग्रेस के लिए पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, कमलनाथ जन समर्थन मांग आए हैं ।अब यहां कांग्रेस की स्टार प्रचारक प्रिंयका गांधी के आने की चर्चा है। इस सीट पर कड़ा और नजदीकी मुकाबला हो रहा है।

शिवपुरी में केपी को भेदना है गढ़़

शिवपुरी सीट पर भी सबकी नजर है। यहां से भाजपा के टिकट पर श्रीमती यशोधराराजे सिंधिया जीतती रहीं हैं और यह सीट भाजपा की गढ़ बन गई है। इस बार यशोधराराजे ने स्वास्थ कारणों से चुनाव लडऩे से मना कर दिया। भाजपा ने तमाम सोच विचार के बाद अपने पूर्व विधायक देवेन्द्र जैन पत्ते वालों को मैदान में उतार उन्हें सीट बरकरार रखने का जिम्मा सौंपा है। इस सीट से केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के चुनाव लडऩे की चर्चाएं भी खूब चलीं, लेकिन वह सिर्फ चर्चाएं ही साबित हुईं। कांग्रेस ने इस भाजपा के गढ़ को ढहाने का जिम्मा अपने पिछोर विधायक केपी सिंह को सौंपा है । वह पिछोर से चुनाव जीतते आ रहे थे। यहां भी कड़ा और संघर्षपूर्ण मुकाबला देखने को मिल रहा है। यहां चुनाव के परिणाम कुछ भी हो सकते हैं।

चाचौड़ा में त्रिकोणीय संघर्ष

गुना जिले की चाचौड़ा सीट पर त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति बन गई है। कांग्रेस के विधायक लक्ष्मण सिंह को भाजपा की प्रिंयका मीणा और आम आदमी पार्टी की ममता मीणा टक्कर दे रही हैं। ममता मीणा भाजपा से विधायक रहीं हैं और टिकट नहीं मिलने पर आप की झाडू़ थामकर मैदान में आ गई हैं। वहीं राघौगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के सुपुत्र विधायक जयवर्धन सिंह

फिर मैदान में हैं उन पर कांग्रेस का गढ़ बचाए रखने का जिम्मा है। वहीं भाजपा ने कांग्रेस का गढ़ ढहाने का जिम्मा हिरेन्द्र सिंह बंटी को सौंपा है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खास रहे मूलसिंह के सुपुत्र हिरेन्द्र सिंह के भाजपा के टिकट पर मैदान में आने से मुकाबले पर सबकी नजर है। इस सीट पर पूर्व में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह भी चुनाव लड़ आए हैं, उन्हें यहां पराजय झेलना पड़ी थी।

पूर्व-दक्षिण में सीधी टक्कर

ग्वालियर जिले की ग्वालियर पूर्व व दक्षिण सीट पर भाजपा . कांग्रेस के उम्मीदवारों में सीधी टक्कर हो रही है। पूर्व सीट पर कभी भाजपाई रहे विधायक सतीश सिंह सिकरवार कांग्रेस के टिकट पर फिर मैदान में हैं। उनकी धर्म पत्नी शोभा सिकरवार शहर की महापौर हैं। वहीं भाजपा ने यहां से कांग्रेस से भाजपा में आए मुन्नालाल गोयल का टिकट काटकर पूर्व मंत्री माया सिंह को मैदान में उतारकर मुकाबले को कड़ा बना दिया है। बसपा के टिकट पर प्रकाश टेलर के आने से कांग्रेस को कुछ नुकसान यहां उठाना पड़ सकता है। भाजपा को यहां माया सिंह के महल से जुड़े होने का लाभ मिल रहा है तो मुन्नालाल गोयल भी नाराजगी खत्म कर उनके प्रचार में जुट गए हैं। उधर विधायक सतीश सिकरवार को हमेशा जनता के बीच बने रहने, सक्रियता के साथ उनके सुख-दुख में शामिल होने और कोरोना काल में उनके द्वारा जनता की मदद करने का लाभ भी उनको मिल रहा है। यहां भाजपा-कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला हो रहा है। ग्वालियर दक्षिण सीट पर भी सबकी नजर है। यहां से भाजपा ने पूर्व मंत्री नारायण सिंह कुशवाह को एक बार फिर मैदान में उतारा है।वह पिछला चुनाव सिर्फ 121 मतों से हारे थे। भाजपा की बागी पूर्व महापौर समीक्षा गुप्ता के निर्दलीय मैदान में आने से भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। कांग्रेस के युवा चेहरे प्रवीण पाठक यहां से चुनाव जीते थे। वह एक बार फिर मैदान में हैं और अपनी सीट बचाने का जिम्मा उन पर है। क्षेत्र में निरंतर सक्रिय रहने से वह जीत के प्रति आश्वस्त हैं तो नारायण सिंह कुशवाह को पिछले चुनाव में मात्र 121 मतों से हारने की सहानुभूति मिल रही है तो केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का साथ मिलने से वह भी जीत के प्रति आश्वस्त नजर आ रहे हैं। यहां भी सीधा और करीबी मुकाबला राजनीतिक विश्लेषक मानकर चल रहे हैं।

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