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झिलमिल नदी के किनारे सजी महफ़िल, तानसेन की जन्मस्थली में मीठे-मीठे सुरों से बंधा समा

झिलमिल नदी के किनारे सजी महफ़िल, तानसेन की जन्मस्थली में मीठे-मीठे सुरों से बंधा समा
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ग्वालियर। सुर सम्राट तानसेन की जन्मस्थली बेहट में सजी आठवीं संगीत सभा में बहे सुर मखमली अहसास करा गए। संगीत कलाकारों ने ऐसा झूमके गाया व बजाया कि रसिक सुध-बुध खो बैठे। इस साल के तानसेन समारोह के तहत यह सभा बेहट में गुरुवार को भगवान भोले के मंदिर के नीचे और झिलमिल नदी किनारे घनी एवं मनोरम अमराई के बीच सजी। यह वही जगह थी, जहां सुर सम्राट तानसेन का बचपन संगीत साधना और बकरियां चराते हुए बीता था। लोक धारणा है कि तानसेन की तान से ही निर्जन में बना भगवान शिव का मंदिर तिरछा हो गया था। यह भी किंवदंति है कि 10 वर्षीय बेजुबान बालक तन्ना उर्फ तनसुख भगवान भोले का वरदान पाकर संगीत सम्राट तानसेन बन गया।

गुरुवार की प्रातःकालीन सभा की शुरुआत पारंपरिक ढंग से स्थानीय तानसेन कला केन्द्र बेहट के विद्यार्थियों के ध्रुपद गायन के साथ हुई। राग "भैरव" में आलाप मध्यलय आलाप और द्रुत लय आलाप से शुरू करके सूलताल में बंदिश पेश की। जिसके बोल थे- "शिव आदि मद अंत योगी"। विद्यार्थियों ने पूरे कौशल से इसे पेश किया। इस प्रस्तुति में संजय पंत आगले ने पखावज पर बढ़िया संगत की।

गिटार के माधुर्य में डूबे रसिक -

सभा के पहले कलाकार के रूप में उज्जैन से आये अभिषेक व्यास ने सुमधुर गिटार वादन किया। अभिषेक ने तानसेन रचित राग "मियां की तोड़ी" से अपने वादन की शुरुआत की। उनके गिटार वादन से झर रहे सुरों के माधुर्य में रसिक डूब गए। आमतौर पर क्लासिकल म्यूजिक में हवाईन गिटार बजाने का चलन है, लेकिन अभिषेक स्पेनिश गिटार बजाते हैं। उनके गुरू ने 19 तारों से इसे हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के काबिल बनाया है ताकि, गमक मींड क्रंदन जैसे अंग इस पर बजाए जा सकें। आज के वादन में उन्होंने आलाप जोड़ झाला से शुरू कर राग मियाँ की तोड़ी में दो गतें पेश की। विलंबित और द्रुत, दोनों ही गतें तीन ताल में थी।आपके वादन में रागदारी की बारीकियों के साथ माधुर्य भी था। तबले पर निशांत शर्मा ने संगत दी।

"कुंजन में रच्यो रास....."

ध्रुपद के अमूर्त से बोलों का आभास कराते हुए बुलंद और सधे हुए स्वर में सुदीप भदौरिया ने जब राग "भीम पलाशी" और चौताल में निबद्ध बंदिश "कुंजन में रच्यो रास..." के गायन के दौरान सुमधुर स्वर लहरियाँ छोड़ीं तो गान महर्षि तानसेन की जन्मस्थली में झिलमिल नदी का शांत जल भी हिलोरें लेने लगा। उन्होंने सभा में बैठे संगीत पारखियों को गहरे से प्रभावित किया। सुदीप ग्वालियर ध्रुपद केन्द्र में अभिजीत सुखदाने से ध्रुपद गायकी की तालीम ले रहे हैं। आलाप मध्य लय आलाप और द्रुत लय आलाप से गायन में रंग भरने के बाद उन्होंने चौताल में निबद्ध यह बंदिश बड़े ही सहजता से पेश की। ध्रुपद के सुदीप अपने गायन में विविध लयकारियों से खूब रंग भरा। साथ ही गमक अंग का भी खूबसूरती के साथ उपयोग किया। उनके साथ पखावज पर संजय पंत आगले ने मीठी संगत की।

Updated : 1 Jan 2022 8:54 AM GMT
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स्वदेश डेस्क

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