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सीवर और कचरा अलग करके ही हो सकेगा स्वर्ण रेखा का उद्धार

जनभागीदारी से संभव है जीवन रेखा का जीवन

सीवर और कचरा अलग करके ही हो सकेगा स्वर्ण रेखा का उद्धार
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ग्वालियर, न.सं.। शहर की जीवन रेखा मानी जाने वाली स्वर्ण रेखा नदी के जीर्णोद्वार के लिए भले ही अब तक करोड़ों अरबों रुपए पानी में बहा दिए गए हैं फिर भी इसमें सीवर और कचरा बह रहा है। जिससे इसका स्वरूप बिगड़कर गंदे नाले का हो गया है। इसके उद्धार के लिए अब अधिकारियों पर भरोसा छोड़ जनभागीदारी से ही इसका विकास संभव दिखाई दे रहा है। स्वदेश द्वारा स्वर्ण रेखा को लेकर शुरू की गई मुहिम पर जनता में आक्रोश है और इसे विदेशी नदियों की तर्ज पर साफ पानी किस तरह बनाया जाए इसके सुझाव आ रहे हैं।

अगर आप लोगों ने लंदन की टेम्स नदी देखी है, जहां गलियों से होकर पानी बहता है और सैलानी नाव में बैठकर घूमने का आनंद लेते हैं। ठीक इसी प्रकार का सपना ग्वालियर शहर के बीचो-बींच होकर निकलने वाली नदी स्वर्ण रेखा के लिए फिर से देखा जा सकता है। लेकिन इसके लिए मृतप्राय हो चुकी स्वर्ण रेखा नदी को अगर पुनर्जीवित करना है तो सभी को मिलकर भागीरथी प्रयास करने होंगे। तब यह नदी अपने पुराने स्वरूप में वापस लौट सकती है। इसके लिए शासन प्रशासन के साथ जनभागीदारी का होना भी जरूरी है। इसके अलावा अन्य उदाहरणों में जर्मन की एल्बो और कर्नाटक की वेदवती नदी है। विदेशों में भी ऐसी गंदी नदियों का भी कायाकल्प सामूहिक प्रयासों से हो चुका है।

करीब 13 किलोमीटर लंबी स्वर्ण रेखा नदी का कायाकल्प करने के लिए सबसे पहले नगर निगम, स्मार्ट सिटी कारपोरेशन और जल संसाधन विभाग को एकजुट होना होगा। पर्यावरण प्रेमियों की मानें तो अगर नदी की दशा सुधारना है तो सबसे पहले नदी में आने वाले सीवर के पानी को और गिरने वाले कचरे को रोकना होगा। शासन द्वारा बनाई जाने वाली योजनाओं के तहत अगर नदी के दोनों और वैकल्पिक मार्ग बन जाता है और पौधारोपण किया जाए तो स्वर्णरेखा की दशा में काफी हद तक नमामि गंगे की तर्ज पर सुधार हो सकता है। नदी की दशा सुधारने के लिए स्मार्ट सिटी कॉरपोरेशन नगर निगम और जल संसाधन विभाग के स्थान पर नमामि गंगे योजना की मदद लेकर इस नदी का कायाकल्प किया जा सकता है। स्वर्णरेखा नदी की तरह देश की कई अन्य नदियों की भी दशा सुधारने के लिए नमामि गंगे योजना की तर्ज पर काम किया जा रहा है। अगर नमामि गंगे का आशीर्वाद स्वर्ण रेखा को मिल जाए तो इस नदी का पुराना स्वरूप लौट सकता है।

स्वच्छता सर्वेक्षण से पहले सफाई में लगा था पूरा निगम

स्वच्छता सर्वेक्षण की टीम के आने से पहले जिलाधीश व निगमायुक्त संदीप माकिन के नेतृत्व में नगर की सभी मशीनें, क्षेत्राधिकारी व सफाई अमला नदी में उतारा गया था। एक सप्ताह तक चले अभियान में लाखों रुपए खर्च कर नदी की सफाई कराई थी। नदी से नाला बनी इस स्वर्ण रेखा में पिछले 6 माह से सीवर का पानी बह रहा है। स्मार्ट शहर के बीचों बीच सीवर बहने से नदी की तली में दलदल जमा हो गया है।

सभी बांधों से पानी गायब

अब स्थिति यह है कि स्वर्ण रेखा नदी के दोनों ओर और अन्य बांधों की जमीनों पर जमकर अतिक्रमण है। शहर के सीवर वाले नाले इसी स्वर्ण रेखा में गंदगी फैलते हैं, जिसके कारण पूरा पानी प्रदूषित हो गया। नदी में ग्वालियर रियासत के जमाने में बने सात बांधों, अमी-अमा, बरई, रायपुर, मामा का बांध, बीरपुर, गिरवई तथा हनुमान बांध से पानी आता था।

वीरपुर बांध के लिए यह दिए थे निर्देश

-वीरपुर बांध को गहरा करने, बांध के गेट बंद कर चौकीदार बैठाने के निर्देश दिए थे।

-लंबे समय तक बांध में पानी संरक्षित रहे। इसके साथ ही स्वर्णरेखा के दोनों ओर सुंदर व व्यवस्थित रोड बनाने के लिए भी अधिकारियों से कहा था।

- स्वर्णरेखा साफ रहे इसके लिए नदी के दोनों ओर जालियां लगाने व सुंदरता के लिए पौधे लगाने की बात भी पाठक ने कही थी।

फेसबुक पर निकल रहा लोगों का गुस्सा, आ रहे सुझाव

प्रशांत शिंदे-अब ग्वालियर की सूरत आमजन को मिलकर बदलनी होगी। इसकी शुरुआत स्वर्ण रेखा नाले को नदी में बदलकर ही होना चाहिए। नेताओं को जवाबदारी लेनी होगी और समझनी होगी।

-अतुल सुर्वे- जयपुर में द्रिव्यावति नदी का भ्रमण करने का मुझे मौका मिला था। इस नदी का विकास पीपीपी मोड पर टाटा डेपलपमेंट ने किया था। स्वर्ण रेखा नदी पर भी पीपीपी मोड पर काम किया जा सकता है।

-नदी को लेकर एक बैठक हो सकती है। जिसमें कुछ लोग नदी के कायाकल्प को लेकर रणनीति बनाएंगे।

-दीपक सेठ- जिस तरह से मराठा मुक्तिधाम की दशा बदली है, उसी तरह स्वर्ण रेख नदी का जो सपना आप देख रहे हैं वह पूर्ण हो सकता है।

-बाल खांडे- सप्ताह में केवल एक दिन में केवल दो घंटे दें, नेता और प्रशासन को हिलाकर रख देंगे।

-सुहैल कुरैशी- महाराज ही एक मात्र उपाय हैं, जो ये कार्य करवा सकते हैं।

अतिक्रमण हटाने किए थे गंभीर प्रयास

विधायक प्रवीण पाठक ने कहा कि वीरपुर एवं हनुमान बांध के आसपास सभी तरह के अतिक्रमण को हटाने के लिए नगर निगम अधिकारियों को मौके का मुआयना कर कांग्रेस की सरकार के समय आवश्यक निर्देश दिए गए थे। साथ ही सुझाव दिए थे कि बारिश में ज्यादा दिनों तक यहां पानी स्टोर करने की व्यवस्था की जाए, ताकि भूमिगत जल में बढ़ोत्तरी हो सके। स्वर्णरेखा नदी के उद्गम स्थल हनुमान बांध एवं वीरपुर बांध का जीर्णोद्धार ठीक से शुरू होता उससे पहले ही कांग्रेस सरकार चली गई। अब मौजूदा अधिकारी इस क्षेत्र की लगातार उपेक्षा कर रहे हैं, इसे मैं विधानसभा में उठाऊंगा।

-प्रवीण पाठक

विधायक

अनूप मिश्रा बोले, प्रशासन ने बर्बाद की स्वर्ण रेखा

प्रदेश के पूर्व जल संसाधन मंत्री अनूप मिश्रा के कार्यकाल में स्वर्ण रेखा नदी के कायाकल्प को लेकर काफी काम हुए थे। जिसमें इस नदी को साफ पानी बहाने के लिए सीमेंट कंक्रीटीकरण कराया गया था। किंतु आज उनकी सोच को पूरी तरह बर्बाद कर दिया गया है। इस बारे में स्वदेश से चर्चा में पूर्व मंत्री एवं वरिष्ठ भाजपा नेता अनूप मिश्रा ने कहा कि उनके प्रयासों से स्वर्ण रेखा में न सिर्फ साफ पानी बहा था, बल्कि नाव भी चलना शुरू हुई थी। उन्होंने बताया कि शनिचरा मंदिर तारागंज से खांचा बनाकर इस काम की शुरुआत हुई थी।

इसमें लगभग 86 नाले समाहित है। स्वर्ण रेखा के जीर्णोद्वार के लिए तीन अलग-अलग चेम्बर बनाकर तीन लाइनें डाली गईं थी। जिसमें सीवर और कचरे को अलग किया गया था। यह काम मैंने इतनी कम राशि में कराया था, जो आज कोई माई का लाल नहीं करा सकता। किंतु अब इसकी बर्बादी के लिए किसी नेता अथवा जनप्रतिनिधि को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। इसके लिए पूरी तरह प्रशासन जिम्मेदार है। हमारे अभी भी प्रयास हैं कि इस स्वर्ण रेखा को पुराने स्वरूप में लौटाया जाए।

Updated : 29 Jun 2020 1:00 AM GMT
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स्वदेश डेस्क

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