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स्वर्ण रेखा का कायाकल्प करने का दावा बेमानी, कई अधिकारी आए और चले गए

स्वर्णरेखा के जीर्णोद्धार में बेडिय़ां

स्वर्ण रेखा का कायाकल्प करने का दावा बेमानी, कई अधिकारी आए और चले गए
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ग्वालियर, न.सं.। शहर की लाइफ लाइन कही जाने वाली स्वर्ण रेखा नदी के नाला बनने के बाद उसके जीर्णोद्धार के लिए पिछले तीन दशक से प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन भू माफिया निजी स्वार्थ, नेताओं और अधिकारियों की जुगलबंदी के कारण स्वर्णरेखा में आज भी सीवर का बदबूदार पानी बह रहा है। जबकि स्वर्णरेखा का कायाकल्प करने के नाम पर अभी तक करोड़ों रुपए खर्च किए जा चुके हैं। उसके बाद भी स्वर्णरेखा नदी का रूप धारण नहीं कर पाई है। इतना ही नहीं इस दौरान स्वर्ण रेखा में स्वच्छ पानी बहाने के नाम पर कई अधिकारी आए और चले गए।

20 साल बीते फिर भी सपना नहीं हुआ पूरा

चार-पांच वर्ष पूर्व स्वर्ण रेखा नदी में हनुमान बांध से शर्मा फार्म तक 13 किमी के क्षेत्र में साफ पानी बहाने और नाव चलाने की कवायद हो चुकी है।

-नदी के सीमेंट कांक्रीटीकरण व दोनों और बाउंड्रीवाल के लिए वर्ष 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में 46 करोड़ की योजना मंजूर की गई। इसमें तानसेन नगर, कालू बाबा की बगिया, गायत्री नगर सहित अन्य 6 स्थानों पर पुल भी बनना थे।

-योजना में 5 करोड़ की राशि भू-अर्जन पर खर्च की गई। पहले चरण में योजना का काम अधूरा रह गया। उसे पूरा करने के लिए 2004-05 में विश्व बैंक से 1900 करोड़ की वाटर री-चार्जिंग योजना के तहत 38 करोड़ की योजना मंजूर हुई।

-हनुमान बांध से हजीरा तक नाले के किनारे ग्रीनरी और सड़क बनाने की योजना थी, लेकिन तारागंज से ढोली बुआ का पुल, रामद्वारा, जीवाजीगंज, गेंडेवाली सड़क, भैंसमंडी, गुरुद्वारा तक सड़क निर्माण हो सका।

-नदी से नाला बनी स्वर्ण रेखा में साफ पानी और बोट क्लब के रूप में पिकनिक स्पॉट तैयार करने का काम 2008 से शुरू हुआ और 2011 में खत्म हो गया। फिर भी सीवर का पानी नाले में आता रहा।

-इस परियोजना के तहत आखिर 2014 में बारादरी से लक्ष्मीबाई प्रतिमा के पास बने पुल तक नाव(वोट) चलना शुरू हुई, लेकिन लगातार गंदे पानी के कारण उसे अगले ही साल बंद करना पड़ा।

नीदरलैंड इंटीरियर मंत्रालय के प्रतिनिधि आए थे ग्वालियर

नीदरलैंड इंटीरियर मंत्रालय के प्रतिनिधि डेनियल लिप्सचिप, दो भारतीय सदस्यों के साथ वर्ष 2018 में स्वर्ण रेखा नदी के विकास की योजना बनाने के लिए ग्वालियर आए थे। इसमें तय किया गया था कि 40 करोड़ की डीपीआर बनाकर इस नदी का सौंदर्यीकरण किया जाएगा। लेकिन ऐसा कुछ नही हो सका।

40 करोड़ की बनी थी योजना, अधिकारी सहमत नहीं

स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत स्वर्ण रेखा नदी का कायाकल्प करने के लिए 40 करोड़ की योजना बनाई गई थी। इसके लिए स्मार्ट सिटी के अधिकारियों ने पूरी योजना तैयार की थी। लेकिन अधिकारियों के आपसी तालमेल की वजह से इस प्रोजेक्ट पर कोई भी सहमत नहीं हुआ।

इन नेताओं ने किए थे प्रयास

स्व. शीतला सहाय, पूर्व जलसंसाधन मंत्री अनूप मिश्रा, पूर्व महापौर विवेक शेजवलकर, पूर्व महापौर समीक्षा गुप्ता।

इनका कहना है

स्वर्ण रेखा नाले में स्वच्छ पानी के लिए प्रयास किए जा रहे हंै। सीवर लाइन इस नाले के नीचे से न डले ऐसा विचार है। हमारे द्वारा गठित समिति की रिपोर्ट अभी नहीं आई है। रिपोर्ट आने के बाद इसकी समीक्षा की जाएगी।

एम.बी. ओझा

संभागीय आयुक्त एवं नगर निगम प्रशासक

हमारे कार्यकाल में स्वर्णरेखा में स्वच्छ पानी में नाव चलाने का प्रस्ताव आने के बाद बाकायदा नाव चलाई गई थी। किंतु अब इसमें गंदगी क्यों है, इस बारे में कुछ नहीं कहना।

-समीक्षा गुप्ता

पूर्व महापौर

Updated : 27 Jun 2020 6:16 AM GMT
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स्वदेश डेस्क

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