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निष्काम कर्मयोगी जितेंद्र वझे जी का दु:खद निधन

निष्काम कर्मयोगी जितेंद्र वझे जी का दु:खद निधन
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ग्वालियर, न.सं.। भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय प्रकाशन सह प्रमुख श्री जितेंद्र वझे जी पुत्र श्री यशवंत वझे का बुधवार को 46 वर्ष की उम्र में आकस्मिक निधन हो गया। श्री वझे के पार्थिव शरीर को मुखाग्नि उनके पुत्र रक्षित ने दी। उनकी पत्नी श्रीमती आरती वझे हैं। स्वर्गीय वझे के पिता भी वरिष्ठ समाज सेवी हैं। वे पिछले कुछ दिनों से अस्वथ चल रहे थे। बुधवार की सुबह 9 बजे लक्ष्मीगंज स्थित मुक्तिधाम में उनका अंतिम संस्कार किया गया। इससे पूर्व जनकगंज स्थित निज निवास से उनकी शवयात्रा निकली। अंतिम यात्रा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मध्य भारत के प्रांत कार्यवाह श्री यशवंत इंदापुरकर, भारतीय शिक्षण मंडल के राष्ट्रीय महामंत्री डॉ. उमाशंकर पचौरी, भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश मीडिया प्रभारी लोकेंद्र पाराशर, मंडल के कार्यकर्ता, समाज के पदाधिकारी प्रबुद्धजन, परिजनों ने शामिल होकर अपनी ओर से श्रद्धांजलि एवं शोकाकुल परिवार जनों को शोक संवेदनाएं व्यक्त की। श्री वझे के निधन की खबर से आज विचार परिवार में शोक की लहर है।

गृहस्थ के संत का यूं अचानक चले जाना.....

आज परममित्र श्री जितेंद्र वझे जी का मुस्कुराता हुआ चेहरा बार-बार याद आ रहा है। वो आज इस लौकिक जगत को छोड़कर सभी को द्रवित कर चले गये। उनके साथ बिताया हुआ प्रत्येक क्षण आज रह-रह कर याद आ रहा है। जितेंद्र जी का व्यक्तित्व ऐसा था कि मैंने उन्हें कभी किसी से रुष्ट स्वर में बोलते हुये नहीं देखा, क्रोधित होना तो उनके लिए असंभव ही था। वे एक कर्तव्यपरायण, सेवाभावी, मृदुभाषी, सरल व मिलनसार व्यक्तित्व के स्वामी थे। कार्यकर्ताओं के प्रति स्नेहभाव, विभिन्न सामाजिक विषयों का गहन अध्ययन व चिंतन आदि विशेषताओं से परिपूर्ण जितेंद्र जी सभी की दृष्टि में सम्माननीय स्थान रखते थे। उनका और मेरा गहन परिचय बहुत पहले से ही था। शिक्षा के साथ-साथ गायन, योग, संस्कृत ऐसे अनेक विषयों में वह निपुण थे। ग्वालियर में विवेकानंद नीडम की प्रेरणा से विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी के जीवनव्रती कार्यकर्ता के रूप में 12 वर्ष तक उन्होंने महाराष्ट्र के नागपुर, मुंबई, नासिक तथा अरुणाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर के अनंतनाग ऐसे अनेक स्थानों पर केंद्र का काम किया। नागपुर से कुछ वर्ष पूर्व इतनी लंबी साधना के पश्चात् जब वे घर वापस आए तो गृहस्थ जीवन तो स्वीकारा लेकिन समाज के हर वर्ग के प्रति उनकी तड़प और अपने परिवार में दोस्तों में सगे संबंधियों में प्यार बांटना, सभी का काम करना और किसी की भी मदद के लिए हमेशा तत्पर रहना, यह उनका स्वाभाविक गुण था। गृहस्थ जीवन में आकर भी सन्यासी का भाव उन्हें हमेशा रहा और चाहे वह शरद व्याख्यानमाला या गजानन महाराज न्यास या फिर गरीब बच्चों के लिए विद्यालय चलाना हो या रामकृष्ण आश्रम में कोई काम है या विवेकानंद नीडम जहां से प्रेरणा पाकर वह जीवनव्रती बने थे या फिर कोई भी अन्य संस्था, वह हमेशा काम करने को जीवन के अंतिम क्षण तक तत्पर रहे। अनेक युवा कार्यकर्ताओं को उन्होंने प्रेरित किया, उन्हें अपने साथ जोड़े रखा, इसकी प्रेरणा उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से मिली। मेरे लिए उनका निधन एक व्यक्तिगत क्षति है।

पंकज नाफडे, भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय सह संपर्क प्रमुख

Updated : 13 April 2024 12:58 PM GMT
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