सरकार और समाज की कमियां एक-दूसरे तक पहुंचाना ही कर्म है
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संत उत्तम स्वामी का स्वदेश में आत्मीय स्वागत
ग्वालियर, न.सं.
वेद मर्मज्ञ एवं ध्यान योगी श्री श्री 1008 महर्षि उत्तम स्वामीजी वह हस्ती हैं, जिन्होंने बेहद कम उम्र में आध्यात्मिक जीवन के साथ तप करके देश में अपना नाम महान विभूतियों में दर्ज कराया है। वे आज स्वदेश कार्यालय में आशीर्वाद देने पधारे तो आशीर्वाद के साथ आशीर्वचन भी दिए।
पूज्य स्वामी जी ने कहा कि पत्रकार का काम सरकार और समाज की कमियों को उजागर कर एक- दूसरे तक पहुंचाना है।यह ईश्वरी कृत्य है,जो कि महर्षि नारद मुनि ने आप लोगों को दिया है। उन्होंने कहा कि धर्म पर चलने वालों की सहायता नारदजी करते थे, आप भी लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है जो धर्म की राह पर चलकर सद्कार्य में लगे हैं। परमात्मा ने आपको आदान- प्रदान का काम दिया है, यह एक बड़ा कर्म है।उन्होंने कहा कि विचारों से सन्यासी बना जा सकता है न की वस्त्रों से। कर्म में श्रेष्ठता, सहजता,सरलता हो यही उत्तम है।उन्होंने कहा कि ईश्वर ने आपको जो दायित्व दिया है वह ईश्वर की देन है।देश का संरक्षण संवर्धन का कार्य करना ही कर्तव्य है।पेन-कागज से देश की सेवा नारायण करातें हैं,जिसमें आप सफल रहें,यही मेरा आशीर्वाद है। उन्होंने कहा कि शब्द रूपी बीज बड़ा काम करता है।जीवन में नित्य,सत्य, परोपकार, सेवा की भावना रखना चाहिए।
यहां बता दें कि स्वामी जी का जन्म अमरावती के पास लोहान के एक छोटे से गांव में वर्ष 1976 में जन्माष्टमी की मध्यरात्रि हुआ था। उन्होंने बाल्यजीवन में कई तरह के तप कर प्रतिष्ठा पाई। उन्होंने वैष्णव आदिनाथ योगपीठ पंढरपुर में शिक्षा प्राप्त की। उनके द्वारा अमराजारी की पहाड़ी पर तीन वर्ष तक निर्वस्त्र रहकर साधना की गई।
वह वेद और भागवत के बड़े ज्ञाता हैं। स्वामी जी का परिचय अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्रीधर पराडक़र ने दिया।इस अवसर पर स्वदेश के संचालक दीपक सचेती, प्रांशु शेजवलकर, समूह संपादक अतुल तारे, संपादक सुबोध अग्निहोत्री, समूह प्रबंधक कल्याण सिंह कौरव सहित स्वदेश परिवार के सदस्य उपस्थित थे।
Naveen Savita
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