लहार में घिर गए नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह !

लहार में घिर गए नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह !
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रसाल सिंह का हाथी बिगाड़ रहा समीकरण

ग्वालियर। मध्य प्रदेश की हाट सीटों में शामिल भिंड जिले की लहार सीट पर इस बार भी कडा़ और रोमांचक मुकाबला हो रहा है। त्रिकोणीय मुकाबले में कांग्रेस प्रत्याशी और नेता प्रतिपक्ष डा.गोविंद सिंह फंस गए हैं। भाजपा ने उन्हें घेरने की जो रणनीति बनाई उसमें वह सफल होती नजर आ रही है। लहार विधानसभा सीट से डा. गोविंद सिंह लगातार सात बार से चुनाव जीतते आ रहे हैं और यह सीट कांग्रेस का गढ़ बन गई है। पिछले चुनावों पर नजर डालें तो 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर युवा चेहरे रमाशंकर सिंह ने विजयश्री हासिल की और उस सयय सबसे कम उम्र के विधायक बने। तत्पश्चात 1980 में कांग्रेस के रामशंकर चौधरी भाजपा के मथुरा प्रसाद महंत और जनता पार्टी सेक्यूलर के टिखट पर मैदान में उतरे गोविंद सिंह को पराजित किया था। वहीं 1985 में यहां से भाजपा के मथुरा प्रसाद महंत निर्वाचित हुए थे। जबकि 1990 में जनता दल के टिकट पर डा. गोविंद सिंह विजयी हुए। इस चुनाव में गोविंद सिंह ने जीत का जो परचम फहराया, वह निरंतर जारी है। वह यहां से सात बार चुनाव जीते हैं और आठवीं पारी खेलने के लिए जी जान से जुटे हुए हैं। श्री सिंह ने 1993 में भाजपा के मथुरा प्रसाद महंत, 1998में भाजपा के मथुरा प्रसाद महंत , 2003 में बसपा के रमाशंकर सिंह, 2008 में बसपा के रोमेश महंत, 2013 में भाजपा के रसाल सिंह और 2018 में भाजपा के रसाल सिंह को हराया था। वर्ष 2023 के चुनाव में पिछले चुनाव के उम्मीदवार फिर आमने- सामने हैं। कांग्रेस के टिकट पर गोविंद सिंह सातवीं बार मैदान में हैं तो इस बार बसपा के टिकट पर रसाल सिंह उन्हें फिर चुनौती देने उतरे हैं। रसाल सिंह दो चुनाव लगातार गोविंद सिंह से हार चुके हैं।

भाजपा ने अबंरीश शर्मा को कांग्रेस का यह गढ़ भेदने का जिम्मा सौंपा है। शर्मा पिछला चुनाव यहां बसपा से लड़े थे और 31.367 मत हासिल कर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में सफल रहे थे। लहार से आठवीं बार जीत हासिल करने उतरे डा.गोविंद सिंह की राजनीति की अपनी स्टाइल है। साफगोई से बात वह करते हैं और किसी से भी टकराने से पीछे नहीं रहते। क्षेत्र के जाने माने संत रावतपुरा से भी उनका टकराव होता रहा है तो केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया से भी उनकी कभी पटरी नहीं बैठी। कांग्रेस और खुद डा. गोविंद सिंह इस बार के चुनाव में भी जीत के प्रति आश्वस्त हैं। कांग्रेस ने उन्हें अंचल का स्टार प्रचारक मान अपनी जन आक्रोश यात्रा का ग्वालियर - चंबल संभाग का प्रभारी बना नेतृत्व सौंपा। अंचल की 34 सीटों पर यात्रा ने भ्रमण कर करीब 1600 किमी यात्रा की। कांग्रेस को उम्मीद थी कि चुनाव अभियान में अंचल में उनका अधिकतम उपयोग करेगी, लेकिन अब परिस्थितियां बदल गईं हैं। भाजपा के टिकट पर मैदान में उतरे अबंरीश शर्मा से उन्हें कडी़ चुनौती मिल रही है। दर असल पूर्व विधायक रसाल सिंह के भाजपा छोड़ बसपा के टिकट पर मैदान में उतरने से यहां के सारे समीकरण उलट पुलट हो गए हैं। अब डा.गोविंद सिंह यहां त्रिकोणीय मुकाबले में फंस गए हैं और बाहर नहीं निकल पा रहे, इससे कांग्रेस नेतृत्व की चिंता बढ़ गई है।

अबंरीश के लिए भाजपा ने लगाई पूरी ताकत

भाजपा की अपनी रणनीति

भाजपा ने गोविंद सिंह को लहार में घेरने की अपनी रणनीति पहले तैयार कर ली थी। चुनाव एलान के पूर्व ही लहार में लाडली बहनों का विशाल सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में भारी भीड़ उमडी़ और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया एलान ए जंग का यहां बिगुल फूंक आए थे। नवरात्रि पर्व के पहले दिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान फिर यहां चुनाव अभियान का आगाज करने पहुंचे थे। भाजपा के प्रदेशाध्रक्ष वीडी शर्मा और केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भी कांग्रेस और गोविद सिंह के प्रति जनता को आगाह कर विकास के लिए सयर्थन मांग आए हैं।उप्र के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और सांसद एसपी बघेल भी यहां सभाएं कर चुके हैं। वहीं भाजपा नेतृत्व यहां भाथपाजनों को एकजुट करने में काफी हद तक सफल भी नजर आ रहा है। फलस्वरूप भाजपा यहां पिछले चुनावों की अपेक्षा इस बार दमदारी से चुनाव लड़ती नजर आ रही है और काफी अच्छी स्थिति में पहुंचती दिख रही है।

बसपा के अपने समीकरण

भाजपा से विद्रोह करने वाले पूर्व विधायक रसाल सिंह ने इस बार बसपा के टिकट पर मैदान में उतरकर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने के इरादे जाहिर कर मैदान में मोर्चा संभाल रखा है। कांग्रेस को उम्मीद थी कि बसपा उम्मीदवार भाजपा के लिए मुसीबत बनेगा, लेकिन यहां समीकरण उलटे होते प्रतीत हो रहे हैं। जातिगत समीकरण भी उलट फेर कर दें तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।बसपा इस विधानसभा क्षेत्र में वर्ष 1990 से ही अच्छा प्रभाव छोड़ती आई है। बहपा को 1990 में 18605 मत, 1993 में 22967 मत , 1998 में 21272 मत , 2003 में 50548 मत , 2008 में 52867 मत ,2013 में 34585 मत और 2018 में 31367 मत उसके उम्मीदवार को मिले थे। अब इस बार रसाल सिंह को उमामीद है कि उनके समर्थन में बसपा प्रमुख मायावती की एक -दो रोज में होने वाली सभा के बाद उनकी स्थिति और अच्छी होगी और वह मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में सफल होंगे।

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