जमीन घोटाला : फालका बाजार मंदिर मामले में नियुक्त अधिवक्ता ने हटाए गए शासकीय अभिभाषक से मांगी मूल फाइल

ग्वालियर,न.सं.। फालका बाजार में राम जानकी मंदिर जरी पटका क्रमांक 2 की माफी औकाफ विभाग की लगभग 10 हजार वर्ग फीट वेशकीमती जमीन को खुर्द-बुर्द करने के मामले में शासकीय अभिभाषक बुरी तरह उलझ गए हैं। कार्तिक कॉलोनाइजर को लाभ पहुंचाने की दृष्टि से न्यायालय में राजीनामा पेश करने का मामला तूल पकड़ गया है। जिलाधीश द्वारा शासकीय अभिभाषक विजय शर्मा को इस केस की पैरवी से हटाए जाने के बाद नियुक्त किए गए अतिरिक्त शासकीय अधिवक्ता मिनी शर्मा एवं सचिन शर्मा ने शासकीय अभिभाषक विजय शर्मा को पत्र लिखकर मूल फाइल मांगी है, ताकि इस मामले में शासन का उचित पक्ष रखा जा सके। प्रकरण में सुनवाई की अगली तिथि 29 अगस्त 2023 है।
उल्लेखनीय है कि यह बहुचर्चित मामला वैसे तो वर्ष 2018 से न्यायालय में प्रचलित है लेकिन जिस तरह से शासकीय अभिभाषक विजय शर्मा ने मामले की तारीखों पर अनुपस्थित होकर शासन का पक्ष नहीं रखा बल्कि बिल्डर के साथ समझौते का राजनेता पेश करने में रुचि दिखाई उससे यह मामला उस समय तूल पकड़ गया जब तत्कालीन तहसीलदार श्यामू श्रीवास्तव ने पूरे मामले की गहराई में जाकर जिलाधीश को पत्र लिखकर वस्तु स्थिति से अवगत कराया। इसमें अतिरिक्त शासकीय अभिभाषक मिनी शर्मा द्वारा लिखे गए पत्रों का भी जिक्र है जिसमें स्पष्ट कहा गया है कि विजय शर्मा ने जानबूझकर ऐसा किया। और तो और उन्हें मामले की पैरवी करने से भी रोका गया। यह पूरा मामला जिलाधीश अक्षय कुमार सिंह के संज्ञान में आने पर उन्होंने सख्त रवैया अपनाते हुए डिप्टी कलेक्टर नरेश गुप्ता द्वारा 22 अगस्त को एक पत्र जारी करते हुए मामले की पैरवी से विजय शर्मा और आरपी पालीवाल को हटाते हुए अतिरिक्त शासकीय अभिभाषक सचिन अग्रवाल एवं मिनी शर्मा की नियुक्ति की है। श्रीमती शर्मा ने शुक्रवार को शासकीय अभिभाषक विजय शर्मा को पत्र लिखकर राम जानकी मंदिर मामले की मूल फाइल मांगी है जिसमें कहा गया है कि यह फाइल पहले भी मांगे जाने पर नहीं दी गई थी।
फर्जी वसीयतनामे से कराया था नामांकन
यह मामला वर्ष 2018 में तृतीय अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के न्यायालय में प्रचलित था जिसमें यह बात सामने आई थी कि मंदिर के तत्कालीन महंत मदनलाल शर्मा ने पूर्व महंत रामचरण दास से एक फर्जी वसीयतनामा अपने नाम से तैयार कर कर मंदिर की जगह अपना नाम नगर निगम के रिकॉर्ड में दर्ज करा लिया। पं शर्मा के निधन के बाद उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सीता देवी ने भी अपने नाम नामांतरण करा लिया। जबकि यह वेशकीमती जगह सर्वे क्रमांक 733 पर रकवा 5.40 हेक्टेयर का भाग होरक रकवा 7.95 वर्ग मीटर है। मौके पर अनेक देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित है। नगर निगम के संपत्तिकर रिकॉर्ड में वर्ष 1930 से लेकर 1975 तक राम जानकी मंदिर एवं महंत रामचरण के नाम इंद्राज रही है तथा मंदिर के रूप में टैक्स माफ रहा है। बाद में सीता देवी ने 21 अक्टूबर 2015 को विक्रय रजिस्टर पत्र के जरिए यह जमीन कार्तिकेय कॉलोनाइजर प्राइवेट लिमिटेड द्वारा निदेशक राजीव गुप्ता निवासी शांति एनक्लैप काल्पी ब्रिज को एक करोड़ 85 लाख 58 हजार रुपए में अनाधिकृत रूप से विक्रय कर दी। जिस पर राज्य शासन द्वारा जिलाधीश ग्वालियर प्रभारी अधिकारी माफी शाखा राजस्व द्वारा न्यायालय में कार्तिक कॉलोनाइजर, सीता देवी, प्रदीप शर्मा पुत्र मदनलाल शर्मा और प्रीति शर्मा पुत्री मदनलाल शर्मा के खिलाफ वाद प्रस्तुत किया गया जो विचाराधीन है। कायदे से शासकीय अभिभाषकों को इस मामले में शासन का पक्ष मजबूती के साथ रखना चाहिए किंतु मजेदार बात यह है कि 26 जुलाई 2023 को तत्कालीन तहसीलदार श्यामू श्रीवास्तव, माफी अधिकारी सत्यप्रकाश शुक्ला एवं राजस्व निरीक्षक प्रदीप मैहकाली न्यायालय में उपस्थित रहे लेकिन मौके पर शासकीय अभिभाषक विजय शर्मा ने प्रकरण में कोई रुचि नहीं ली। बल्कि अतिरिक्त शासकीय अभिभाषक मिनी शर्मा न्यायालय में उपस्थित होकर शासन का पक्ष रखती रहीं। जिस पर उन्हें हटवाने की भरसक कोशिश की गई। जबकि उन्हें पंचम अपर सत्र न्यायालय में 2 मई 2023 से पैरवी के लिए नियुक्त किया गया था। सूत्रों ने बताया कि इस वेशकीमती जमीन पर मुरार क्षेत्र के एक भू माफिया की नजर है। उसी के द्वारा दबाव डालकर इस तरह की कार्रवाई कराई गई।
मैंने कभी पैरवी नहीं की: पालीवाल
इस मामले में अतिरिक्त शासकीय अभिभाषक आरपी पालीवाल ने स्थिति स्पष्ट करते हुए बताया कि प्रकरण क्रमांक 251/18 में जिलाधीश ने 22 जून 2023 को पैरवी के लिए उनकी नियुक्ति की थी। 27 जून को उन्होंने न्यायालय में वकालतनामा प्रस्तुत किया। लेकिन अतिरिक्त शासकीय अभिभाषक मिनी शर्मा ने उन्हें पैरवी नहीं करने दी जिस पर 17 जुलाई की तारीख पर विवाद हुआ। तब उन्होंने विजय शर्मा को पत्र लिखकर अन्य अधिवक्ता नियुक्त करने के लिए लिखा। साथ ही 26 जुलाई को उपस्थित न रहने से अवगत कराया। इस तरह उक्त तारीखों पर वह न्यायालय में कभी पैरवी के लिए नहीं पहुंचे, इसलिए उनका नाम इस केस अथवा समझौता से जोड़ा जाना उचित नहीं है।
