कायाकल्प की टीम ने किया जिला अस्पताल का निरीक्षण

कायाकल्प की टीम ने किया जिला अस्पताल का निरीक्षण
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व्यवस्थाएं देख मरीज भी हुए हैरान

ग्वालियर, न.सं.। कायाकल्प अभियान के तहत बुधवार को दल ने मुरार जिला अस्पताल का निरीक्षण किया। दल के आने की पहले से जानकारी होने के चलते रात-दिन मेहनत कर व्यवस्थाएं चाक-चौबंद की गई। अस्पताल को होटल की तरह सजा दिया गया। व्यवस्था इतनी बेहतर की गई कि एक बार तो यहां आने वाले लोग चौंक गए कि यह जिला अस्पताल ही है।

निरीक्षण करने आए श्योपुर जिला से सर्जन डॉ.जितेन्द्र यादव ने जिला अस्पताल व जच्चा खाने में औषधि वितरण कक्ष, आपरेशन थियेटर (ओटी), लेबोरेट्री सहित अन्य विभागों का निरीक्षण किया। साथ ही अस्पताल में भर्ती मरीजों व उनके परिजनों से भी व्यवस्था संबंधी जानकारी ली गई। खासतौर पर अस्पताल से निकलने वाले बायो मेडिकल वेस्ट के निपटारे आदि की प्रक्रिया के बारे में जानकारी ली। निरीक्षण पर शासन द्वारा निर्धारित बिन्दुओं का पालन कितना किया जा रहा है इस पर अस्पताल को नम्बर एवं रैंकिंग दी जाएगी। व्यवस्थाओं में क्या सुधार किया जाना है इस संबंध में रिपोर्ट संचालनालय द्वारा जिला प्रशासन को भेजी जाएगी। वहीं अस्ताल की व्यवस्थाएं देखा भर्ती मरीज और अटेंडर बोले की अधिकारियों के आने पर होने वाली व्यवस्था हमेशा रहे तो बेहतर है।

कचर कोडिंग के हिसाब से नहीं मिला कचरा

दल ने निरीक्षण के दौरान बायोमेडिकल वेस्ट को निपटाने की प्रक्रिया को भी विशेष रूप से देखा। इस दौरान दल को कलर कोडि़ंग के हिसाब से डस्टबिन तो रखी मिली, लेकिन उन्हें कलर कोडिंग के हिसाब से कचरा डला हुआ नहीं मिला। जिसको लेकर दल ने नियमों का पालन करने की बात कही।

मरीजों के बैठने की करेें व्यवस्था

ओपीडी के निरीक्षण के दौरान दल ने देखा कि मेडिसिन विभाग के बाहर मरीजों की लम्बी लाइन लगी हुई है। इस पर दल ने अस्पताल प्रबंधन को सुझाव दिया कि ओपीडी में मरीज घंटो लाइन में खड़े रहते हैं। इसलिए उनके यहां बैठने की व्यवस्था की जाए।

अस्पताल देख दंग रहे गए लोग

अस्पताल की बाहरी साज-सज्जा और रंगरोगन देखकर सभी लोग दंग रह गए। मुख्य द्वार से लेकर गलियारों तक हरे-भरे पौधों के गमले सभी को आकर्षित कर रहे थे। जगह-जगह विभिन्ना सावधानी और जानकारी आदि के पोस्टर लगे थे। वार्डों में पलंगों पर चादर और स्टाफ भी निर्धारित यूनिफॉर्म में था। अस्पताल का बदला नजारा देख हर कोई दंग था। कई तो यह कहते देखे गए कि हमेशा ऐसा ही नजारा और जिम्मेदारी वाला आलम रहे तो मरीज आधा तो यूं ही अच्छा हो जाए। किंतु अफसोस की ऐसे नजारे किसी अफसर आदि के निरीक्षण के दौरान ही देखने मिलते हैं।

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