सिरोल के बहुचर्चित जमीन घोटाले को दबाने की कोशिश, जिला पंजीयक कर रहे हैं जांच

ग्वालियर, विशेष प्रतिनिधि। झांसी रोड अनुभाग के सिरोल क्षेत्र की एक बहुमूल्य जमीन पर तत्कालीन जिलाधीश द्वारा क्रय-विक्रय पर रोक के बावजूद 20 साल पुराने फर्जी खसरे से रजिस्टी करने का विवाद बढ़ता ही जा रहा है। इस जमीन की कीमत आयकर विभाग ने 5.51 करोड़ रुपए
आंकते हुए नोटिस जारी किया। जबकि स्टांप शुल्क बचाने इस जमीन को मात्र 29 लाख में बेचने का कारनामा किया गया। बाद में स्टांप शुल्क की अंतर राशि जमा करा दी गई। इस मामले का खुलासा 27 जुलाई 2020 के अंक में स्देवश द्वारा होने के बाद भोपाल तक पहुंचे मामले पर पंजीयन विभाग के डीआईजी द्वारा जिला पंजीयक से जांच कराई जा रही है। साथ ही जिलाधीश कौशलेंद्र विक्रम सिंह की जानकारी में भी यह समूचा प्रकरण हैं। इन सबके बावजूद पंजीयक विभाग से जुड़े कुछ वरिष्ठ अधिकारी इस कांड को दबाने में लगे हुए हैं और पुराने खसरा की नकल फाइल में लगाने की कोशिश करा रहे हैं।
सूत्रों ने बताया कि ग्राम सिरोल के सर्वे क्रमांक 358 रकवा 9.50 बीघा जमीन 70 वर्षीय गंगादेवी पत्नी स्वर्गीय उत्तम सिंह की पुश्तेनी है। वर्ष 2011 में तत्कालीन जिलाधीश आकाश त्रिपाठी ने इसे विवादास्पद मानते हुए उसे पेंसिलि अभिलेख दर्ज कराते हुए क्रय-विक्रय पर रोक लगा दी थी। किंतु इसी बीच भू-माफिया से राजस्व अधिकारियों ने मिलकर वृद्धा गंगाबाई की इस जमीन का सौदा उत्तम सिंह के नाम से एमके इंटरप्राइजेज की साझेदार उर्मिला सिंह बैस पत्नी एसबी सिंह एवं कुसुम गोयल पत्नी जीसी गोयल के साथ 31 मार्च 2013 को करा दिया। यह विक्रय पत्र उत्तम सिंह द्वारा कारित दर्शाया गया। यहां ताज्जुब की बात यह है कि इस कथित विक्रय पत्र के संपादित होने के बाद उत्तम सिंह द्वारा ही 25 जनवरी 2014, 23 दिसंबर 2014 को जिलाधीश एवं अपर जिलाधीश से उसकी जमीन को पेंसिलि आदेश हटाने के लिए पत्र लिखे गए। इतना ही नहीं 31 मार्च 2014 को विवादास्पद जमीन के सीमांकन के लिए भी पत्र लिखा गया। यदि उत्तम सिंह ने इसके पूर्व ही रजिस्ट्री कर चुका तब वह उसी जमीन के लिए पेंसिलि हटाने के आवेदन कैसे देते रहे। कायदे से विक्रय पत्र और बाद में जांच के लिए लिखे गए पत्रों के अंगूठे से मेल करा दिया जाए तो दूध का दूध और पानी का पानी हो सकता है। इसके बाद वृद्धा गंगादेवी और उनके पुत्र महेंद्र एवं कृष्णा उस समय हैरान रह गए जब छह फरवरी 2020 को उनके पास आयकर विभाग के अधिकारी राममनोहर श्रीवास्तव की ओर से एक नोटिस पहुंचा, जिसमें सिरोल के सर्वे क्रमांक 358 की 9.50 बीघा भूमि को 29 लाख में बेचने पर आयकर जमा नहीं कराए जाने की बात थी। नोटिस में स्पष्ट लिखा गया कि इस भूमि का बाजारू मूल्य 5 करोड़ 51 लाख 50 हजार रुपए है। जबकि आपके द्वारा मात्र 2.10 लाख रुपए स्टाम्प शुल्क जमा कराया गया है। अत: 37.88 लाख रुपए अंतर राशि जमा कराएं।
इस नोटिस के बाद गंगादेवी ने पंजीयन कार्यालय से सूचना के अधिकार के जरिए सारे दस्तावेज निकलवाए। जिसमें खसरे का एक दस्तावेज बेहद चौंकाने वाला था, जिसमें खसरा क्रमांक के क्रम 94, 95, 85 व 87 थे। जबकि हकीकत में इस जमीन के खसरे के क्रम 68, 85, 86, 88 हैं। इससे उन्हें शक हुआ कि उनके पति के नाम से 20 साल पूर्व पुराने फर्जी खसरे से उक्त रजिस्ट्री संपादित कराई गई है। जिसमें पंजीयन विभाग के अधिकारियों की भी सांठगांठ रही, क्योंकि क्रेता साझेदार में एक महिला पूर्व पंजीयन अधिकारी की पत्नी हैं।यह रजिस्ट्री उप पंजीयक अनुराग चतुर्वेदी द्वारा वर्ष 2013 में संपादित कराई गई, जिससे उनके ऊपर भी सवालिया निशान है। चूंकि उत्तम सिंह की मृत्यु 86 साल की उम्र में 5 फरवरी 2019 में हो चुकी, इसलिए गंगा देवी एवं उनके पुत्रों ने इस संबंध में एक विस्तृत शिकायत पुलिस महानिदेशक, प्रमुख सचिव, लोकायुक्त भोपाल, महानिदेशक पंजीयक, संभागीय आयुक्त, जिलाधीश, पुलिस अधीक्षक आदि से करते हुए निष्पक्ष जांच की मांग की है।
जिला पंजीयक कर रहे जांच
इस पूरे मामले की जांच प्रकरण क्रमांक 15/ 2020 में जिला पंजीयक दिनेश गौतम द्वारा की जा रही है। उन्होंने इस मामले से संबंधित सभी दस्तावेज अपने यहां मंगा लिए हैं। इन सबके बावजूद एक वरिष्ठ पंजीयक भी इस मामले में खासी रुचि दिखा रहे हैं। पता लगा है कि उनके द्वारा बिना बात के कुछ खसरे एवं कागजात का एक प्रतिवेदन बनाकर अधिकारियों को सौंपा जा रहा है। उनकी इस मामले में रुचि कुछ और ही दर्शा रही है। बताते हैं कि इसमें एक पूर्व पंजीयक बार-बार पंजीयक कार्यालय के चक्कर लगाकर मामले को सलटवाने के फेर में हैं।
गंगादेवी ने दर्ज कराए बयान
पंजीयन विभाग द्वारा बैठाई गई जांच में गंगादेवी द्वारा 10 अगस्त 2020 को अपने लिखित कथन दर्ज करा दिए गए हैं। जिसमें उन्होंने स्वीकार किया है कि यह शिकायत उनके ही द्वारा की गई है और फर्जी खसरे के जरिए उनके पति के नाम से गलत रजिस्टी की गई।उन्होंने कहा कि उनके पति न तो कभी रजिस्ट्रार ऑफिस गए और न ही घर पर रजिस्ट्री हुई। इसमें किसी व्यक्ति ने फर्जी अंगूठे एवं हस्ताक्षर किए हैं। उन्होंने पंजीयन विभाग पर भी शंका व्यक्त की है कि उनके द्वारा जानबूझकर नोटिस सिर्फ क्रेता गण को ही क्यों दिए गए। कुसुम एवं पटवारी खसरा प्रस्तुत किया गया है, उसमें खसरा नंबर 94, 95, 85,87 अंकित है, न कि सर्वे क्रमांक 358। जब विक्रय पत्र 5 दिसंबर 2013 में दर्शाया गया है, तो खसरा वर्ष 1992 93 का क्यों उल्लेखित है।
इनका कहना
यह मामला पंजीयन विभाग में विवादास्पद नहीं है। क्रेता और विक्रेता के बीच का विवाद है। मामले की जांच जिला पंजीयक दिनेश गौतम द्वारा की जा रही है।
देवकीनंदन दोहरे, वरिष्ठ पंजीयक
