ग्वालियर में भगवान जगन्नाथ का दिव्य मंदिर, रथ यात्रा के दौरान पुरी में थम जाते है पहिए

- मंदिर परिसर में चमत्कारी हनुमान भी विराजमान
- शुभम चौधरी
ग्वालियर/वेबडेस्क। जगन्नाथ जी का नाम सुनते ही उड़ीसा के पुरी का नाम ध्यान आता है, लेकिन क्या आप जानते हैं ? ग्वालियर से 15 किलोमीटर दूर ग्राम कुलैथ में भी भगवान जगन्नाथ विराजमान है। यहां भी उड़ीसा के जगन्नाथ पुरी की तरह प्रत्येक वर्ष हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास की शुल्क पक्ष की द्वितीय तिथि को भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाती है। जब कुलैथ ग्वालियर में भगवान जगन्नाथ की यात्रा निकलती है तो उतने समय लगभग 3:30 घंटे पुरी की जगन्नाथ रथ यात्रा के पहिए थम जाते हैं। और पुरी में घोषणा की जाती है भगवान जगन्नाथ जी अब कुलैथ ग्वालियर प्रस्थान कर रहे चुके हैं।
तब कुलैथ ग्वालियर में बड़े धूम-धाम और गाजे-बाजे के साथ रथ यात्रा निकाली जाती है। उसी दिन गांव में विशाल मेले का भी आयोजन होता है। मेले के दूसरे दिन 173 साल पुराने श्री जगन्नाथ पुरी धाम मंदिर की रसोई में एक के ऊपर एक 7 मिट्टी कलश में चावल पकाए जाते हैं। चमत्कार की बात है कि कलश नीचे से ऊपर नहीं बल्कि ऊपर से नीचे की ओर पकते हैं। सबसे पहले सबसे ऊपर वाला कलश के चावल पकते हैं। जिस मात्रा में कलश में चावल डाले जाते हैं। उससे कम मात्रा में कलश के चावल भगवान जगन्नाथ को भोग लगाने के बाद बचते हैं। माना जाता है बाकी चावल भगवान जगन्नाथ जी ग्रहण कर लेते हैं। भोग लगाते समय मिट्टी के घड़े भगवान के सामने रखते ही 4 बराबर भागों में विभक्त हो जाते हैं। और फूल की तरह खिल जाते हैं। एक भक्त को कलश के अपने आप विभक्त होने पर संशय हुआ। तो वह पीतल का कलश बनवा कर लाया और उस कलश में जगन्नाथ जी को भोग लगाया तो वह भी चार भागों में विभक्त हो गया। तभी से किसी भक्त ने भगवान जगन्नाथ जी के चमत्कार पर संचय नहीं किया। प्रति सोमवार कलश में भोग भक्तों के द्वारा, भक्तों के सामने ही लगाया जाता है। इस दौरान हजारों की संख्या में भक्तगण मंदिर में दर्शन करने पहुंचते हैं। चमत्कार को देखकर भक्तों की आस्था और प्रगाढ़ होती है। इन कलश से निकलने वाला चावल का प्रसाद कितने भी भक्तों में बांट दिया जाए लेकिन कम नहीं पड़ता। कहा जाता है कि इन कलशों के चावल को घर में रखने से कभी घर में अन्न की कमी नहीं होती है।
मंदिर के पुजारी किशोरी लाल जो पटवारी पद से सेवानिवृत्त हैं बताते हैं श्री जगन्नाथ पुरी धाम मंदिर, ग्राम कुलैथ, जिला ग्वालियर की स्थापना 173 साल पहले 1846 में मेरे दादा सांवले दास द्वारा की गई। पुजारी किशोरीलाल बताते हैं दादा सांवलेदास संपन्न कायस्थ परिवार में पैदा हुए। 9 वर्ष की आयु में 1807 में उनके माता-पिता दोनों का एक ही दिन देहांत हो गया। बालक सांवलेदास को बताया गया उनके माता-पिता जगन्नाथ जी की शरण में गए हैं। और यदि वह दंडवत करते हुए वहां जाएं तो उन्हें वहां अपने माता-पिता मिल जाएंगे। 1816 में भी ग्राम कुलैथ, ग्वालियर, मध्यप्रदेश से उड़ीसा के जगन्नाथ पुरी जो यहां से 1350 किलोमीटर दूर है। दंडवत करते हुए रवाना हुए।
रास्ते में एक साधु रामदास महाराज उन्हें मिले जिन्होंने उन्हें बताया कि उनके माता-पिता की मृत्यु हो गई है। अब वह इस दुनिया में नहीं रहे। लेकिन तुम इसी तरह दंडवत करते हुए 7 बार जगन्नाथ पूरी जाओगे। तो तुम्हें चमत्कार प्राप्त होगा। सांवलेदास ने माता-पिता की चाह में 7 बार दंडवत जगन्नाथ पुरी की यात्रा की 1844 में सातवीं यात्रा संपन्न होने के बाद उन्हें सपना आया कि वह कुलैथ ग्वालियर में ही मंदिर बनवाए। अब उन्हें जगन्नाथपुरी आने की आवश्यकता नहीं। लेकिन वह मूर्ति पूजा के उपासक नहीं बनना चाहते थे। उन्होंने मंदिर निर्माण नहीं कराया। माता-पिता ना मिलने पर वह दुखी, निराश हो गए। वह 2 वर्ष भटकते रहे। हालत इतनी खराब हो गई कि भीख मांग कर पेट भरने लगे। इसके बाद 1846 में पुनः उन्हें सपने में भगवान जगन्नाथ जी से आदेश प्राप्त हुआ कि वे चमत्कार देखें। गांव के पास बहने वाली सांक नदी में चंदन की दो मूर्तियां रखी है। उन्हें घर लाकर स्थापना करें। मूर्तियों को भोग लगाने के लिए एक के ऊपर एक मिट्टी के कलश रखकर उनमें चावल पकाएं। सबसे पहले ऊपर वाला कलश पकेगा। फिर उसके नीचे वाला। जगन्नाथ जी को भोग लगाने पर कलश 4 बराबर भागों में विभक्त हो जाएगा। उन्होंने सपने के अनुसार कार्य किया। तो सपना सच हुआ। और तभी 1946 में दादा सांवलेदास ने मंदिर बनवाया और भगवान जगन्नाथ की स्थापना हुई। तभी से आज तक जगन्नाथपुरी की तरह कुलैथ ग्वालियर में भी रथयात्रा निकाली जाती है। जिस वक्त कुलैथ ग्वालियर में रथ यात्रा निकलती है। तो पुरी की रथयात्रा रुक जाती है। क्योंकि भगवान साक्षात कुलैथ पहुंचते हैं। कुलैथ स्थित तीनों मूर्तियों की आकृति में भी चमत्कारी ढंग से परिवर्तन देखने को मिलता हैं। उनका वजन एकाएक बढ़ जाता है और जैसे ही मुझे आभास होता है कि जगन्नाथ जी कुलैथ पधार चुके हैं वैसे ही कुलैथ मंदिर की मूर्ति रथ में बिठाकर हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं द्वारा खींचकर रथ यात्रा की शुरुआत की जाती है।
स्वदेश के माध्यम से मैं सभी भक्तों को सूचित करना चाहता हूं। सोमवार 12 जून को मंदिर के पट बंद हो गए हैं। हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी श्री जगन्नाथ पुरी धाम मंदिर, ग्राम कुलैथ, ग्वालियर में आज 13 जून को श्रीमद् भागवत कथा प्रारंभ होगी। 20 जून को रथ यात्रा के साथ विशाल भंडारे और मेले की शुरुआत होगी। 21 जून को चावल भरे कलश शाम 6 बजे भगवान जगन्नाथ को भोग लगाया जाएगा। जो भक्तों के सामने विभक्त होंगे। जिसका प्रसाद भक्तों में वितरण किया जाएगा। इन कलशों का कितने भी भक्तों को प्रसाद ग्रहण करें कम नहीं पड़ता। ऐसी जगन्नाथ जी की महिमा है। साथ ही रामलीला, भजन कीर्तन, संत सम्मेलन, कन्हैया गायन इत्यादि धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। सभी भक्तों से निवेदन है भागवत कथा, जगन्नाथ यात्रा, मेले सहित सभी धार्मिक आयोजनों में अधिक से अधिक संख्या में पहुंचकर भक्तगण धर्म लाभ प्राप्त करें।
पीपल के वृक्ष से निकल रहा चमत्कारी जल -
मंदिर परिसर में एक पीपल का वृक्ष है। जिसमें भगवान हनुमान का विग्रह प्रकट हो गया है। और उनके चरणों में लगभग 20 सालों से 12 महीने जल टपकता है। जो भक्तगण भगवान जगन्नाथ व भगवान हनुमान जी का आशीर्वाद मान चरणामृत की तरह पान करते हैं।कुलैथ ग्वालियर स्थिति श्री जगन्नाथ जी मंदिर के दर्शन के लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अखिल भारतीय गौसेवा गतिविधि संयोजक अजीत महापात्र गये थे। वहां पर देखा कि भगवान जगन्नाथ जी के विग्रह के साथ सुदर्शन चक्र नहीं है। अजीत भाई साहब ने पुरी उड़ीसा से सुदर्शन जी की काष्ठ प्रतिकृति निर्मित करवा कर स्थापित करने हेतु भेजी है। आज मंगलवार को कुलैथ में श्रीमद्भागवत कथा की कलश यात्रा प्रारंभ होगी। इसी यात्रा में सुदर्शन चक्र यात्रा में मन्दिर प्रबंधन ने स्वीकार करेगा।
