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सांस्कृतिक पत्रकारों को प्रशिक्षण दें संस्थान, तभी होगा कला का प्रचार

राष्ट्रभाव से जुड़ी हैं सांस्कृतिक पत्रकारिता की जड़ें

सांस्कृतिक पत्रकारों को प्रशिक्षण दें संस्थान, तभी होगा कला का प्रचार
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ग्वालियर। जयपुर आर्ट समिट के 10वां वार्षिक आयोजन ग्वालियर के जीवाजी विश्वविद्यालय के गलाव सभागार में आयोजित हो रहा है। कार्यक्रम के दूसरे दिन की शुरुआत सुबह 11 बजे फोक फ्यूजन की प्रस्तुती के साथ हुई। समिट के दूसरे दिन सांस्कृतिक पत्रकारिता का सेमीनार आयोजित हुआ। जिसमे मुख्य अतिथि के रूप में मधुकर चतुर्वेदी ,जयंत तोमर ,सर्वेश भट्ट एवं लक्ष्मीकांत शर्मा मौजूद रहे,एवं सभी लोगो ने सांस्कृतिक पत्रकारिता को लेकर अपने विचार जाहिर किये।


कला संस्कृति और विरासत के प्रचार -प्रसार में मीडिया की भूमिका विषय पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित करते हुए ग्वालियर के शिक्षाविद् प्रो. जयंत सिंह तौमर ने कहा कि वर्तमान में जरूरी है कि पत्रकारिता संस्थान अपने पत्रकारों को सांस्कृति पत्रकारिता के सम्बंध में प्रशिक्षण अवश्य दें, इससे कला संस्कृति का सम्यक प्रचार-प्रसार होगा।

जबलपुर के लक्ष्मीकांत शर्मा ने कहा कि विरासतों को बचाने में मीडिया की महती भूमिका रही है और मीडिया संस्थानों को अपनी क्षमताओं को और अधिक बढ़ाना होगा। स्वदेश के आगरा-झांसी संस्करण संपादक मधुकर चतुर्वेदी ने कहा कि भारतीय पत्रकारिता का प्राणतत्व है सांस्कृतिक कार्यक्रमों की रिपोर्टिंग और समीक्षा। संगीत, शिल्प, पुरातत्व, साहित्य, स्त्री विमर्श, धर्म, कथानक आदि यह सब विधाएं राष्ट्रभाव से जुड़ी है। उन्होंने कहा कि आज मीडिया में सांस्कृतिक पत्रकारिता के नाम पर फिल्मी दुनियां की बाते और सास बहुओं की कहानियां अधिक है। इससे समाज में कोई वैचारिक विमर्श नहीं हो पाता। सांस्कृतिक पत्रकारिता के नाम पर पत्रकारिता में अब कुछ भी रचनात्मक शेष नहीं रह गया है।

देश विदेश से आये कलाकार


मधुकर चतुर्वेदी ने कहा कि सांस्कृतिक पत्रकारिता को अभी अपनी गंभीरता भी पानी है और लोकप्रियता भी। मधुकर चतुर्वेदी ने कहा कि पत्रकारिता न सिर्फ पाठकों को को ज्ञान दे, मनोरंजन दे बल्कि, उसकी रुचियों का परिष्करण भी करे। उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं में छपी सांस्कृतिक समीक्षाओं के बारे में भी बताया। वहीं जयपुर से पधारे वरिष्ठ पत्रकार सर्वेश भट्ट ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि पत्रकारिता की विधा में सांस्कृतिक पत्रकारिता सर्वोच्च है। कोई भी मीडिया संस्थान समाज में अपना स्थान केवल सांस्कृतिक पत्रकारिता के आधार पर बना सकता है। उन्होंने कहा कि पत्रकार किसी भी क्षेत्र में हो, कला संस्कृति पर जरूर लेखन करे और विज्ञप्तियों के सहारे ना रहे, बल्कि कार्यक्रमों में सहभागी बने।कार्यक्रम में पदमश्री सम्मानित दुर्बाबाई श्याम (गौंड आर्टिस्ट) को भी सम्मानित किया।

Updated : 18 Dec 2022 6:17 PM GMT
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City Desk

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