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रक्षाबंधन पर चीन को करारा जवाब, शहर में नहीं बिकी चीनी राखियां

दो करोड़ रुपए तक का होता था कारोबार

रक्षाबंधन पर चीन को करारा जवाब, शहर में नहीं बिकी चीनी राखियां
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ग्वालियर, न.सं.। भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन का त्यौहार शहर में सोमवार को हंसी-खुशी के साथ मनाया गया। अधिकतर बहनों ने शुभ मुहुर्त में भाईयों की कलाई पर रेशम धागे और चंदन की राखी बांधी। वहीं गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों की शहादत और चीन द्वारा कोरोना वायरस फैलाए जाने पर शहर की बहनों ने चीन को सबक सिखाते हुए रक्षाबंधन पर चीनी राखियों का बहिष्कार कर दिया। इससे अकेले ग्वालियर शहर में दो करोड़ रुपए से अधिक की चीनी राखी की बिक्री नहीं हुई। अधिकतर बहनों ने स्वदेशी राखी की खरीदारी की। कुछ बहनों ने अपने हाथ से ही राखी बनाकर भाईयों की कलाई पर बांधी।

राखी कारोबारियों ने बताया कि त्यौहार के अंतिम दिनों में शहर में राखी का कारोबार जरूर अच्छा हो गया था। यह कारोबार 5 से 6 करोड़ रुपए का हुआ है। इस वर्ष का कारोबार पिछले वर्ष की तुलना में 25 प्रतिशत जरूर कम रहा जिसका मुख्य कारण कोरोना संक्रमण था। राखी कारोबारियों के अनुसार चीन से जो राखी मंगाई जाती है उसका आर्डर चार-पांच माह पहले दिया जाता है। मार्च माह में लॉकडाउन लगा होने और कोरोना वायरस संक्रमण होने के कारण राखी का एक भी आर्डर नहीं दिया गया जिससे इस बार शहर में रक्षाबंधन पर राखी की जरा भी बिक्री नहीं हुई है। शहर में 100 प्रतिशत देशी राखियां बिकी हैं।

रेशम की राखी अधिक पसंद की

राखी कारोबारियों ने बताया कि इस बार शहर में स्व-सहायता समूहों द्वारा बनी एवं कोलकाता, अलवर, राजकोट, दिल्ली और आगरा की राखियों की बिक्री अधिक हुई है। इसमें बहनों ने अपने भाइयों के लिए रेशम की राखी अधिक पसंद की है। कारोबारियों के अनुसार देशी राखी की बिक्री बढऩे से हमारे शहर और देश के राखी कारोबार में अच्छी वृद्धि हुई है साथ ही लोगों को रोजगार भी मिला है।

राखी की जगह बांधा कलावा

अधिकतर बहनों ने कोरोना संक्रमण में बाजारों में जाने से परहेज रखा। इन बहनों ने अपने भाइयों के लिए या तो हाथ से राखी बनाई या कलावा को राखी स्वरूप मानकर भाइयों की कलाई पर बांधा। इस दौरान अधिकतर बहने अपने भाइयों के घर नहीं गई और कोरियर के माध्यम से ही राखी भेजी। अधिकतर बहनों ने भाइयों को मिठाई की जगह उपहार स्वरूप ड्रायफ्रूटस दिए जिसे खाकर कोरोना काल में भाईयों की इम्यूनिटी बढ़ती रहे।

इनका कहना है:

'हमने हमेशा के लिए चीनी वस्तुओं का बहिष्कार कर दिया है। इस बार हमने रक्षाबंधन पर खुद ही राखी बनाई और कुछ स्वदेशी राखियां बाजार से खरीदकर रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया है।

शिखा गोयल, बहन

'मैने बाजार से कच्चा सामान लाकर घर पर ही रेशम की सुंदर राखियां बनाई हैं। इन राखियों को भाई की कलाई पर बांधकर अलग ही सुकून मिला है।

नेहा अग्रवाल, बहन

'इस बार हमने चीन से एक भी राखी बिक्री के लिए नहीं मंगाई है। रक्षाबंधन पर शहर में दो करोड़ रुपए से अधिक की चीनी राखी नहीं बिकी है। शहर में केवल स्वदेशी राखी की ही बिक्री हुई है।

लाला बाबू अग्रवाल, राखी कारोबारी

'कोरोना और चीन की हरकतों से चीनी राखी का कारोबार पूर्ण रूप से खत्म हो गया है। इस बार बहनों ने देशी राखी को अधिक पसंद किया है। अधिकतर राखी घरों पर भी बनाई गई हैं।

सोम अग्रवाल, राखी कारोबारी


Updated : 4 Aug 2020 7:43 AM GMT
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स्वदेश डेस्क

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