दिगंबर लाला गोकुलचंद जैन मंदिर में सिद्धचक्र विधान में गूंजे जयकारे

दिगंबर लाला गोकुलचंद जैन मंदिर में सिद्धचक्र विधान में गूंजे जयकारे
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धर्म में आस्था रखनी चाहिए। क्रोध को कम करना चाहिए। क्रोध जिंदगी का सबसे बड़ा दुश्मन है। धर्म ही जीवन को उज्ज्वल करता है।

ग्वालियर,न.सं.। उपनगर लोहामंडी स्थित श्री दिगम्बर जैन लाला गोकुलचंद जैसवाल मंदिर में 19 से 27 नवंबर तक चल रहे श्री सिद्ध चक्र महामण्डल विधान के सात वें दिन शनिवार को संगीतमय भक्ति आराधना कर समोशरण विराजित सिद्धों को 256 अघ्र्य चढ़ाए गए।


जैन समाज के प्रवक्ता सचिन जैन ने बताया कि सबसे पहले प्रतिष्ठाचार्य विजय जैन शास्त्री ने पहले मंगलाष्टक का पाठ कर रिद्धि सिद्धि मंत्रो का उच्चारण के साथ सौधर्म इंद्र पदमचंद जैन ने भगवान जिनेन्द्र की प्रतिमा को पांडुकशीला पर विराजमान किया। इसके बाद सौधर्म इंद्रा, कुबेर, यज्ञनायक, महेंद्र इंद्रा सहित इन्द्रो ने पीले वस्त्रो में हाथों में कलश के प्राशुक जल से भगवान जिनेंद्र का जयघोष के साथ अभिषेक किया। इसके बाद पाश्र्वनाथ भगवान की शांति धारा विशंभरदयाल राहुल जैनएव बंगालीमाल ज्ञानचंद जैन परिवर ने की। इसके तुरंत दैनिक पूजा शरू की गई। इसके अंतर्गत सिद्धचक्र विधान में श्री नंदीश्वर दीप, पंचमेरु, देवशास्त्र गुरु पारसनाथ भगवान और अन्य पूजा की गई। संगीतकार प्रमोद जैन ने श्रीजी के भजनों की भक्ति में जमकर सौधर्म इंद्र और सभी इंद्र इंद्राणियों ने नृत्य करते हुए विधान में 256 अर्घ मांडले पर मंत्रोच्चारण के साथ समर्पित किये गए।मन्दिर परिसर श्रीजी के जयकारों से गूंज उठा।

किसी से ईष्र्या नहीं करनी चाहिए

सिद्धचक्र विधान में प्रतिष्ठाचार्य विजय जैन शास्त्री ने कहा कि मनुष्य को मंदिर आकर प्रतिदिन अभिषेक पूजन करना चाहिए। किसी से ईष्र्या नहीं करनी चाहिए। धर्म में आस्था रखनी चाहिए। क्रोध को कम करना चाहिए। क्रोध जिंदगी का सबसे बड़ा दुश्मन है। धर्म ही जीवन को उज्ज्वल करता है।

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