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चम्बल पर है सत्ता की चाबी,सरकार को मजबूती देगा चम्बल का फैसला

चम्बल पर है सत्ता की चाबी,सरकार को मजबूती देगा चम्बल का फैसला
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भिण्ड/ग्वालियर। मध्यप्रदेश की राजनीति और सत्ता की धुरी चंबल के फैसले पर टिकी हुई है। जहां भाजपा का प्रदेश का नेतृत्व और केन्द्र में प्रतिनिधित्व चंबल का है वहीं सत्ता की बागडोर को स्थायित्व देने का फैसला भी अब चंबल के हाथ में है। प्रदेश में 24 सीटों पर उप चुनाव होना है। इनमें से सात सीटें चंबल से हैं, जिनमें दो सीटें भिण्ड की भी शामिल हैं। अनारक्षित विधानसभा क्षेत्र मेहगांव में टिकट को लेकर ही कांग्रेस पार्टी में घमासान मचा है। जहां स्थानीय कांग्रेस नेता टिकट की दावेदारी हक के साथ कर रहे हैं तो वहीं बड़े-बड़े दिग्गज तिकड़मबाजी में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं। प्रदेश की राजनीति में पूर्व मुख्यमंत्री स्व. अर्जुन सिंह के बाद सफल राजनीति का चाणक्य कहलाने का कोई हकदार है तो वह राजा दिग्विजय सिंह ही हैं। उन्होंने मेहगांव उप चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार को लेकर कुछ इस तरह का चक्रव्यूह रच दिया है कि टिकट किसी का भी हो राजा दिग्विजय सिंह की पूछ परख तो बनी ही रहेगी।

टिकट किसी को मिले, राजा के दोनों हाथों में होंगे लड्डू

उप चुनाव में मेहगांव विधानसभा के लिए प्रत्याशी घोषित करने को लेकर समूचे प्रदेश में टिकट की सरगर्मी है। इस सीट पर कांग्रेस के मौजूदा सभी दिग्गजों की निगाह टिकी है। चाहे सुरेश पचौरी हों या फिर पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ, अजय सिंह राहुल भैया, अरुण यादव अथवा राजस्थान के सचिन पायलट सभी मेहगांव के टिकट चयन को लेकर सुर्खियों में हैं, लेकिन कांग्रेस आलाकमान का फैसला कुछ भी हो। इस मामले में सफलता राजा दिग्विजय सिंह को मिलना ही है। उनके दोनों हाथों में लड्डू हैं। मेहगांव विधानसभा क्षेत्र से जो नाम सबसे ऊपर कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में उछल रहा है, वह राजा की चक्रव्यूह रचना का एक हिस्सा है। दिग्विजय सिंह व सुरेश पचौरी के गठजोड़ से बनी योजना के तहत चौ. राकेश सिंह को चुनाव मैदान में उतारने के लिए हवा दी गई। अंदर की बात यह है कि चौधरी साहब का राजनैतिक कद बढ़ाने में राजा का बड़ा योगदान रहा है। यह अलग बात है कि उस समय कांग्रेस के बड़े ब्राह्मण नेता सत्यदेव कटारे के कद को छांटने के इरादे से ही सही चौधरी को बढ़ावा तो राजा ने तब दिया था, जब प्रदेश के बटवारे में शुक्ल बंधु छत्तीसगढ़ चले गए थे, तब प्रदेश में चौधरी के पास कोई राजनीतिक आका नहीं था।

आज चौधरी साहब जिन पचौरी का अब दामन थामे हुए हैं, वे कटारे के कट्टर थे। कुछ नेताओं के आश्वासन के बाद जब चौधरी ने मेहगांव में अपनी संभावनाएं तलाशीं तो सोशल मीडिया पर मिले दुलार से स्थिति यह बन गई कि चौधरी साहब को अपनी जीत पक्की दिख रही है, इसलिए अब वे चुनाव मैदान में उतरने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो चुके हैं। यदि कांग्रेस का पंजा नहीं मिला तो वे दूसरी नाव से विधानसभा में पहुंचकर निर्णायक भूमिका में आने के लिए आतुर हैं, इसलिए उनका चुनाव लडऩा लगभग तय ही मानो। ऐसी स्थिति में कांग्रेस को ब्राह्मण नेता को छोड़कर अन्य पिछड़ी जाति का प्रत्याशी चुनाव में उतारना होगा। जैसा कि मेहगांव का इतिहास है। जब-जब ब्राह्मण-ठाकुर में बराबरी का मुकाबला हुआ है, तब-तब अन्य पिछड़ी जाति व अनुसूचित जाति के गठजोड़ को सफलता मिली है। इस तरह राजा को अपनी चक्रव्यूह रचना सफल होती दिख रही है। ऐसी स्थिति में भाजपा को छोड़कर कोई भी जीते। लड्डू तो दिग्विजय सिंह के ही दोनों हाथों में होंगे।

असमंजस में कांग्रेस, किसे चुने, चौधरी या जनमत के अपमान का मुद्दा

उप चुनाव में जनता के बीच जाने के लिए कांग्रेस के पास सवा साल के कार्यकाल की कोई भी ऐसी बड़ी उपलब्धि नहीं है, जिसको लेकर वह उप चुनाव दमदारी से लड़ सके। ऐसे में वह सिर्फ सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों के धोखे व जनमत के अपमान को उप चुनाव का मुद्दा बनाएगी, लेकिन कांग्रेस यदि मेहगांव से चौ. राकेश सिंह को अपना उम्मीदवार बनाती है तो यह जुमला भी उसके हाथ से निकल जाएगा। चलती विधानसभा के बीच चौ. राकेश सिंह ने पाला बदलकर कांग्रेस को धोखा दिया था, जो सिंधिया की तुलना में कांग्रेस के लिए कहीं ज्यादा अपमानजनक था क्योंकि सिंधिया के वजूद को तत्कालीन मुख्यमंत्री ने ललकारा था और सार्वजनिक रूप से कहा था कि जाते हैं तो चले जाएं, रोक कौन रहा है। इस तरह का अपमान एक आम व्यक्ति भी सहन नहीं कर सकता, आखिर सिंधिया तो बड़े राज घराने के महाराज हैं।

इस अपमान के बाद सिंधिया के लिए कांग्रेस में रहने की कोई वजह ही नहीं बची थी, लेकिन चौधरी साहब तो कांग्रेस में सिर आंखों पर थे। उन पर विपक्ष में महत्वपूर्ण उप नेता की जिम्मेदारी थी फिर भी कांग्रेस इस धोखे को धोखा न मानकर व्यक्तिगत अजय सिंह राहुल भैया की टीस मानकर यदि उनको माफ करती है तो उसका बड़ा दिल है। यदि चौ. साहब मेहगांव सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार बनते हैं तो कांग्रेस जिस धोखा व गद्दारी को मुद्दा बनाकर उप चुनाव की वेतरणी पार करना चाह रही है, वह उससे छिन जाएगा, जिसका पूरा फायदा भाजपा उम्मीदवारों को मिलेगा, जबकि कांग्रेस के पास इसके अलावा चुनाव मैदान में जाने का कोई दूसरा मुद्दा नहीं है।

Updated : 3 Jun 2020 1:05 AM GMT
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स्वदेश डेस्क

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